waqf Bill Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट दायर याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हो गई। आज दो बजे आगे कोर्ट इस मामले के पक्ष और विपक्ष को सुनेगा। “उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ” सहित वक्फ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा, लेकिन केंद्र ने इस सुझाव का विरोध किया और इस तरह के निर्देश से पहले सुनवाई की मांग की।
शीर्ष अदालत ने केंद्र से यह भी पूछा कि क्या मुसलमानों को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों का हिस्सा बनने की अनुमति दी जाएगी। शीर्ष अदालत ने कानून के लागू होने के बाद हुई हिंसा पर भी चिंता व्यक्त की और कहा कि जब वह इस मामले पर विचार कर रही थी तो यह परेशान करने वाला था। शीर्ष अदालत वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 17 अप्रैल को दोपहर 2 बजे सुनवाई जारी रखेगी।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने मामले में सुनवाई की। इस दौरान वक्फ से संबंधित सभी मामले नहीं सुने गए। मामले की सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा कि यह कानून धार्मिक मामलों में दखल देता है। साथ ही यह बुनियादी जरूरतों का अतिक्रमण करता है। सिब्बल ने इस मामले में अनुच्छेद 26 का हवाला दिया। इसे पहले कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा था कि आपके तर्क क्या हैं?
चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान कहा
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल से कहा कि समय कम है। इसलिए आप याचिका की मुख्य मुख्य और बड़ी बातें बताएं। सिब्बल ने कहा कि सेंट्रल वक्फ काउंसिल 1995 के अनुसार, सभी सदस्य मुस्लिम थे। मेरे पास एक चार्ट है। चार्ट में दिख रहा है कि हिंदू या सिख धर्मार्थ संस्थानों में, सदस्य हिंदू या सिख ही होते हैं। ये नियम का सीधा उल्लंघन है। उनके अनुसार, ये 20 करोड़ लोगों के अधिकारों का संसदीय अतिक्रमण है। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने दूसरे प्रावधान को देखने को कहा। उन्होंने कहा कि क्या इसका मतलब है कि पूर्व-अधिकारी को छोड़कर सिर्फ दो सदस्य ही मुस्लिम होंगे? सिब्बल ने नियम 9 की तरफ ध्यान दिलाया, उन्होंने कहा कि कुल 22 सदस्य होंगे, जिनमें से 10 मुस्लिम होंगे।
जस्टिस विश्वनाथन ने उठाएं सवाल
इस मामले में दूसरे जस्टिस विश्वनाथन का कहना है कि प्रॉपर्टी को धर्म के साथ नहीं मिलाना चाहिए। प्रॉपर्टी का मामला अलग हो सकता है। सिर्फ प्रॉपर्टी का मैनेजमेंट धार्मिक मामलों में आ सकता है। बार-बार ये कहना ठीक नहीं है कि ये जरूरी धार्मिक काम है। सिब्बल ने कहा कि पहले कोई रोक-टोक नहीं थी। बहुत सी वक्फ संपत्तियों पर लोगों ने कब्जा कर लिया था। सीजेआई ने कहा कि लिमिटेशन एक्ट के अपने फायदे हैं। सिब्बल ने एक अलग बात कही। उन्होंने कहा कि कानून कहता है कि मुझे दो साल के अंदर दावा करना होगा। कई संपत्तियां तो रजिस्टर्ड भी नहीं हैं, तो मैं कैसे दावा कर सकता हूं? जस्टिस खन्ना ने कहा, आप यह नहीं कह सकते कि अगर आप लिमिटेशन पीरियड लगाते हैं, तो यह असंवैधानिक होगा। इसका मतलब है, समय सीमा लगाना गलत नहीं है। सिब्बल का कहना है कि इस नियम से वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने वालों को फायदा होगा। वे अब प्रतिकूल कब्जे का दावा कर सकते हैं। इसका मतलब ये हुआ कि वे कह सकते हैं कि वे लंबे समय से उस संपत्ति पर कब्जा किए हुए हैं, इसलिए अब वह उनकी हो जानी चाहिए। जस्टिस एम.एम. सुंदरेश अदालत में नहीं रहे। इसलिए, अदालत नंबर 8 में जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच के लिए सूचीबद्ध मामले अब जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने सुनी।
वक्फ कानून चुनौती देने को 73 याचिकाएं
वक्फ कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इस संबंध में 73 याचिकाएं दायर की गई हैं।। मीम पार्टी के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, आरजेडी के सांसद मनोज कुमार झा और टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा जैसे कई लोगों ने याचिका दायर की है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद भी याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, वाईएसआरसी पार्टी और समस्ता केरल जमीअतुल उलेमा ने भी याचिका दायर की है। आप विधायक अमानतुल्लाह खान, सपा सांसद जिया उर रहमान और बेंगलुरु के जामा मस्जिद के इमाम भी याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं।