Moharram Celebrated: मोहर्रम दुनियाभर में मनाया जाता है। हालांकि ये कोई खुशी वाला त्यौहार नही है। इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है और शिया मुसलमानों के लिए यह महीना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह महीना पैगंबर मौहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत की याद दिलाता है। मोहर्रम सिर्फ एक महीना नहीं, बल्कि त्याग, बलिदान और अन्याय के खिलाफ खड़े होने का प्रतीक है।
मोहर्रम का क्या महत्व
बता दें कि मोहर्रम कुछ वर्षों से नही बल्कि सदियों से मनाया जा रहा है। इसका का इतिहास लगभग 1400 साल पुराना है। इसकी जड़ें कर्बला की घटना से जुड़ी हैं, जो 61 हिजरी 680 ईस्वीद्ध में इराक के कर्बला नामक स्थान पर घटित हुई थी।
इमाम हुसैन और कर्बला के मायने
पैगंबर मौहम्मद के नवासे इमाम हुसैन ने उस समय के शासक यज़ीद की वैधता को चुनौती दी थी। यज़ीद अपनी क्रूरता और इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ जाने के लिए जाना जाता था। इमाम हुसैन ने यज़ीद के सामने झुकने से साफ इनकार कर दिया, क्योंकि उनका मानना था कि ऐसा करना इस्लाम के मूल्यों एवं सिद्धांतो के साथ समझौता होगा।
अपने परिवार और कुछ निष्ठावान साथियों के साथ, इमाम हुसैन ने कूफ़ा की ओर कूच किया। जहाँ उन्हें समर्थन मिलने की आस थी। हालांकि, यज़ीद की सेना ने उन्हें कर्बला में घेर लिया। कई दिनों तक इमाम हुसैन और उनके साथियों को पानी और भोजन तक नही लेने दिया, कहा जाए तो पूरी तरह भूखा रहने पर मजबूर कर दिया। 10 मोहर्रम, जिसे रोज़.ए.आशूरा के नाम से जाना जाता है, यज़ीद की विशाल सेना और इमाम हुसैन के छोटे से समूह के बीच भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में इमाम हुसैन, उनके परिवार के सदस्य और उनके सभी साथी शहीद हो गए।
कर्बला केवल घटना नही बल्कि शहादत का संदेश
कर्बला की घटना सिर्फ एक युद्ध नहीं थी, बल्कि यह अन्याय, अत्याचार और अधर्म के खिलाफ खड़े होने का एक शक्तिशाली संदेश था। इमाम हुसैन ने अपनी जान देकर यह सिखाया कि सच्चाई और न्याय के लिए किसी भी हद तक जाना चाहिए, भले ही इसके लिए सबसे बड़ा बलिदान ही क्यों न देना पड़े। उनकी शहादत ने शिया मुसलमानों को एकजुट किया और उन्हें इस्लामी मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रेरित किया।
मोहर्रम का वर्तमान परिदृश्य और धार्मिक अनुष्ठान
मोहर्रम का महीना आते ही, पूरी दुनिया में शिया मुसलमान इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद करते हैं। इस महीने में कई धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।
मजलिस : मोहर्रम के दौरान, विशेष मजलिसें आयोजित की जाती हैं जहाँ इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों के जीवन और बलिदान पर तकरीर होती है। इन मजलिसों में नौहे (शोक गीत) मर्सिये (शोक कविताएं) पढ़े जाते हैं, जो सुनने वालों को भावुक कर देते हैं।
मातम : शिया मुसलमान अपनी छाती पीटकर और कभी.कभी ज़ंजीर का मातम करके अपना दुख व्यक्त करते हैं। यह इमाम हुसैन के बलिदान के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा और शोक का प्रतीक है।
ताज़िये: कुछ क्षेत्रों में, खासतौर से भारतीय उपमहाद्वीप में, इमाम हुसैन के रौज़े ;मकबरेद्ध की प्रतिकृतियां बनाई जाती हैं, जिन्हें ताज़िये कहा जाता है। ये ताज़िये जुलूसों में निकाले जाते हैं और अंत में कर्बला की याद में दफन किए जाते हैं या पानी में विसर्जित किए जाते हैं।
सबीलें: प्यासे कर्बला के शहीदों की याद में जगह.जगह पानी, शरबत और भोजन की सबीलें लगाई जाती हैं। जहाँ लोगों को दान में चीज़ें बांटी जाती हैं।
अलमरू इमाम हुसैन के काफिले के झंडे के प्रतीक के रूप में अलम जुलूस निकाले जाते हैं, जिनमें लोग श्रद्धापूर्वक भाग लेते हैं।
सामाजिक प्रभाव: मोहर्रम सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि इसका गहरा सामाजिक प्रभाव भी है। यह लोगों को एकजुट करता है और उन्हें त्याग, सहनशीलता और भाईचारे का पाठ सिखाता है। मोहर्रम के दौरान लोग धार्मिक शिक्षाओं एवं उपदेशों का पालन करते हैं और गरीबों और ज़रूरतमंदों की मदद करते हैं।
मोहर्रम का महीना हमें याद दिलाता है कि अधर्म पर धर्म की जीत हमेशा होती है। भले ही इसके लिए कितनी भी बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। यह हमें अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने और सच्चाई के लिए खड़े होने की प्रेरणा देता है। मोहर्रम का संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना 1400 साल पहले था। यह शांति, न्याय और मानवता के मूल्यों को बनाए रखने का आह्वान करता है।
कुल मिलाकर कहा जाए तो मोहर्रम शांति न्याय और मानवता को एक पंक्ति में लाकर खड़ा करता है भारत में सुन्नी समुदाय ताजिये निकालता है। ताजिये के दौरान अखाडे चलते हैं जो एक दूसरे से प्रतियोगिता करते भी दिखाई देते हैं।
दुनियाभर में क्यों मनाया जाता है मोहर्रम, शिया मुसलमानों के लिए क्यो है महत्वपूर्ण
