DELHI: गैंगरेप और हत्या मामलाः आरोपियों के बरी होने पर रो रहा समाज
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DELHI: गैंगरेप और हत्या मामलाः आरोपियों के बरी होने पर रो रहा समाज

Delhi: 10 वर्ष पूर्वांत किरन नेगी हत्याकांडरू फैसले से आहत समाज के लोगों की दिल्ली में हुई महत्वपूर्ण बैठक, रिव्यू पेटिशन के लिए बनाई लीगल कमेटी, गढ़वाल हितेशणी सभा अजय बिष्ट की अध्यक्षता में हुई सुझाव बैठक’

बिलकिश बानो केस में आरोपी बरी हुए और उनका कुछ लोगों ने फूल मामलाएं पहनाकर स्वागत भी कर दिया फोटों जमकर वायरल हुई लेकिन किसी भी शख्स ने विरोध करना तो दूर फैसले पर बोलना तक मुनासिफ नही समझा। अब एक और ऐसा फैसला आया है जिस पर पूरा समाज रो रहा है और आहत होने के साथ विरोध की तैयारी कर कर है। ये समाज में क्या संदेश देने की कोशिश की जा रही है।

दरसल, दिल्ली के नजफगढ़ क्षेत्र में 10 साल पहले हुए गैंगरेप और हत्या के मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने तीनों आरोपियों को बरी किये जाने वाले फैसले के से आहत उत्तराखंड समाज के लोगों ने आज दिल्ली के गढ़वाल भवन में गढ़वाल हितेशणी सभा के अध्यक्ष अजय बिष्ट की अध्यक्षता में महत्वपूर्ण बैठक की गयी।

ऐसे लड़ेंगे आगे की लड़ाई
इस दौरान में किरन नेगी के माता-पिता के साथ करीब 200 लोग शामिल हुए। बैठक में किरन नेगी के मामले आगे की लड़ाई कैसे लड़ी जाये इस पर सभी ने अपने अपने स्तर पर सुझाव दिये। जिनमें उत्तराखंड जर्नलिस्ट फोरम के अध्यक्ष सुनील नेगी, वरिष्ठ समाज सेवी एवं भाजपा मयूर विहार के जिलाध्यक्ष डॉ विनोद बछेती, गढ़वाल हितेशणी सभा के अध्यक्ष अजय बिष्ट, भवन के पूर्व महासचिव पवन मैठाणी, धीरेन्द्र प्रताप, भवन की सांस्कृतिक सचिव संयोगिता ध्यानी , एवं समाज के प्रमुख बुद्धिजीवी, पत्रकार अधिवक्ता,समाजसेवी आदि ने कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए।
प्रथम बिन्दूः इस मामले में रिव्यू पेटिशन डालकर इस केस को दुबारा ओपन किया जाये। दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा यह था कि अब जब कि तीनों आरोपी बरी हो चुके हैं और जैसा कि किरन नेगी के माता पिता का कहना है कि आरोपियों ने उनको पहले ही जान से मारने की धमकी दी थी। तो अब उनके परिवार को सुरक्षा कौन देगा। इसके अलावा एक और सुझाव था कि इस मुद्दे को देश का मुद्दा बनाया जाये न कि उत्तराखंड का। ज्यादातर लोगों ने कहा कि इस मुद्दे को पहाड़ या उत्तराखंड की बेटी बोलकर सीमित ना किया जाये बल्कि इस मुद्दे को अब देश की बेटी बनाकर एक बड़ा आन्दोलन बनाकर चलाने की जरुरत है।

जिसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के सेक्रेटरी एडवोकेट संदीप शर्मा की अध्यक्षता में एक लीगल कमेटी बनाई गयी है। इसमें कौन कौन सदस्य होंगे इसका फैलसा जल्दी ही लिया जायेगा। यह कमेटी सुप्रीम कोर्ट के कल दिए गए फैसले की रिव्यू पेटिशन डालेगी।
बैठक में कहा गया कि 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली का निर्भया कांड भी इसी तरह का था। परन्तु जब वह देश का मुद्दा बना तो करीब 7 साल बाद तीनों आरोपियों को फांसी की सजा मिली। और नजफगढ़ की निर्भया के केस में 10 साल बाद आरोपी बरी कर दिए गए।

