MACT: नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरणों (एमएसीटी) और श्रम न्यायालयों के लिए एक ऐतिहासिक और प्रणालीगत बदलाव लाने वाला आदेश पारित किया है। अब मुआवज़े की राशि सीधे दावेदारों के बैंक खातों में जमा की जाएगी, जिससे लंबे समय से बिना दावे पड़ी अरबों रुपये की राशि का इस्तेमाल अपने असली हकदारों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी।
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इस स्वतः संज्ञान मामले में न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने माना कि हजारों दावेदार मुआवज़े की राशि से वंचित रह जाते हैं क्योंकि वे समय पर दावा नहीं कर पाते या प्रक्रिया की जानकारी नहीं होती।
चौंकाने वाले आँकड़े:
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गुजरात: एमएसीटी में ₹282 करोड़ और श्रम न्यायालयों में ₹6.61 करोड़ से अधिक बिना दावे के पड़ा है।
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उत्तर प्रदेश: श्रम न्यायालयों में ₹92 करोड़ से अधिक की राशि।
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महाराष्ट्र, गोवा, पश्चिम बंगाल में भी करोड़ों की राशि वर्षों से पड़ी है, जिसका लाभ दावेदारों को नहीं मिल पाया।
अदालत के आदेश की मुख्य बातें:
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एमएसीटी और श्रम न्यायालय मुआवज़े की राशि सीधे बैंक खातों में ट्रांसफर करेंगे।
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दावेदारों से बैंक विवरण माँगना अनिवार्य होगा।
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उच्च न्यायालयों को एक डैशबोर्ड बनाने का आदेश, जिस पर मुआवज़े की अद्यतन जानकारी उपलब्ध होगी।
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जिला और तालुका विधिक सेवा प्राधिकरणों तथा अर्ध-कानूनी स्वयंसेवकों की मदद से पात्र दावेदारों की पहचान की जाएगी।
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राशि तब तक राष्ट्रीयकृत बैंक में सावधि जमा में रखी जाएगी, जब तक कि वह दावेदार को न मिल जाए।
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उच्च न्यायालयों को 30 जुलाई 2025 तक अनुपालन रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपनी होगी।
इस बदलाव का महत्व:
यह फैसला न्याय प्रणाली में पारदर्शिता, तेज़ वितरण, और वंचितों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि यह केवल शुरुआत है और यदि आवश्यक हो तो आगे भी निर्देश जारी किए जाएंगे।
यह निर्णय ना सिर्फ मुआवज़े की प्रक्रिया को तकनीकी रूप से मज़बूत बनाएगा, बल्कि उन लाखों दावेदारों के लिए राहत लाएगा जो वर्षों से अपने हक की राह देख रहे हैं।
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