अलीगढ़। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के कड़क कुलपति रहे जमीरउद्दीन शाह की आटोबायोग्राफी आ रही है। नाम है, द सरकारी मुसलमान। पुस्तक का नाम थोड़ा चौंकाता है। शाह स्पष्ट करते हैं, दो किस्म के लोग हैं। एक जो जमीर बेचते हैं। दूसरे हम जैसे, जो सरकारी नौकरी वाले हैं।
हमारे पास कोई अर्जी आती है तो नियम-कानून से निबटाते हैं। सिफारिश मानना ही नहीं है। ऐसे हैं, हम सरकारी मुसलमान हैं। हम इधर-उधर नहीं करते। सीधे चलते हैं। उन्होंने एएमयू के कार्यकाल को सबसे कठिन माना है। अंग्रेजी में लिखी बायोग्राफी का विमोचन पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी 13 अक्टूबर को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में करेंगे। शाह ने तमाम विवादों से दूरी बनाते हुए एएमयू की सिर्फ अच्छी यादें ही संजोयी हैं। कारण? कहते हैं, मैंने एएमयू का नमक खाया है बुराई तो कर ही नहीं सकता।
करीब 200 पेज की बायोग्राफी में 60 फोटो हैं। अंग्रेजी में लिखी पुस्तक का ङ्क्षहदी, उर्दू व अरबी में अनुवाद भी आएगा। सरधना (मेरठ) में जन्मे शाह की शुरुआती पढ़ाई परिवार के ही एक मदरसे में हुई। फिर, नैनीताल के संत जोसेफ स्कूल में पढ़े। 40 साल फौज में रहे और लेफ्टिनेंट जनरल होकर रिटायर हुए। सऊदी अरब व आर्मी ट्रिब्यूनल में जज भी रहे। 16 मई 2012 में एएमयू के कुलपति बने।
बायोग्राफी में भी लिखा है कि सेना से एएमयू अलग है। यहां मुखालफत होती है। एएमयू का कार्यकाल सबसे मुश्किल रहा। कई बार छात्रों से तकरार हुई। शाह ने एएमयू को नंबर वन बनाने की कोशिशों का बखान करते हुए यहां की इमारतों में सुधार, शोध-कार्य.खासकर नैनो तकनीक का जिक्र किया है। नैनो सेंटर उन्हीं के जमाने में बना। बोहरा समाज के धर्मगुरु सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन को एएमयू चांसलर बनाया।
शाह ने लिखा है कि एएमयू नहीं होती तो मुस्लिम अनपढ़ रह जाते। उनके छोटे भाई व फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के साथ चाचा, मामू आदि ने भी यहीं से पढ़ाई की है। मैं भी पढ़ता, गर फौज न गया होता। शाह ने कहा, जिंदगी में चार टोपी पहनीं। पहली फौज, दूसरी विदेश सेवा, तीसरी जज व चौथी शिक्षा की। देश व समाज सेवा के लिए हमेशा लड़ा, आगे भी लड़ूंगा।