लोगों का यह भी कहना था कि केस हमारे देश की न्याय प्रणाली पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा रहा है। लोगों का कहना है कि कोर्ट से ज्यादातर मामलों में फांसी की सजा तब मिलती है जब अपराध रेयर ऑफ रेयरेस्ट की श्रेणी में आता हो। और किरन नेगी के केस में निचली अदालतों (जिला कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट) ने इस केस को भी रेयर ऑफ रेयरेस्ट की श्रेणी का मानते हुए आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी। जाहिर सी बात है कि कोर्ट ने आरोपियों के इबाले जुर्म वाले बयान भी लिए ही होंगे। तो फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को 8 साल तक लटकाने के बाद इन आरोपियों को कैसे बरी कर दिया, अगर सुप्रीम कोर्ट को यह मामला फांसी की सजा के लायक नहीं लग रहा था तो कम से कम उम्र कैद तो दी होती। लोगों का कहना है कि या तो निचली अदालतों का फैसला गलत था, या फिर सुप्रीम कोर्ट का फैसला गलत है। पर कुल मिलाकर यह पूरी न्याय पालिका पर सवाल खड़े करने जैसा है।

उच्चतम न्यायालय का फैसला के बाद उत्तराखंड मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एवं उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट सहित पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की प्रतिक्रिया मीडिया ध्सोसल मीडिया की द्वारा आयी है ।
दिल्ली के छावला इलाके में 10 साल पहले उत्तराखंड की बेटी के साथ दुष्कर्म और हत्या के तीनों आरोपियों के बरी होने पर प्रवासियों से लेकर राज्य तक रोष है। सोशल मीडिया पर लगातार तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। अब इस मामले का संज्ञान सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष तक ने लिया है। सीएम धामी ने कहा कि बेटी को न्याय दिलाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। तो पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत, हरीश रावत और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, उपाध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप की प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हें।
बता दें कि वर्ष 2012 के दिल्ली के छावला इलाके में दरिंदों ने उत्तराखंड की 19 वर्षीय बेटी के अपहरण कर दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी थी। यह निर्भया जैसा मामला था। इन वहशी दरिंदों को जिला और उच्च न्यायालय ने सजा ए मौत की सजा सुनाई थी। लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट में जाने के बाद जो फैसला सामने आया, उसने सभी को स्तब्ध कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तीनों आरोपियों को बरी कर दिया है।
सीएम ने मामले पर लिया संज्ञान 
मीडिया रिपोर्र्ट्स के मुताबिक इस प्रकरण का मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने संज्ञान लिया है। उन्होंने यह केस देख रही वकील और केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू से भी बात की है। कहा कि पीड़ित बेटी को इंसाफ दिलाने के भी सब कुछ करेंगे।

पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ये दिया सुझाव
पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सुझाव दिया है कि उत्तराखंड की बेटी को न्याय दिलाने के लिए राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करनी चाहिए।

बोले हरिश रावत
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आरोपियों के बरी होने पर चिंता जताई हैं कहा कि दरिंदगी के जिम्मेदार आरोपियों को जिला न्यायालय और फिर उच्च न्यायालय ने सजा-ए-मौत दी थी, पर वो बरी हो गए हैं। यह निर्भया हत्याकांड जैसा केस था।

बैठक में दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के महासचिव एडवोकेट संदीप शर्मा, जगदीश ममंगई, डॉ.विनोद बछेती, अजय बिष्ट, पवन कुमार मैठाणी, महावीर सिंह राणा, देवेन्द्र जोशी, रामचन्द्र सिंह भण्डारी, प्रकाश जोशी, लक्ष्मण सिंह रावत, बृजमोहन उप्रेती, उदय सिंह नेगी, कुसुम कंडवाल भट्ट, दिगमोहन सिंह नेगी, हरीश असवाल, हरीश अवस्थी, अनिल पंत, मनवर सिंह रावत, चारू तिवारी, वी.एन. शर्मा, सतेंद्र रावत, सुनील नेगी, टीएस भंडारी, देवेन्द्र बिष्ट, ललित ढौंडियाल, लक्ष्मी नेगी, वीना नयाल, रोशनी चमोली, रेनू जखमोला उनियाल, प्रेमा धोनी, सुधीश नेगी सहित सैकड़ों लोग रहे।

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