फिल्म DOUBLE-XL देखने का प्लान बना रहे हैं तो इसे जरूर पढ़ें-
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फिल्म DOUBLE-XL देखने का प्लान बना रहे हैं तो इसे जरूर पढ़ें-

बेटी की शादी देरी से होने की चिंता, बेटी का मोटापा, मसाज, फैशन आदि के इर्द-गिर्द घूमती यह फिल्म डबल एक्सएल को अगर आप देखने का प्लान बना रहे हैं तो इसकी कहानी की एक झलक आप अवश्य पढ़ें. हालांकि नवंबर महीने में रिलीज हुई ज्यादातर फिल्मों में डबल एक्सएल की कहानी को काफी सराहा जा रहा है. कई दर्शकों को यह फिल्म बोरिंग लग रही है तो कईयों को समाज में एक कुंठित सोच रखने वाले वर्ग के लिए तमाचा के रूप में यह फिल्म काफी रास आ रही है.

 

DOUBLE-XL की कहानी

कहानी इतनी सिंपल है कि आप या आपके घर का कोई न कोई सदस्य इससे खुद को आइडेंटिफाई किए बिना नहीं रह पाएगा। मेरठ की राजश्री त्रिवेदी (हुमा कुरैशी) गहरी नींद में क्रिकेटर शिखर धवन के साथ डांस करने का मीठा सपना देख ही रही होती है कि मां अलका कौशल हल्ला करके बेटी को जगा देती है। मां बेटी की शादी की चिंता में आधी हुई जा रही है। बेटी 30 पार कर चुकी है, मगर उसकी शादी नहीं हो रही और मां इसकी वजह बेटी का मोटापा मानती है, जबकि दादी शुभा खोटे और पिता कंवलजीत अपनी हष्ट-पुष्ट बेटी को लेकर कूल हैं। राजश्री को शादी का कोई शौक नहीं, उसे तो क्रिकेट रिप्रेजेंटर बनना है। हालांकि उसकी मां दिन-रात एक ही बात रटती रहती हैं कि इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, शादी कर लो। वहीं दूसरी तरफ फैशन डिजाइनर सायरा खन्ना (सोनाक्षी सिन्हा) है, जो अपना लेबल लॉन्च करने का सपना रखती है, उसका एक बॉयफ्रेंड है, जो जिम और फिटनेस का आशिक है। इन दोनों ही लड़कियों की परवरिश और सपने अलग हैं, मगर समाज और आस-पास के लोगों से उन्हें अपने मोटापे को लेकर एक ही तरह की हीनता महसूस होती है। सायरा अपने बॉयफ्रेंड के साथ मिलकर लंडन में अपना फैशन लेबल लॉन्च करने की तैयारी में ही है और उधर एक लीडिंग चौनल ने राजश्री को भी स्पोर्ट्स प्रेजेंटर के रूप में शार्ट लिस्ट कर लिया है, मगर तभी कुछ ऐसा होता है कि अपने साइज के कारण दोनों ही के सपने चूर-चूर हो जाते हैं। फिर उनकी जिंदगी में जोई (जहीर इकबाल) और श्रीकांत (महत राघवेंद्र) आते हैं और उनकी जिंदगी में बहुत कुछ बदलता है।

दर्शकों ने क्या कहा
सतराम रमानी निर्देशक के रूप में किरदारों और प्लॉट को डेवलप करने में कुछ ज्यादा ही वक्त लगा देते हैं। हालांकि इसमें दो अलग शहरों और परिवेश का चित्रण देखने को मिलता है और उम्मीद बंधी रहती है कि कहानी के विकास के साथ उस तरह की हैप्निंग्ज भी देखने को मिलेंगी। मगर मुद्दे को लेकर जिस तरह की संवेदनशीलता की उम्मीद की जाती है, वह एक पॉइंट पर आकर दोहराव में बदल जाती है। हालांकि डायरेक्टर और लेखक मुदस्सर अजीज कई मनोरंजक पल जुटाने में कामयाब रहे हैं। चुटीले डायलॉग्ज याद रह जाते हैं, मगर स्थितियां कहानी की धार को कम कर देते हैं। सेकंड हाफ में जिस चमत्कार की अपेक्षा की जाती है, वह दर्शक को नहीं मिलता और एक बेहद ही जरूरी मुद्दे वाली कहानी औसत बन कर रह जाती है। इसमें कोई शक नहीं कि फिल्म में कुछ स्ट्रॉन्ग मेसेज भी है, जो ये दर्शाता है कि अपने सपनों को पूरा करने के लिए शारीरिक रूप से बदलने के बजाय अपनी मानसिक कुंठा से छुटकारा पाना जरूरी है। सिनेमैटोग्राफर के रूप में में मिलिंद जोग ने अच्छा काम किया है। लंडन की खूबसूरती उनके कैमरे की आंख से खूब नजर आती है। फिल्म का साउंडट्रेक ठीक-ठाक है। एडिटिंग थोड़ी चुस्त हो सकती थी।

 

डबल एक्सएल का ट्रेलर

 

अभिनय के मामले में हुमा कुरैशी राजश्री की भूमिका में छा जाती हैं। हुमा ने अपने इंटरव्यू के दौरान ये बात स्वीकारी थी कि असल जिंदगी में फिल्मों में आने के बाद वे कैसे बॉडी शेमिंग का शिकार रही हैं। यही वजह है कि वे अपने किरदार के साथ पूरी तरह से ईमानदार नजर आती हैं। मेरठ जैसे छोटे शहर की प्लस साइज लड़की, जो अपनी औकात से बढ़कर सपने देखती है, को हुमा ने दिल से जिया है। शहरी लड़की के रूप में सोनाक्षी सिन्हा भी अपनी भूमिका के साथ इंसाफ करती हैं, मगर उनका चरित्र उतना लेयर्ड नहीं बन पाया है। दोनों अभिनेत्रियों की केमेस्ट्री पर्दे पर अच्छी लगी है। जोरावर रहमानी के चुलबुले किरदार में जहीर इकबाल मनोरंजन तो करते हैं, मगर कई जगहों पर ओवर एक्टिंग करते नजर आते हैं। श्रीकांत के रूप में महत रघुवंशी प्रोमिसिंग साबित हुए हैं। अलका कौशल 30 पार कर चुकी अनब्याही बेटी की मां के दर्द को बखूबी बयान करती हैं। शुभा खोटे और कंवलजीत छोटे-छोटे किरदारों में भी याद रह जाते हैं। सहयोगी कास्ट कहानी के अनुरूप है।

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