लोकतंत्र के चौथे स्थान यानि पत्रकारिता पर आघात पहुंच रहा है। कश्मीर में राइजिंग कश्मीर के संपादक सुजात बुखारी की दफ्तर से निकलते वक्त आतंकियों ने गोली मारकर हत्या कर दी। नेताओं ने तुरंत ट्विटर पर अफसोस भी जताया। लेकिन सवाल यह है कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकारें क्या कर रही हैं? क्या सच्चाई लिखने वाले पत्रकार इसी तरह गोलियों का निशाना बनते रहेंगे। बेंगलुरु में गौरी लंकेश और नागालैंड में रिपोर्टिंग करते वक्त पत्रकार को मार डाला। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश में भी पत्रकार की कलम से डर कर बदमाशों ने उन्हें जला दिया था। एक के बाद एक हो रही वारदातें कई तरह के सवाल खड़े कर रही है। विपक्षी दल लोकतंत्र को खतरे में बता रहे हैं। जबकि सरकार दावे कर रही है कि वह हर व्यक्ति को सुरक्षा दे रही है। कश्मीर में सुजात बुखारी की हत्या ने निर्भीक पत्रकारों की कार्यशैली को संकट में डाल दिया है। यदि कोई पत्रकार सच्चाई लिखना चाहेगा या दुनिया के सामने बड़े घोटाले को उजागर करेगा तो हो सकता है कि उसे जान से हाथ धोना पड़े। जरूरत है कि सरकार पत्रकारों की सुरक्षा के लिए भी गाइडलाइन बनाए, ताकि वह निडर होकर अपने काम को अंजाम दे सके। वैसे तो मीडिया का अस्तित्व खतरे में बताया जा रहा है। मीडिया के क्षेत्र में कई उद्योगपति आ चुके हैं और वे अपने निजी हितों के लिए खबरों से समझौता करने के लिए भी पत्रकारों पर दबाव बनाते हैं। सरकार के प्रतिनिधि भी पत्रकारों पर तरह-तरह से डोरे डालते हैं। बात नहीं बनने पर डराया जाता है, धमकाया जाता है और फिर भी बात नहीं बने तो मार दिया जाता है। अंतरर्राष्टï्रीय स्तर पर प्रेस फ्रीडम के मामले में भारत 180 देशों में से 138वें स्थान
पर है।