Delhi News : उमर खालिद द्वारा तिहाड़ जेल से लिखा गया एक लेख, सीधे शब्दों में कहें तो, मुझे उम्मीद से डर लगता है

Delhi News :उमर  खालिद द्वारा तिहाड़ जेल से लिखा गया एक लेख है, जो 1 जुलाई 2025 को The Quint में प्रकाशित हुआ। इस लेख में उमर खालिद ने अपनी जेल के अनुभवों को साझा करते हुए फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की की किताब द हाउस ऑफ द डेड का उल्लेख किया, जिसमें जेल में उम्मीद और निराशा के बीच के द्वंद्व को रेखांकित किया गया है। लेख का शीर्षक है: “Umar Writes from Tihar Jail: जेल में उम्मीद पालना जोखिम का काम है।”

उमर खालिद, जो जेएनयू के लेफ्ट विंग के एक कार्यकर्ता और पूर्व छात्र नेता हैं, जो तिहाड़ जेल से अपने विचार साझा किए। उन्होंने जेल के भीतर की मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक चुनौतियों का वर्णन किया, विशेष रूप से उम्मीद और निराशा के बीच के तनाव को। लेख में दोस्तोयेव्स्की की डायरी से प्रेरणा लेते हुए, खालिद ने बताया कि कैसे जेल में उम्मीद पालना एक जोखिम भरा काम हो सकता है। उनके शब्दों में:
“सीधे शब्दों में कहें तो, मुझे उम्मीद से डर लगता है, इसलिए मैं उम्मीद नहीं रखने की कोशिश करता हूं। लेकिन जेल में इस तरह की सोच के साथ जीने की बात आए, तो मैं इसमें काफी हद तक एक अपवाद हूं। यहां हर कोई पागलपन की हद तक आशावादी है, यहां तक कि वे लोग भी जो सबसे निराशाजनक हालात में हैं।”

खालिद ने दोस्तोयेव्स्की की किताब द हाउस ऑफ द डेड का जिक्र करते हुए बताया कि इस किताब ने उन्हें जेल के अनुभवों को समझने में मदद की। दोस्तोयेव्स्की, जो स्वयं साइबेरिया की जेल में कैद रहे थे, ने अपनी डायरी में कैदियों के बीच उम्मीद और निराशा के जटिल भावनात्मक अनुभवों का वर्णन किया था। खालिद ने इस बात पर जोर दिया कि जेल में हर कैदी, चाहे उनकी स्थिति कितनी भी निराशाजनक हो, किसी न किसी रूप में आशा बनाए रखता है।

उन्होंने अपनी व्यक्तिगत भावनाओं का भी जिक्र किया, जिसमें कहा कि वे अब पहले जैसे आशावादी नहीं रहे। यह बदलाव मौजूदा राजनीतिक स्थिति को यथार्थवादी दृष्टिकोण से देखने का परिणाम है। खालिद ने लिखा:
“शायद अब मैं पहले जैसा आशावादी नहीं रहा, जैसा कि मेरे कुछ दोस्तों ने महसूस किया है। यह सच है। लेकिन मेरी ये कम उम्मीदें आज की पॉलिटिकल सिचुएशन को रियलिस्टिक तरीके से देखने की वजह से हैं। और जैसा कि मैंने पहले भी कहा है, जेल में उम्मीद पालना भी एक जोखिम भरा काम है। आप जितनी ज्यादा उम्मीद करते हैं, उतनी ही ज्यादा ऊंचाई से नीचे गिरते हैं।”

उन्होंने यह भी बताया कि जेल में बिताए समय ने उन्हें धैर्य सिखाया, लेकिन वे इस धैर्य को जेल के बाहर की दुनिया में बनाए रखने में संदेह व्यक्त करते हैं। पिछले दिसंबर में सात दिनों की रिहाई के दौरान उन्हें यह एहसास हुआ कि बाहर की दुनिया में वे फिर से अपनी पुरानी बेचैनी में लौट सकते हैं।

“मुझे नहीं लगता कि मैं ये धैर्य बाहर की दुनिया में ले जाऊंगा। जब भी मैं बाहर निकलूंगा, फिर से वही बेचैन वाला उमर बन जाऊंगा। ये बात मुझे पिछले दिसंबर में उन सात दिनों में समझ आई, जब मैं बाहर था।”

दोस्तोयेव्स्की का संदर्भ:
दोस्तोयेव्स्की की द हाउस ऑफ द डेड एक आत्मकथात्मक उपन्यास है, जिसमें उन्होंने साइबेरिया की जेल में अपने चार साल के अनुभवों को चित्रित किया। यह किताब कैदियों के जीवन, उनकी आशाओं, निराशाओं, और मानवीय भावनाओं की जटिलता को दर्शाती है। खालिद ने इस किताब से प्रेरणा लेते हुए अपनी भावनाओं को व्यक्त किया, विशेष रूप से यह कि जेल में आशा बनाए रखना कितना जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि यह बार-बार निराशा में बदल सकता है।

China News: तिब्बत के मामले को लेकर चीन ने भारत को सुनाई खरी कोटि , कहा हमारे आंतरिक मामले से दूर रहे

यहां से शेयर करें