महर्षि आश्रम की जमीन का मामला लखनऊ में क्यो बना रहा चर्चा का विषय

Maharshi Ashram’s land Dispute। नोएडा में महर्षि आश्रम है लेकिन चर्चाएं लखनऊ में हो रही है। बताया जा रहा है कि महर्षि को दी गई जमीन में कई नियमों की अनदेखी की गई। दरअसल, महर्षि की सीलिंग भूमि का मामला और उलझ गया है। नोएडा प्राधिकरण ने इस भूमि का एक हिस्सा पहले ही बेच दिया है, मगर राजस्व विभाग को रिकार्ड मुहैया नहीं कराया। नतीजतन, मामले में निर्णय लेने के लिए संबंधित फाइल उच्चस्तर पर भेज दी गई है।

इस नियम के तहत सरकार में निहित होती है जमीन
बता दें कि महर्षि आश्रम से जुड़ी कई संस्थाओं ने गौतमबुद्धनगर में बिना अनुमति निर्धारित सीमा 5.0586 हेक्टेयर से अधिक जमीन खरीदी थी। जिसके बाद पता चला कि अधिक क्रय की गई भूमि सरकार में निहित हो गई थी। दिसंबर-2022 में उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा-89 उपधारा (3) के तहत 5.0586 हेक्टेयर से अधिक भूमि के संक्रमण को प्राधिकृत किए जाने के लिए नया शासनादेश आया। इसमें कहा गया कि राजस्व विभाग संबंधित जिलाधिकारी से भूमि के विनियमितीकरण के लिए सर्किल रेट पार निर्धारित सीमा से अधिक भूमि के लागत के 10ः का आगणन लेगा।
ऐसे खुला पूरा मामला
बताया जा रहा है कि विनियमितीकरण के प्रस्ताव पर राजस्व मंत्री का आदेश या अनुमोदन लिया जाएगा। इस शासनादेश के तहत 1 मार्च 2024 को गौतमबुद्धनगर की 11 संस्थाओं को तहसील दादरी में 21.5721 हेक्टेयर जमीन वापस की गई। तभी इस जमीन में से 11 हेक्टेयर जमीन ही पूरी तरह क्लियर बताई जाती है। उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिक, 7 हेक्टेयर जमीन तो नोएडा प्राधिकरण ने थर्ड पार्टी (तीसरे पक्ष) को पहले ही दे दी थी, जिस पर बहुमंजिला इमारतों के बने होने की जानकारी भी शासन को अब मिली है। संस्थाओं के पक्ष में नामांतरण की बात आई तब ये मामले खुले।
सूत्रों की मानें तो अब उद्योग विभाग ने कहा है कि यह जानकारी नहीं दी जा सकती कि सीलिंग से निकली यह जमीन उसके अधिकार क्षेत्र में कैसे आई। वहीं, राजस्व विभाग का मत है कि अगर नोएडा प्राधिकरण ने यह जमीन वैध तरीके से नहीं ली है, तो इस जमीन को महर्षि आश्रम से जुड़ी संस्थाओं को वापस करने का विभाग का फैसला ठीक है। जानकारों का कहना है कि उद्योग विभाग अपने पक्ष में जमीन हस्तांतरण के वैध दस्तावेजों को प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। क्योंकि, राजस्व विभाग के पास ऐसा कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है, जिससे यह पता चलता हो कि यह जमीन उद्योग विभाग या नोएडा प्राधिकरण को दी गई है। फिलहाल मामला पूरी तरह उलझ गया है।

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