पुरानी संसद का आज आखिरी दिनः भावुक हुए पीएम मोदी, इतिहास पर डाला प्रकाश
पुरानी संसद में आज यानी सोमवार को संसद की कार्यवाही का आखिरी दिन है। कल यानी मंगलवार से संसद की कार्यवाही नए संसद भवन में होगी। पीएम मोदी ने इस भवन में 50 मिनट की आखिरी भाषण दिया। पीएम मोदी ने कहा कि देश 75 वर्षों की संसदीय यात्रा का एक बार फिर से संस्मरण कराने के लिए और नए सदन में जाने के लिए उन प्रेरक पलों को, इतिहास की अहम घड़ी को स्मरण करते हुए आगे बढ़ने का ये अवसर है। हम सब, इस ऐतिहासिक भवन से विदा ले रहे हैं।
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प्रधानमंत्री मोदी कहा कि आजादी के बाद इस भवन को संसद भवन के रूप में पहचान मिली। इस इमारत का निर्माण करने का फैसला विदेशी शासकों का था। हम गर्व से कह सकते हैं कि इस भवन के निर्माण में पसीना और परिश्रम मेरे देशवासियों का लगा था। पैसे भी मेरे देश के लोगों के लगे। केंद्र सरकार ने 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र बुलाया है। विशेष सत्र में पांच बैठकें होंगी। इस दौरान चार बिल पेश किए जाएंगे। उधर विपक्षी पार्टियों ने सरकार से सवाल-जवाब करने के लिए 9 मुद्दों की लिस्ट तैयार की है। विपक्षी पार्टियों गठबंधन I.N.D.I.A से 24 पार्टियां इस बैठक में हिस्सा लेंगी।
यहां से विदाई लेना एक बेहद भावुक पल है, परिवार भी अगर पुराना घर छोड़कर नए घर जाता है तो बहुत सारी यादें उसे कुछ पल के लिए झकझोर देती हैं। हम इस सदन को छोड़कर जा रहे हैं, तो हमारा मन मस्तिष्क भी उन भावनाओं से भरा हुआ है और अनेक यादों से भरा हुआ है। उत्सव-उमंग, खट्टे-मीठे पल, नोक-झोंक इन यादों के साथ जुड़ा है।
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पीएम मोदी ने कहा कि मैं पहली बार जब संसद आया… जब पहली बार एक सांसद के रूप में इस भवन में मैंने प्रवेश किया तो सहज रूप से मैंने संसद भवन की चैखट पर अपना शीश झुका दिया। इस लोकतंत्र के मंदिर को श्रद्धाभाव से नमन करते हुए मैंने पैर रखा था। वह पल मेरे लिए भावनाओं से भरा हुआ था। मैं कल्पना नहीं कर सकता, लेकिन भारत के लोकतंत्र की ताकत है, कि रेलवे प्लेटफॉर्म पर गुजारा करने वाला एक बच्चा पार्लियामेंट पहुंचता है। मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि देश मुझे इतना सम्मान देगा।श्हर वर्ग का प्रतिनिधि विविधताओं से भरारू श्हमारे यहां संसद भवन के गेट पर लिखा है, जनता के लिए दरवाजे खोलिए और देखिए कि कैसे वो अपने अधिकारों को प्राप्त करते हैं। हम सब और हमारे पहले जो रहे वो इसके साक्षी रहे हैं और हैं। वक्त के साथ संसद की संरचना भी बदलती गई।