Noida News: सहकारी समितियों और पंचायत लेखा परीक्षा निदेशालय पर फिर उठे सवाल पदोन्नति में अनियमितता और नियम उल्लंघन के गंभीर आरोप विभागीय अधिकारियों ने किया पद का दुरुपयोग व नियमों की अनदेखी: रविंद्र कुमार

Noida News : उत्तर प्रदेश सरकार के वित्त विभाग के अधीन सहकारी समितियां एवं पंचायत लेखा परीक्षा निदेशालय एक बार फिर विवादों में आ गया है। नोएडा मीडिया क्लब में मंगलवार को आयोजित प्रेस वार्ता में विभागीय अधिकारियों पर पद का दुरुपयोग, नियमों की अनदेखी और मनमानी तरीके से पदोन्नतियां करने के गंभीर आरोप लगाए गए।
प्रेस वार्ता के दौरान व्हिसल ब्लोअर के रूप में सामने आए रविंद्र कुमार यादव ने आरोप लगाया कि निदेशालय में षड्यंत्रपूर्वक नियमावली से खिलवाड़ किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि विभाग में दक्षता और पारदर्शिता को दरकिनार कर कम योग्यता वाले वरिष्ठ सहायकों को आॅडिटर के पद पर प्रोन्नत किया गया, जिससे भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग की बू आती है। यादव ने बताया कि कुछ समय पूर्व विभाग में अनियमितताओं के चलते एक निदेशक को निलंबित किया जा चुका है, जिन पर नियमों के विरुद्ध पदोन्नति व तैनाती करने और शासनादेशों की अनदेखी के आरोप लगे थे। उनका आरोप है कि अब वही अनियमितताएं मौजूदा अधिकारियों द्वारा दोहराई जा रही हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सूचना के अधिकार  और आईजीआरएस के माध्यम से जानकारी मांगे जाने पर निदेशालय की ओर से स्पष्ट जवाब देने की बजाय गुमराह किया जाता है, जिससे पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं।
नियमावली में बदलाव से बढ़ी अनियमितता
यादव ने कहा कि विभाग में पहले 436 आॅडिटर पद थे जिन्हें बढ़ाकर 900 कर दिया गया, जबकि सीनियर आॅडिटर के 1307 पदों को घटाकर 664 कर दिया गया। इससे 10% कोटे की जगह 40 से 90 तक पदों पर मनचाही पदोन्नतियां की जा सकीं। उन्होंने बताया कि आॅडिटर पद के लिए निर्धारित शैक्षणिक योग्यता ‘स्नातक’ है, परंतु हाईस्कूल, इंटरमीडिएट और यहां तक कि प्रथमा जैसी योग्यता वाले वरिष्ठ सहायकों को भी प्रोन्नत कर दिया गया।
लोक सेवा आयोग से परामर्श नहीं लिया गया
उन्होंने स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश सरकार की 1954 की नियमावली के अनुसार ऐसे पदों पर पदोन्नति से पहले उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग या अधीनस्थ सेवा चयन आयोग से परामर्श लिया जाना अनिवार्य है। बावजूद इसके, निदेशालय द्वारा आयोग से कोई परामर्श नहीं लिया गया। रविंद्र कुमार यादव ने प्रदेश सरकार और वित्त विभाग से मांग की है कि पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए, जिससे भविष्य में इस प्रकार की मनमानी पर रोक लग सके।

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