जम्मू कश्मीर में लगातार पर्यटन बढ़ता जा रहा था। जो लोग डर के साए में घूमने जा रहे थे वो अब निडर हो चुके थे। पुलवामा के बाद पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। देश वासियों को केवल धर्म दिखाकर क्या न्यूज चैनल सरकार को जवाबदेही से बचा सकते हैं? जब से हमला हुआ है तब से ऐसा ही सिनेरियो बनाया जा रहा है। सरकार से सवाल करने की बजाय एक विशेष समुदाय को इस तरह से पेश किया जाने लगा लगा है। जिससे कि लोग सरकार से सवाल करने की बजाय उसी में उलझकर रह जाए। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं। दैनिक भास्कर अखबार की एक रिपोर्ट पहले ही प्रकाशित की गई थी, जिसमें आतंकवादियों के नए नए मॉड्यूल के बारे में बताया गया था। इतना ही नहीं खबर लिखने वाले पत्रकार ने ये भी बताया था कि अब स्थानीय लोगों का आतंकवादियों से संपर्क शून्य हो गया है और लोग ज़रा भी आतंकी गतिविधियों में शामिल होने वाले किसी भी व्यक्ति को देखना नहीं चाहते। पहलगाम में सरेआम कतल ए आम वारदात को अंजाम देकर दरिंदे वापस चले गए लेकिन कई सवाल छोड़ गए।
पहला सवाल सरकार बार बार दावा करती रही कि कश्मीर से आतंकवाद उखाड़ कर फेंक दिया है। आखिर सरकार किस बिना पर ये दावा कर रही थी।
दूसरा सवाल आतंकवाद को खत्म करने के ठोस कदमों में से एक नोटबंदी को बताया गया। क्या नोटबंदी का आतंकवादियों पर असर पड़ा ये सरकार को बताना चाहिए।
तीसरा सवाल पहलगाम में भारी संख्या में पर्यटक जाते हैं जहाँ पर्यटक थे वहाँ सुरक्षा के नाम पर ना तो पुलिस और ना ही आर्मी जवान मौजूद था। आखिर ऐसा क्यों
भारत इंटेलिजेंस सिस्टम फेल!
क्या भारत इंटेलिजेंस सिस्टम फेल हो चुका है। आखिर हमले से पहले आतंकवादियों रेकी की होगी और अपना पूरा प्लान बनाया होगा। ये सब क्यों पता नहीं चल सका
धारा 370 हटाई गई और दावा किया गया अब यहाँ आतंकवाद खत्म हो जाएगा। तो क्या आतंकवाद पर कुछ असर पड़ा? ये सभी सवाल एक आमजन के मन में बार बार उठा रहे हैं लेकिन खबरिया चैनल है इस मामले को मजहबी रंग देने में जुटे हैं।