Breaking News: नई दिल्ली: भारत में शाही बाघों की मौतों का सिलसिला चिंता का कारण बन गया है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2025 के पहले साढ़े पांच महीनों में देश में कुल 91 बाघों की मौत हो चुकी है। इसका अर्थ है कि हर महीने औसतन 17 बाघों की मौत हो रही है, जो बाघ संरक्षण के लिए गंभीर खतरे का संकेत है।
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इन मौतों के पीछे अवैध शिकार, क्षेत्रीय संघर्ष, मानव-वन्यजीव टकराव, रेल हादसे और प्राकृतिक कारण जिम्मेदार हैं। अगर यही रफ्तार बनी रही, तो यह आंकड़ा पिछले साल की 126 मौतों से भी ऊपर जा सकता है।
एनटीसीए के अनुसार, 2019 से 2023 तक देश में कुल 628 बाघों की मौत हुई थी। इस दौरान 2023 में सबसे अधिक 178, जबकि 2019 में 96 बाघों की जान गई थी।
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किन राज्यों में सबसे ज्यादा बाघों की मौत?
2025 में अब तक हुई 91 मौतों में से मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सबसे अधिक प्रभावित हैं:
महाराष्ट्र: 26 मौतें
मध्य प्रदेश: 24 मौतें
केरल: 9
असम: 8
उत्तराखंड: 7
कर्नाटक और उत्तर प्रदेश: 4-4
तेलंगाना: 1
संरक्षित क्षेत्रों से बाहर भी सुरक्षित नहीं बाघ
रिपोर्ट बताती है कि 42 बाघ संरक्षित क्षेत्रों में, जबकि 35 संरक्षित क्षेत्रों के बाहर मरे पाए गए। संरक्षण क्षेत्र के बाहर होने वाली मौतों के पीछे बिजली के झटके, अवैध शिकार, और मानव-पशु संघर्ष प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं।
चिंताजनक आंकड़े: शावकों की मौत भी शामिल
मृत बाघों में 14 शावक, 26 मादा और 20 नर शामिल हैं, जो प्रजनन क्षमता और बाघों के भविष्य के लिए खतरे की घंटी है।
डब्ल्यूपीएसआई का और भी गंभीर दावा
भारतीय वन्यजीव संरक्षण सोसायटी (WPSI) ने दावा किया है कि 2025 में अब तक कुल 120 बाघों की मौत हो चुकी है। इनमें 96 मौतें प्राकृतिक या मानव-जनित कारणों से और 24 मौतें अवैध शिकार और तस्करी से जुड़ी हैं।
बाघ संरक्षण में भारत की बड़ी भूमिका
हालांकि चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद भारत ने बाघों की संख्या बढ़ाने में उल्लेखनीय प्रगति की है। भारतीय वन्यजीव संस्थान के अनुसार, 2010 में 1,706 रही बाघों की संख्या 2022 तक बढ़कर 3,700 हो गई है।