दिल्ली हाई कोर्ट में ‘हवाई चप्पल’ पर जंग, रिलैक्सो की जीत

Aqualite/Relaxo News: आम आदमी की रोज़मर्रा की हवाई चप्पल भी अब डिज़ाइन कॉपीराइट की लड़ाई का हिस्सा बन गई है। दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसले में रिलैक्सो फुटवियर्स लिमिटेड की मशहूर “स्पार्क्स” सीरीज़ की हवाई चप्पल के सोल (तलवे) के ख़ास रिज (उभरे हुए पैटर्न) को मूल और रचनात्मक डिज़ाइन मानते हुए उसे संरक्षण दिया। कोर्ट ने इंडिया फुटवियर लिमिटेड (एक्वालाइट ब्रांड) को इस डिज़ाइन की नकल करने का दोषी ठहराया और स्थायी रूप से रोक लगा दी।

मामला क्या था?
रिलैक्सो ने 2018 में अपने स्पार्क्स मॉडल के सोल का डिज़ाइन रजिस्टर कराया था। इस डिज़ाइन की ख़ासियत थी तलवे में अनोखे आकार की रिजें (लहरदार, त्रिकोणीय और आयताकार पैटर्न का संयोजन) जो देखने में अलग थीं और पकड़ भी बेहतर देती थीं। कंपनी का दावा था कि एक्वालाइट ने लगभग हुबहू इसी पैटर्न की चप्पलें बाज़ार में उतार दीं।

कोर्ट ने क्या पाया?
जस्टिस संजीव नरुला की बेंच ने दोनों कंपनियों की चप्पलों की तुलना की और पाया कि:
• दोनों के रिज पैटर्न में मामूली फ़र्क़ को छोड़कर लगभग पूरा डिज़ाइन एक जैसा है।
• एक्वालाइट ने रिलैक्सो की रजिस्टर्ड डिज़ाइन की जानबूझकर नकल की है।
• साधारण हवाई चप्पल होने के बावजूद इसमें “बौद्धिक रचनात्मकता” (intellectual creativity) मौजूद है, इसलिए ये डिज़ाइन्स एक्ट, 2000 के तहत संरक्षित है।

कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि “हर रोज़ इस्तेमाल होने वाली वस्तु होने का मतलब ये नहीं कि उसमें मौलिकता नहीं हो सकती।”
फैसले के मुख्य बिंदु
1. एक्वालाइट को रिलैक्सो के रजिस्टर्ड डिज़ाइन की नकल वाली कोई भी चप्पल बनाने, बेचने या विज्ञापित करने पर स्थायी रोक।
2. एक्वालाइट को 10 लाख रुपये का हर्जाना देना होगा।
3. उसकी कॉपी की हुई चप्पलों का स्टॉक नष्ट करना होगा।
4. मामले की पूरी कानूनी फीस भी एक्वालाइट को ही देनी होगी।

कानूनी अहमियत
यह फैसला भारत में रोज़मर्रा के उत्पादों (जैसे चप्पल, बिस्किट के आकार, पानी की बोतल आदि) के डिज़ाइन संरक्षण को मज़बूत करता है। कोर्ट ने माना कि अगर कोई डिज़ाइन बाज़ार में पहले से मौजूद नहीं है और उसमें न्यूनतम मौलिकता है, तो वो कॉपीराइट के दायरे में आएगा, चाहे उत्पाद कितना भी साधारण क्यों न हो।

रिलैक्सो के वकील ने इसे “रिजों की जंग में जीत” बताया तो सोशल मीडिया पर लोग इसे “हवाई चप्पल की शान की लड़ाई” कहकर मज़े ले रहे हैं। लेकिन कानूनी विशेषज्ञ इसे डिज़ाइन कानून की एक मिसाल मान रहे हैं।

तो अगली बार जब आप 50-100 रुपये वाली हवाई चप्पल खरीदें, तो उसकी रिजें भी ग़ौर से देखिएगा – पता चले वो किसी कोर्ट केस की हीरो हों!

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