News : द टाइम्स ऑफ इंडिया में गृहमंत्री अमित शाह का इंटरव्यू प्रकाशित किया है। गृहमंत्री से सवाल पूछा गया था कि जस्टिस यशवंत वर्मा को जज के कुर्सी से हटाने को लेकर सरकार जितनी उत्सुकता दिखा रही है, क्या जस्टिस शेखर यादव के मामले में भी उतनी ही उत्सुकता लेगी?
गृहमंत्री ने जवाब दिया : यशवंत वर्मा का मामला भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है और वही जस्टिस शेखर यादव का मामला जज के आचरण ( conduct of a judge) से जुड़ा हुआ है ।दोनों मामलो में काफ़ी अंतर है। एक तरफ़ भ्रष्टाचार का मामला है और वही दूसरी तरफ़ अनुचित आचरण का, और दोनों मामले बिल्कुल अलग है। जज के अनुचित आचरण के मामले में फैसला सुप्रीम कोर्ट करता है, ऐसे मामलों में सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है ।
जबकि कानूनी रूप से यह है कि मामला चाहे भ्रष्टाचार का हो या जज के अनुचित आचरण का, संविधान दोनों में कोई भेद नहीं करता। दोनों स्थितियों में जज को हटाने की प्रक्रिया और कार्यवाही एक ही होती है।
क़ानून क्या कहता है : संविधान के अनुच्छेद 124(4) में जजों को पद से हटाने की क़ानूनी प्रक्रिया दी गई है। जिसमें कहा गया है कि जजों को सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर पद से हटाया जा सकता है। दोनों स्थिति में एक ही प्रक्रिया निर्धारित है। प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है। अगर राज्यसभा में आता है तो 50 सांसदों के हस्ताक्षर चाहिए और अगर प्रस्ताव लोकसभा में आता है तो 100 सांसदों। अगर प्रस्ताव दोनों सदनों से बहुमत से पास हो जाता है तो राष्ट्रपति पद से हटाने का आदेश जारी कर देते हैं!
इस बीच एक और प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस चाहें तो पहले इन हाउस इंक्वायरी कराकर आरोप जांच करते हैं। उन्हें आरोप सही लगता है तो सरकार को लिखते हैं कि आरोपी जज को पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू कर सकते है। जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले में यही प्रक्रिया अपनाई गई है। अपनी संसद में महाभियोग प्रस्ताव आया नहीं है। इसी मानसून सत्र लाने की कवायद चल रही है।
जस्टिस शेखर यादव के मामले में अपनी तरफ़ से सुप्रीम कोर्ट ने कोई जांच नहीं की! क्योंकि जब CJI जांच के लिए इन हाउस कमेटी का गठन करने वाले थे तब राज्य सभा सचिवालय से सुप्रीम कोर्ट को एक चिट्ठी गई जिसमें संदेश था कि इस मामले में जांच करने का अधिकार केवल राज्यसभा का है। राज्यसभा की ओर से भेजे गए पत्र में कहा गया था कि ऐसी किसी भी कार्यवाही के लिए संवैधानिक अधिकार पूरी तरह से राज्यसभा के सभापति के पास है ( क्योंकि जस्टिस शेखर यादव को हटाने प्रस्ताव पर राज्यसभा के 55 सांसदों ने हस्ताक्षर करके सभापति को भेज दिया था। ) इसलिए संसद और राष्ट्रपति ही इस पर निर्णय लेंगे। इस पत्र के बाद सीजेआई ने जांच की योजना को वहीं रोक दिया गया और मामला ख़त्म हो गया! .. जस्टिस यादव के खिलाफ उनको पद से हटाने के लिए राज्यसभा के 55 सांसदों के हस्ताक्षर वाला प्रस्ताव भी राज्यसभा के सभापति के पास गया था। वहाँ पर भी कुछ नहीं हुआ। कांग्रेस मांग कर रही है कि उस प्रस्ताव पर कार्रवाई की जाए।
संसद में जब जज को हटाने का प्रस्ताव आता है, तब प्रस्ताव स्वीकार होने के बाद एक जांच कमेटी गठन किए जाने का प्रावधान है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट के एक जज, हाईकोर्ट के एक जज और एक न्यायविद शामिल होते है , जो इन आरोपों की जांच करेंगे! जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले में अभी प्रस्ताव आया ही नहीं है। सरकार, CJI के द्वारा गठित इन हाउस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करना चाहती है विपक्ष इसका पुरजोर विरोध कर रहा है।