उर्जा मंत्री एके शर्मा का बढ रहा प्रभाव, भीड़ जुटाने वाले नही बल्कि जोड़ने वाले के रूप में उभरे, अब बड़ी जिम्मेदारी मिलने की सुहबुगाहट

Ghaziabad News: उत्तर प्रदेश की राजनीति में जहाँ जातीय समीकरण और गुटबाजी अक्सर नेतृत्व की दिशा तय करते हैं, वहीं गाजियाबाद अब एक चुपचाप हो रहे राजनीतिक पुनर्संयोजन का संकेत देने लगा है। गत 30 अप्रैल को परशुराम जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम जो आमतौर पर एक नियमित सांस्कृतिक आयोजन होता है, ने इस बार असाधारण राजनीतिक एकता, भारी जनभागीदारी और खासतौर पर प्रदेश के नगर विकास एवं ऊर्जा मंत्री ए.के. शर्मा (Energy Minister AK Sharma) के बढ़ते प्रभाव का मंच बनकर सबका ध्यान खींचा।

गाजियाबाद के अंदरूनी तौर पर बंटे हुए भाजपा गुटों के प्रमुख नेता, सांसद अतुल गर्ग, मंत्री सुनील शर्मा, महापौर सुनीता दयाल और विधायक नंदकिशोर गुर्जर एक ही मंच पर नजर आए। इसे एक वरिष्ठ भाजपा पदाधिकारी ने “राजनीतिक रूप से विभाजित इकाई के लिए एक असाधारण सामंजस्यपूर्ण क्षण” बताया। कुल मिलाकर कहा जाए तो एके शर्मा भाजपा नेताओं को एक करने में महत्पूर्ण भूमिका निभा रहे है।
एक मंच पर आ रहे नेता
“गाजियाबाद भाजपा के अलग-अलग गुटों के नेताओं को एक साथ मंच पर देखना बहुत दुर्लभ है,” कार्यक्रम में मौजूद एक जिला भाजपा नेता ने कहा। “शर्मा अब केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से भी एकता का चेहरा बनते जा रहे हैं।”
500 से अधिक वाहनों की शोभायात्रा और ब्राह्मण, ओबीसी, अनुसूचित जाति, त्यागी और भूमिहार समुदायों की उत्साही भागीदारी ने भाजपा के भीतर ही हलचल मचा दी है। कई नेता इसे संकेत के तौर पर देख रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्व सहयोगी और गुजरात कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी एके शर्मा को अब बड़ी राजनीतिक जिम्मेदारी के लिए तैयार किया जा रहा है, चाहे वह राज्य में हो या केंद्र में।
गोरखपुर में भी उमड़ा जनसेलाब
बता दें कि कुछ ही दिन पहले, 27 अप्रैल को गोरखपुर में वन नेशन, वन इलेक्शन संगोष्ठी में भी शर्मा को देखने के लिए भारी जनसमूह उमड़ा था। लेकिन पार्टी के भीतरी सूत्रों का कहना है कि गाजियाबाद का आयोजन असल में निर्णायक मोड़ बन सकता है।

“गाजियाबाद में जो हुआ, वो सामान्य नहीं था,” दिल्ली से एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने जय हिन्द जनाब को बताया कि “भीड़, तालमेल का संदेश अच्छे से देना और वो भी जब मुख्यमंत्री या राष्ट्रीय नेता मंच पर नहीं थे, तब भी यह स्तर एवं प्रभाव दिखना बहुत कुछ बयां करता है।”

गोरखपुर और गाजियाबाद दोनों जगहों पर शर्मा का संदेश स्पष्ट रहा। हिंदुत्व, सनातन संस्कृति, समावेशी विकास और सामाजिक समरसता। उनकी आध्यात्मिकता, गोरखनाथ मंदिर की यात्रा जैसे प्रतीकों के साथ और शांत, संतुलित शैली ने यूपी की जातीय राजनीति में बंटी आबादी को कहीं न कहीं जोड़ने का काम किया। “पार्टी में अब ऐसे चेहरों की जरूरत है जो प्रशासनिक अनुभव के साथ-साथ जनसमर्थन भी भरपूर तरीके से ला सकें,” पार्टी के एक केंद्रीय नेता ने कहा। “शर्मा ने यह साबित किया है। अब उनका नाम बड़ी जिम्मेदारियों की चर्चा में है।”

विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, शर्मा को या तो राज्य सरकार में और बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है, या फिर 2024 के बाद केंद्र में संभावित फेरबदल के तहत दिल्ली बुलाया जा सकता है। कुछ लोग तो उन्हें 2027 के विधानसभा चुनावों की दिशा में भविष्य के नेतृत्व विकल्प के रूप में भी देख रहे हैं। गुजरात में प्रधानमंत्री मोदी के साथ दो दशकों तक प्रशासनिक कार्य कर चुके शर्मा ने 2021 में भाजपा जॉइन की और तत्काल विधान परिषद सदस्य और राज्य मंत्री बने। शुरुआत में वे एक तकनीकी नौकरशाह के रूप में देखे गए, लेकिन अब उनका शांत, परंतु प्रभावशाली राजनीतिक बदलाव साफ दिखाई देने लगा है।
भाजपा जातीय गठबंधनों को किया मजबूत
उनकी ब्रिज-बिल्डर शैली मौजूदा टकरावपूर्ण राजनीति के बिल्कुल विपरीत है। जब भाजपा जातीय गठबंधनों को और मजबूत करने और गुटबाजी को कम करने की कोशिश में है, तो शर्मा का गाजियाबाद से उभरता चेहरा शायद पार्टी की बदलती रणनीति का एक संकेत हो सकता है। “अब यूपी को केवल भीड़ जुटाने वाले नेता नहीं, जोड़ने वाले नेता चाहिए,” एक क्षेत्रीय रणनीतिकार ने कहा। “गाजियाबाद में जो हुआ, वह शायद इसी बदलाव की शुरुआत हो।” अब यह देखना होगा कि क्या गाजियाबाद महज एक संयोग था या फिर वाकई उत्तर प्रदेश की राजनीति का नया मोड़। लेकिन इतना तय है कि एके शर्मा अब भाजपा की राजनीतिक योजना और नेतृत्व की बहस के केंद्र में आ चुके हैं।

 

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