Birds’ Community Lifestyle News: प्रकृति की अनोखी दुनिया में पक्षी हमें जीवन का एक गहरा सबक सिखाते हैं। हर पक्षी की अपनी अलग पहचान होती है, लेकिन कुछ अकेले ही फलते-फूलते हैं, जबकि अधिकांश झुंड में रहकर खुशी और सुरक्षा पाते हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि पक्षियों की कॉलोनियां या समुदाय न केवल जीवित रहने का सबसे आसान तरीका हैं, बल्कि खुशहाल जीवन की मिसाल भी पेश करते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि “साथ में रहकर ही (जीवित रहना) सबसे मजबूत होता है”।
ओर्निथोलॉजी (पक्षी विज्ञान) के अनुसार, दुनिया भर में करीब 10,000 से अधिक पक्षी प्रजातियां हैं, जिनमें से लगभग 90 प्रतिशत सामाजिक व्यवहार दिखाती हैं। उदाहरण के लिए, फ्लेमिंगो अफ्रीका की झीलों में लाखों की संख्या में इकट्ठे होकर कॉलोनियां बनाते हैं। ये विशाल झुंड शिकारियों से बचाव के लिए एक-दूसरे पर नजर रखते हैं और भोजन की तलाश में सहयोग करते हैं। नेशनल जियोग्राफिक की रिपोर्ट्स बताती हैं कि अकेला फ्लेमिंगो आसानी से शिकार बन सकता है, लेकिन झुंड में उसकी उत्तरजीविता दर 80 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
इसी तरह, स्टार्लिंग पक्षी यूरोप और एशिया में शाम के समय हजारों की संख्या में उड़ान भरते हैं, जो ‘मुरमुरेशन’ नामक अद्भुत पैटर्न बनाते हैं। यह झुंड न केवल सुंदर दिखता है, बल्कि हवा के झोंकों से बचाव और ऊर्जा बचत का माध्यम भी है। ब्रिटेन की रॉयल सोसाइटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स (आरएसपीबी) के शोध से पता चलता है कि झुंड में रहने वाले स्टार्लिंग की जीवन अवधि अकेले रहने वालों से दोगुनी होती है। भारत में भी मैनां (स्टार्लिंग) पक्षी गांवों और शहरों में समूह बनाकर फसलें बचाते हैं और कीटों को नियंत्रित करते हैं।
भारतीय संदर्भ में, सारस क्रेन जैसे पक्षी जोड़ों में रहते हैं, लेकिन बड़े समूहों में प्रजनन कॉलोनियां बनाते हैं। उत्तर प्रदेश के इटावा और मैनपुरी इलाकों में सारस की कॉलोनियां किसानों के लिए वरदान हैं, क्योंकि ये कीट और सांपों को खाकर फसलों की रक्षा करती हैं। वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. असीम श्रीवास्तव कहते हैं, “पक्षी हमें सिखाते हैं कि व्यक्तिगत पहचान महत्वपूर्ण है, लेकिन सामूहिकता से ही खुशी और सुरक्षा मिलती है। कोविड महामारी के दौरान भी हमने देखा कि इंसान भी समुदायों में मजबूत हुए।”
हालांकि, कुछ पक्षी जैसे ईगल या उल्लू अकेले शिकार करते और सफल होते हैं। ये शक्तिशाली शिकारी अपनी ताकत पर भरोसा करते हैं, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि ऐसे पक्षियों की संख्या कुल प्रजातियों में मात्र 10 प्रतिशत है। क्लाइमेट चेंज और आवास विनाश के दौर में कॉलोनियां ज्यादा मजबूत साबित हो रही हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि सामुदायिक पक्षी प्रजातियां विलुप्ति के खतरे से बेहतर लड़ रही हैं।
पक्षी विशेषज्ञों का सुझाव है कि हम इंसान भी इनसे सीखें – व्यक्तिगत सफलता अच्छी है, लेकिन समुदाय में रहकर ही जीवन सबसे खुशहाल और सुरक्षित होता है। अगली बार जब आप पक्षियों का झुंड देखें, तो सोचिए: क्या हमारा समाज भी ऐसा ही मजबूत बन सकता है?

