इज़राइल और ईरान के बीच युद्ध, एक दूसरे पर दाग रहे मिसाइलें, जानिए कब से है दोनों की दुश्मनी और किस तरह से समय समय पर देते है जवाब

War between Israel and Iran:  इज़राइल और ईरान के बीच एक बार फिर से युद्ध छिड़ गया है। कुछ महीने पहले दोनों के बीच गोलाबारी और मिसाइलें दागी गई थी लेकिन उस वक्त दोनों ही शांत हो गए। अचानक से एक बार फिर इज़राइल ने ईरान पर बड़ा हमला किया है हालांकि ईरान की ओर से भी जवाब दिया जा रहा है। इजरायल के कई शहर तबाही की ओर बढ़ गए। इस सबके बीच यह जानना जरूरी है कि इजरायल और ईरान के बीच ये नौबत क्यों आई? चलिए बताते

मध्य पूर्व में ईरान और इज़राइल के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है, जो अब एक प्रत्यक्ष सैन्य टकराव का रूप ले चुका है। यह संघर्ष दशकों पुरानी कटुता, विचारधाराओं के टकराव और क्षेत्रीय वर्चस्व की लड़ाई का परिणाम है।

 

हालिया घटनाक्रम और वर्तमान स्थिति

हाल के दिनों में, ईरान और इज़राइल के बीच सीधी भिड़ंत देखने को मिली है।

  • इज़राइल का ‘ऑपरेशन राइजिंग लॉयन’: इज़राइल ने ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर “ऑपरेशन राइजिंग लॉयन” के तहत हमले किए। इज़राइली दावों के अनुसार, इन हमलों में कई ईरानी परमाणु वैज्ञानिक और सैन्य कमांडर मारे गए। इन हमलों में ईरान के नतांज परमाणु संयंत्र जैसे महत्वपूर्ण ठिकानों को निशाना बनाया गया।
  • ईरान का जवाबी हमला: इज़राइल के हमलों के जवाब में, ईरान ने “ट्रू प्रॉमिस थ्री” नामक एक जवाबी कार्रवाई शुरू की, जिसमें इज़राइल पर 100 से अधिक मिसाइलें और ड्रोन दागे गए। ईरान ने दावा किया कि इन हमलों में इज़राइल के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया गया और तेल अवीव में भी इमारतों को नुकसान पहुंचा।
  • बढ़ता तनाव और धमकियां: दोनों देशों के बीच हमले और जवाबी हमले जारी हैं। इज़राइल ने ईरान को चेतावनी दी है कि यदि हमले जारी रहे तो तेहरान को जला दिया जाएगा। वहीं, ईरान ने अमेरिका सहित उन देशों को भी चेतावनी दी है जो इज़राइल के समर्थन में खड़े हैं, यह कहते हुए कि वे भी उनके निशाने पर होंगे।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया: इस संघर्ष ने मध्य पूर्व में क्षेत्रीय तनाव को चरम पर पहुंचा दिया है। कई देश, विशेष रूप से अमेरिका, इस स्थिति पर करीब से नज़र रख रहे हैं। भारत जैसे देश, जिनके हजारों नागरिक खाड़ी क्षेत्र में काम करते हैं, स्थिति की गंभीरता को लेकर चिंतित हैं।

         क्या है पृष्ठभूमि

  • 1979 की ईरानी क्रांति: 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद, शाह रजा पहलवी की पश्चिमी-समर्थक सरकार का तख्तापलट हो गया। नई इस्लामी सरकार ने इज़राइल के प्रति एक तीव्र विरोधी रुख अपनाया, उसे एक “ज़ायोनी शासन” करार दिया। इससे पहले, 1950 में ईरान ने इज़राइल को एक देश के रूप में मान्यता दी थी, लेकिन क्रांति ने इस रिश्ते को पूरी तरह बदल दिया।
  • प्रॉक्सी युद्धों का उदय: ईरान ने मध्य पूर्व में अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए विभिन्न प्रॉक्सी समूहों का समर्थन करना शुरू कर दिया, जिनमें लेबनान में हिजबुल्लाह, गाजा में हमास और फ़िलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (PIJ) शामिल हैं। इन समूहों का उपयोग इज़राइल के खिलाफ अप्रत्यक्ष युद्ध छेड़ने के लिए किया गया, जिससे ईरान सीधे तौर पर संघर्ष में शामिल हुए बिना इज़राइल पर दबाव बना सके।
  • परमाणु कार्यक्रम को लेकर चिंताएं: इज़राइल लंबे समय से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता रहा है। इज़राइल का मानना है कि ईरान परमाणु हथियार विकसित करने की कोशिश कर रहा है, जबकि ईरान का दावा है कि उसका कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है। इज़राइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर कई बार गुप्त हमले किए हैं और ईरानी परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या के आरोप भी लगे हैं।
  • सीरियाई गृहयुद्ध: सीरियाई गृहयुद्ध ने ईरान और इज़राइल के बीच तनाव को और बढ़ा दिया। ईरान ने सीरियाई सरकार का समर्थन किया और सीरिया में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ाई, जिसे इज़राइल ने अपनी सुरक्षा के लिए खतरा माना। इज़राइल ने सीरिया में ईरान समर्थित ठिकानों पर कई हवाई हमले किए हैं।

कुल मिलाकर, ईरान और इज़राइल के बीच का यह संघर्ष सिर्फ दो देशों के बीच की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह मध्य पूर्व की जटिल भू-राजनीति, धार्मिक और वैचारिक विभाजन और क्षेत्रीय वर्चस्व की महत्वाकांक्षाओं का प्रतिबिंब है। इस बढ़ते टकराव का पूरे क्षेत्र और वैश्विक सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका है।

यहां से शेयर करें