Noida सीईओ की कार्रवाई दोगली नीतिः छोटो पर सितम बड़ों रहम आखिर क्यों
Noida प्राधिकरण की मुख्य कार्यपालक अधिकारी रितु माहेश्वरी आजकल शहर को साफ सुथरा बनाने और अधूरे कामों को जल्द से जल्द पूरा कराने के लिए औचक निरीक्षण करती हैं। यह अच्छी बात है इससे काम की गुणवत्ता बढ़ती है और तरीके से अधूरे पड़े काम पूरे होते हैं। लेकिन संबंधित कर्मचारियों और अधिकारियों पर हो रही कार्यवाही को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं? जनमानस में कहा जा रहा है सीईओ की कार्रवाई पर दोगली नीति है। जिन लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए, उन्हें समयबद्ध केवल प्रतिकूल प्रविष्टि देकर माफ कर दिया जाता है। जबकि कॉन्ट्रैक्ट वाले जेई और सुपरवाइजर को सस्पेंड कर घर बैठा दिया जाता है।
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सवाल यह है कि क्या केवल किसी काम में लापरवाही या गुणवत्ता में कमी समयबद्ध तरीके से ना होने के लिए जेई और सुपरवाइजर ही जिम्मेदार हैं? इनके ऊपर बैठे मोटी तनख्वा लेने वाले मैनेजर और वरिष्ठ मैनेजर की जवाबदेही क्यों नहीं होती। ऐसा कहा जा रहा है कि जेई और सुपरवाइजर कॉन्ट्रैक्ट पर होते हैं इन्हें सस्पेंड कर देने से व्यवस्था पर खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। सीनियर मैनेजर और मैनेजर सस्पेंड हो गए तो नीचे वाले अपने आप सर्तक हो जाएंगे। जो हमारा थंब रूल है यानी ऊपर से सही काम होगा तो नीचे तक वह काम अच्छा होता रहेगा और वह मजबूत हो भी हो जाएगा। लेकिन सीईओ जब दौरा करने जाती हैं तो उनके गुस्से का शिकार केवल नीचे वाले कर्मचारियों को ही होना पड़ रहा है। जिम्मेदारी केवल नीचे वाले लोगों की मानी जाती है, लेकिन सीईओ को समझना चाहिए कि जो इनको सुपर विजन कर रहा है। उस अफसर की भी जिम्मेदारी है जवाब दीजिए। प्रतिकूल प्रविष्टि देने से सीनियर मैनेजर और मैनेजर पर केवल छोटा असर पड़ेगा। उनका समयबद्ध तरीके से प्रमोशन नहीं हो पाएगा।
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ऐसा भी बताया जाता है कि सुपरवाइजर और जेई के माध्यम से सीनियर मैनेजर मैनेजर अपनी जेब भरते हैं। जब बात काम में गुणवत्ता की आती है तो अपनी जिम्मेदारी नीचे वालों पर डाल दी जाती है। यहा एक और सवाल है, विभिन्न कार्यों की फाइलें चलती है जेई से लेकर सीनियर मैनेजर तक फाइल जाती है और इन फाइलों पर सभी लोग हस्ताक्षर कर देते हैं। क्या बिना पढ़े फाइलों पर हस्ताक्षर हो रहे हैं या फिर सांठगांठ करके तेरी भेजो मेरी भी चुप वाली कहानी चल रही है। सीईओ रितु माहेश्वरी को उनके ही अधिकारी गुमराह कर देते हैं। हालांकि सीईओ काम के मामले में तेजतर्रार हैं और तथ्यों को समझती हैं। यही कारण है कि सरकार उन पर पूरा भरोसा करती है और उनसे जवाबदेही भी लेती है। उनके नोएडा और ग्रेटर नोएडा में टिके रहने का सबसे बड़ा फार्मूला यही है। मगर सीईओ को अपनी कार्रवाई की दोगली नीति बदलनी होगी। जनता में सीईओ की एक ईमानदार अफसर की छवि है। इस पर कभी किसी ने भी सवाल नही उठाएं है।