सलमा करती है हजारों यात्रियों की सुरक्षा, मां-बाप ने बेटा समझकर ही पाला
आज के इस युग में जब बेटियों को बचाने के लिए सरकार भी तरह तरह के कार्यक्रम चला रही है जब कोई मां-बाप बेटी को बेटे पाले तो हेरत होती है लेकिन ऐसेा हो रह है।ं लखनऊ के मल्हौर स्टेशन पर गेटमैन मिर्जा सलमा बेग बताती है कि 1 जनवरी 2013 को मैंने ड्यूटी जॉइन की तब से 10 साल हो गए प्रतिदिन वे अपनी डयूटी के प्रति सजग रहती हैं।
सलमा कहती है कि जब नौकरी में आई तो स्टेशन पर लोग कहते कि लड़की है एक दिन भी नौकरी नहीं कर पाएगी। इतने भारी वजन का गेट कैसे खोल पाएगी। वहां तो भीड़ भी होती है। बहुत मुश्किल होगा उसके लिए।
बाहर के लोग ही नही, रिश्तेदार भी कहते कि कहां लड़की को काम के लिए भेज रहे, वो भी रेलवे में। पर इन सब आशंकाओं को दूर करते हुए मैंने काम किया। अब वही लोग मुझ पर गर्व करते हैं। मेरे पापा गेटमैन थे वो भी मल्हौर में , लेकिन उन्हें परेशानी थी। कम सुनाई पड़ता था। इसलिए उन्होंने वीआरएस ले लिया। तब मैं उनकी जगह नौकरी में आ गई।
सलमा बताती है कि जब मैं ट्रेनिंग के लिए गई तो पहले दिन ही एडीअरएम से मिली थी। उन्होंने कहा कि लड़कियां तो अब पायलट बन रहीं हैं, जहाज उड़ा रही हैं तो गेटमैन का काम करने में क्या मुश्किल होगी।
यह सुनने के बाद मैंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। जब मुझे रेलवे क्रॉसिंग पर भेजा गया तब पापा भी साथ में थे। उन्होंने मुझे सिखाया, टेक्निकली कैसे काम किया जाता है।
शुरू में एक-दो दिन ही घबराहट जरूर हुई, फिर लगा कि यह मैं कर सकती हूं। जब ठान लिया तो फिर कभी कोई दिक्कत नहीं हुई।
अब मुझे बहुत अच्छा लगता है। अपना काम मेहनत से करती हूं। किसी के आगे हाथ नहीं फैलाती और न ही झुकती हूं। कमजोरी से बाहर निकल कर आई। हमारा काम इधर से सुनना और निकाल देना है। आज भी लोग कहते हैं, पर ध्यान नहीं देती।मां-बाप ने बेटियों को बेटा बनाकर पाला
मेरा जन्म मल्हौर में हुआ है। यहीं से पढ़ाई की है। हम दो बहनें हैं। मेरा कोई भाई नहीं हैं, लेकिन मां-बाप को बेटा होने का कभी अफसोस नहीं रहा। मां-बाप ने हमेशा बेटियों की बेटों की तरह पाला की। वो यही चाहते थे कि बच्चे कामयाब होकर निकलें।काम को कभी बोझ नहीं समझा
मैं अपने काम को खूब एन्जॉय करती हूं। हमारे पास फोन आता है कि गाड़ी आ रही है। गाड़ी का नंबर बताया जाता है। इसके बाद मैं गेट बंद कर देती हूं। गेट के अंदर कोई वाहन न आ पाए, कोई सिर न लड़ जाए, इसका ध्यान रखना होता है।
गेट बंद करने के बाद स्टेशन से पैनल लॉकिंग होती है। लॉक करने के बाद वहां पर चाबी सौंप देती हूं। वहां इंडिकेशन मिलता है सिग्नल का। गाड़ी जब गुजरती है तो ऑब्जर्व करती हूं कि ट्रेन से कोई हैंगिंग चीज तो नहीं लटक रही, चिंगारी तो नहीं निकल रही या कोई चिल्ला तो नहीं रहा। इससे हजारों यात्रियों की सुरक्षा होती हैं। ऐसे ही लोगों का विश्वास रेलवे के प्रति मजबूत है।