ब्रिटिश काल के कानूनों में ऐसे संसोधन करेगी सरकार

ब्रिटिश काल के कानूनों में बदलाव करने के लिए सरकार अहम कदम उठा रही है। प्रस्तावित बदलावों में मॉब लिंचिंग, नाबालिगों पर यौन हमले, सामूहिक बलात्कार के लिए 20 साल की कैद के अलावा देशद्रोह के अपराध को रद्द करने के लिए मौत की सजा के प्रावधान शामिल हैं।

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को ब्रिटिश काल के भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने और मॉब लिंचिंग, नाबालिगों पर यौन हमलों के लिए मौत की सजा का प्रावधान करने के लिए विधेयक पेश किया। सामूहिक बलात्कार के लिए 20 साल की कैद के अलावा देशद्रोह का अपराध निरस्त किया जाएगा। शाह ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता विधेयक, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक और भारतीय साक्ष्य विधेयक को जांच के लिए संसदीय पैनल के पास भेजा जाएगा। भारतीय संहिता सुरक्षा विधेयक की धारा 150 स्पष्ट रूप से जून में भारत के विधि आयोग की राजद्रोह के लिए वैकल्पिक सजा को तीन से बढ़ाकर सात साल करने की सिफारिश को ध्यान में रखती है। आयोग ने सिफारिश की कि राजद्रोह पर 153 साल पुराने औपनिवेशिक कानून को बरकरार रखा जाए। इसने जोर देकर कहा कि कानूनी प्रावधान को निरस्त करने से देश की सुरक्षा और अखंडता पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

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आयोग ने आईपीसी की धारा 124ए (देशद्रोह कानून) में संशोधन का समर्थन किया, ष्ताकि प्रावधान की व्याख्या, समझ और उपयोग में अधिक स्पष्टता लाई जा सके। आयोग ने कहा कि राजद्रोह कानून, जिसमें अधिकतम आजीवन कारावास या तीन साल की सजा का प्रावधान है, में संशोधन किया जाना चाहिए ताकि वैकल्पिक सजा को सात साल तक बढ़ाया जा सके। इसने अदालतों को अधिनियम के पैमाने और गंभीरता के अनुसार राजद्रोह के मामले में सजा देने के लिए अधिक जगह देने का आह्वान किया।

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