शोर और ईयरफोन से बढ़ रही बहरेपन की समस्या : डा. मनोज कुमार
नोएडा । राष्ट्रीय बधिरता बचाव एवं रोकथाम कार्यक्रम (एनपीपीसीडी) के अंतर्गत सेक्टर 39 स्थित जिला चिकित्सालय में द्वितीय तल पर साउंड प्रूफ रूम बनाया जा रहा है। यह जानकारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डा. सुनील कुमार शर्मा ने दी। डा. सुनील कुमार शर्मा ने बताया कि साउंड प्रूफ रूम में आॅडियोमेट्री मशीन स्थापित की जा रही है। इस मशीन के जरिए बहरेपन की जांच की जाएगी ताकि समय से बहरेपन का चिकित्सकीय प्रबंधन किया जा सके। उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी एवं कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डा. आर पी सिंह ने बताया कि कान में लंबे समय तक संक्रमण बना रहना बहरेपन का सबसे आम कारण है। इसके अलावा उम्र बढ़ने के साथ भी श्रवण हानि होती है। अन्य कारणों में तेज आवाज, कान में चोट लगने से भी बहरेपन की शिकायत हो सकती है, कुछ मामलों में यह समस्या अनुवांशिक भी हो सकती है। कान के संक्रमण के मामले में विशेष सतर्कता बरतने की जरूरत होती है, लम्बे समय तक उपचार न मिलने पर बहरेपन का उपचार मुश्किल हो जाता है।
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उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत बहरेपन के लिए उत्तरदायी समस्या की जल्द पहचान, उपचार और निदान के उद्देश्य से राष्ट्रीय बधिरता बचाव एवं रोकथाम कार्यक्रम (एनपीपीसीडी) का संचालन किया जा रहा है। कार्यक्रम का उद्देश्य बीमारी या चोट लगने के कारण होने वाली बधिरता की रोकथाम और बहरेपन से पीड़ित सभी आयु वर्ग के व्यक्तियों को चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराना है। जिला अस्पताल के ईएनटी सर्जन डा. मनोज कुमार का कहना है कि बहरेपन का मुख्य कारण ध्वनि प्रदूषण है। तेज आवाज में संगीत सुनना, कारखानों में होने वाली तेज आवाज और वाहनों में इस्तेमाल होने वाले प्रेशर हॉर्न हमारी श्रवण शक्ति को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं और अधिक समय तक शोर में रहने पर बहरेपन की समस्या उत्पन्न हो जाती है। ईयर फोन ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है।
उन्होंने बताया कि कान में लंबे समय तक संक्रमण बने रहना भी बहरेपन का एक कारण है। गले में होने वाला संक्रमण कान तक पहुंच जाता है। इससे शुरूआत में कान में दर्द होता है और फिर कान बहने लगता है। कान के संक्रमण की अनदेखी न करें। ज्यादा दिनों तक संक्रमण रहने पर उपचार मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा उम्र बढ़ने के साथ भी श्रवण हानि होती है। अन्य कारणों में कान में चोट भी बहरेपन का कारण हो सकती है, कुछ मामलों में यह समस्या अनुवांशिक भी हो सकती है। प्रसव के समय लापरवाही के कारण भी शिशु बधिरता का शिकार हो सकता है, इसलिए प्रसव केवल प्रशिक्षित चिकित्सक की देखरेख में ही कराएं और बच्चे को सुनने में परेशानी होने पर उसका समय से उपचार कराएं।
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90 प्रतिशत काम हुआ पूरा
जिला वित्त एवं रसद सलाहकार आशुदीप ने बताया कि साउंड प्रूफ रूम का 90 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। उन्होंने बताया कि जिला अस्पताल के ईएनटी सर्जन डा. मनोज कुमार के निर्देशन में आॅडियोलॉजिस्ट और हियरिंग इम्पेयर इंस्ट्रक्टर मरीजों की जांच करेंगे।आशुदीप ने बताया कि गत माह अप्रैल में जनपद में कान की बीमारी की ओपीडी में 4337 मरीजों की स्क्रीनिंग की गयी, जिसमें 459 मरीज मिले, जिन्हें चिकित्सा की जरूरत थी। अलग-अलग उम्र के लोगों में सुनने की समस्या पायी गयी, जिनमें माइल्ड (हल्की), मोडरेट (मध्यम) सीवियर (गंभीर) और अति गंभीर समस्या पायी गयीं।