गुजरात सरकार के उसे फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया जिसमें गुजरात सरकार की ओर से गोधरा कांड के वक्त बिलकिस बानो और उसके परिवार के 7 लोगों की हत्या करने वाले 11 लोगों को सजा पूरी होने से पहले ही आजाद करने का फैसला दिया था। 11 दोषी जेल से छूट गए और 15 अगस्त 2022 को उनका जेल से निकलते ही कुछ कथित संगठनों ने स्वागत भी किया। इतना ही नहीं वीडियो वायरल हुई जिसमें कुछ लोग इनको मिठाई भी खिला रहे हैं। इनके रिहा होने के खिलाफ बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। जिस पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने 8 जनवरी 2024 को सरकार के फैसले को गलत मानते हुए 11 दोषियों को वापस दो हफते में जेल में जाने का आदेश दिया। इसी आदेश पर दोषियो ने याचिका दायर की और कोर्ट से सिरेडर करने का वक्त मांगा। मगर अब सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि दोषियों 21 जनवरी तक सिरेंडर करे ेजेल जाना होगा। कोर्ट ने कहा कि जेल न जाने के ग्राउंड दमदार नहीं है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि दोषियों ने जो कारण बताए हैं, उनमें कोई दम नहीं है। पीठ ने कहा, हमने सभी के तर्कों को सुना। आवेदकों द्वारा आत्मसमर्पण को स्थगित करने और वापस जेल में रिपोर्ट करने के लिए दिए गए कारणों में कोई दम नहीं है। इसलिए अर्जियां खारिज की जाती हैं।
बिलकिस बानो मामले के पांच दोषियों ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से आत्मसमर्पण करने के लिए और समय मांगा था। सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में गुजरात सरकार द्वारा सजा में दी गई छूट को रद्द कर दिया था।
बता दें कि गुजरात सरकार ने इस हाईप्रोफाइल मामले के ग्यारह दोषियों को सजा में छूट दी थी। लेकिन, शीर्ष अदालत ने आठ जनवरी को इसे रद्द कर दिया था। इसके अलावा, अदालत ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि उसकी एक आरोपी के साथ मिलिभगत थी। दोषियों को 2022 के स्वतंत्रता दिवस पर समय से पहले रिहा किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने दो हफ्ते के भीतर दोषियों को फिर से जेल में डालने का आदेश दिया।
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चलिए लेकर चलते हैं बिल्किस बानो केस की कहानी की ओर
तारीख 3 मार्च 2002 जिस दिन बिलकिस बानो से गैंगरेप किया गया और उनके घर के 7 सदस्यों की हत्या कर दी गई। इस मामले में 5 मार्च 2002 को बिल्किस को गुजरात के पंचमहल जिले में रिलीफ कैंप में रखा गया जहां जिलाधिकारी जयंती रवि ने उनके स्टेटमेंट दर्ज किये। अप्रैल 2003 बिलकिस बानो ने कानूनी प्रक्रिया को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और सीबीआई जांच की मांग की। सुनवाई की गई और कई तारीख आगे बढती गई। 6 दिसंबर 2003 को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को सीबीआई को सौपने के आदेश कर दिए। 1 जनवरी 2004 को सीबीआई के डीएसपी केएन सिन्हा ने इस मामले की जांच ग्रहण की। जांच चलती रही। इसी बीच अगस्त 2004 को बिलकिस बानो केस गुजरात से महाराष्ट्र ट्रांसफर कर दिया गया। ऐसा लग रहा था कि गुजरात में इस केस की सही जांच नहीं हो पाएगी। हालांकि जांच सीबीआई कर रही थी मगर गुजरात का रोल ही खत्म कर दिया गया। 2016 को इस मामले में मुंबई हाई कोर्ट ने सुनवाई की और मई 2017 का दिन जब 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई। इतना ही नहीं इसमें पांच पुलिस ऑफिसर और दो डॉक्टर भी शामिल थे, जिन्हें आईपीसी की धारा 201 और 218 का दोषी करार दिया गया। जुलाई 2017 को इन पांचो पुलिस ऑफिसर्स के साथ डॉक्टर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया मगर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी।
अप्रैल 2019 को कोर्ट ने आदेश दिया कि बिलकिस बानों को 50 लख रुपए मुआवजा और उसके पसंद की रहने की जगह सरकार दे और साथ-साथ रोजगार दिया जाए। बिलकिस बानो को पूरी उम्मीद थी कि उसे न्याय ही मिलेगा और न्याय की प्रक्रिया में न्याय हो भी रहा था। जो पुलिस ऑफिसर थे उनको जो रिटायरमेंट के बाद लाभ मिलने थे वह बिलकिस बानों को मुआवजे के रूप में देने की बात कही गई। अगस्त 2022 को 11 दोषियों को गोधरा जेल से रिहा किया क्योंकि गुजरात सरकार ने उनकी सजा माफ कर दी। जब वह जेल से रिहा हुए तो कुछ लोगों ने उनका स्वागत भी किया और कथित संगठनों ने फूल मालाएं पहनाकर मिठाई बाटी खैर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया आरोपियो को तुरंत सिरेडर करना होगा। 21 जनवरी तक का समय दिया गया है।