- बच्चे का पेशाब डिस्चार्ज ठीक से न होने के कारण किडनी पर पड़ता है दबाव
- ऐसे में सर्जरी से ही हो सकता है समस्या का समाधान, देरी बढ़ा देती है परेशानी
Children care: नई दिल्ली । छोटे बच्चों को डायपर पहनाने की आदत उनकी किडनी पर बुरा प्रभाव डाल रही है। दरअसल डायपर कसा होने से बच्चे का लिंग सीधा नहीं रहता, परिणामस्वरूप पेशाब के दबाव में किडनी पर असर पड़ता है। विशेषज्ञों की माने तो अक्सर देखा गया है कि नवजात में पेशाब का रास्ता बंद होना, रास्ता ऊपर या नीचे होना, पेशाब बूंद-बूंद होकर आने की समस्या होती है, लेकिन डायपर के कारण समय पर इसके बारे में पता नहीं चल पाता। इसके कारण पेशाब का दबाव वापस किडनी पर पड़ता है जो उसपर बूरा प्रभाव डालता है। यदि समय पर इसका इलाज न कराया जाए तो किडनी भी खराब हो सकती है। इसके अलावा बच्चे की चाल भी खराब हो जाती है। यह समस्या कामकाजी माता-पिता, एकल परिवार में ज्यादा देखने को मिलती है।
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एम्स के बाल चिकित्सा सर्जरी विभाग की प्रोफेसर डॉ. शिल्पा शर्मा का कहना है कि 300 में से एक बच्चे के पेशाब का रास्ता सीधा नहीं होता। यदि सर्जरी करके इन बच्चों के पेशाब के रास्ते को सीधा नहीं करते तो पेशाब का वापस दबाव किडनी पर पड़ता है। इससे किडनी खराब हो सकती है। अक्सर देखा गया है कि माता-पिता इस तरफ ध्यान नहीं देते और नवजात को डायपर पहना देते हैं। धीरे-धीरे समस्या बढ़ जाती है। उनका कहना है कि बच्चे के पेशाब के रास्ते पर ध्यान देना चाहिए। यदि वह सीधा नहीं है तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इसे लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ाने से समस्या कम हो सकती है। डॉ. शर्मा ने कहा कि बच्चों की सर्जरी को कुशल डॉक्टरों से करवाई जानी चाहिए।
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समय पर पहुंचाएं अस्पताल
कई बार छोटे बच्चों की सांस की नली नहीं बनी होती है। ऐसे बच्चों को दूध पिलाने के दौरान मुंह में झाग बनता है। यदि किसी बच्चे के साथ ऐसा होता है तो उसे तुरंत एक घंटे के अंदर अस्पताल में इलाज के लिए लाना चाहिए। ऐसे नवजात की सर्जरी कर सांस की नली बनाई जा सकती है। लेकिन देखा गया है कि कई बार 5-6 दिनों तक बच्चों को अस्पताल नहीं लाया जाता और उन्हें निमोनिया तक हो जाता है। इससे बच्चे की मौत हो जाती है।
16 से 20 सप्ताह में चल जाता है परेशानी का पता
गर्भवती महिला का 16 से 20 सप्ताह के दौरान अल्ट्रासाउंड करके गर्भ में पल रहे बच्चे की स्थिति का पता लगाया जा सकता है। इसमें देखा जा सकता है कि बच्चे का लिंग, पेशाब की थैली या अन्य अंग बने हैं या नहीं। इसके अलावा डाफर्नेट हर्निया व अन्य का भी पता चल जाता है। यदि समय पर इसका पता चल जाए तो सर्जरी करके बच्चे को सुरक्षित किया जा सकता है। इस दौरान यह भी देखा जा सकता है कि भविष्य में बच्चे को कोई बीमारी हो सकती है या नहीं। इस जांच के बाद यदि बच्चे में ज्यादा दिक्कत होती है तो उसका गर्भपात भी किया जा सकता है।
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