राजनीतिक पृष्ठभूमि और जीत का सफर
सानाए ताकाइची, जो नारा प्रान्त से आती हैं, 1993 से जापान की संसद की निचले सदन में सदस्य हैं। वे पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की करीबी सहयोगी रही हैं और कठोर रूढ़िवादी (हार्डलाइन कंजर्वेटिव) के रूप में जानी जाती हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा ने इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद एलडीपी के नेतृत्व चुनाव में ताकाइची ने कृषि मंत्री शिनजिरो कोइजुमी सहित अन्य दावेदारों को हराया। दूसरे दौर के मतदान में उन्हें 149 वोट मिले, जबकि कोइजुमी को 145।
ताकाइची ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर को अपना आदर्श मानती हैं। उन्होंने अपनी जीत के बाद कहा, “मैं वर्क-लाइफ बैलेंस की धारणा को त्याग दूंगी। हमें काम, काम, काम करना होगा।” वे आर्थिक सुरक्षा मंत्री रह चुकी हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा तथा विदेश नीति पर सख्त रुख अपनाती हैं। उनकी जीत एलडीपी के लिए एक नई शुरुआत का संकेत है, जो हाल के चुनावों में घोटालों और महंगाई के कारण अपनी बहुमत खो चुकी है।
महिलाओं की नाराजगी
ताकाइची का प्रधानमंत्री बनना जापान जैसे देश के लिए मील का पत्थर है, जहां महिलाओं का राजनीति में प्रतिनिधित्व बहुत कम है। लेकिन फेमिनिस्ट समूहों और महिलाओं में खुशी की बजाय गुस्सा है। वजह यह है कि ताकाइची लिंग समानता के मुद्दों पर रूढ़िवादी दृष्टिकोण रखती हैं। वे 19वीं सदी के उस कानून का समर्थन करती हैं, जो विवाहित जोड़ों को एक ही उपनाम (सरनेम) अपनाने के लिए बाध्य करता है। जापान में 96% मामलों में महिलाओं को ही पति का नाम लेना पड़ता है, जो उनकी पहचान को प्रभावित करता है।
वासेदा विश्वविद्यालय की राजनीति विज्ञान प्रोफेसर मिएको नाकाबायशी ने कहा, “ताकाइची फेमिनिस्ट कारणों के लिए अक्सर बाधा बनी रही हैं।” ताकाइची ने समलैंगिक विवाह का विरोध किया है और जापान के पारंपरिक परिवार तंत्र को मजबूत करने की वकालत करती हैं। वे एलडीपी के उस गुट की प्रमुख रही हैं, जो वैवाहिक जोड़ों के अलग-अलग सरनेम की अनुमति देने वाले विधेयक के खिलाफ थी। फेमिनिस्ट कार्यकर्ता उन्हें “जापान की मार्गरेट थैचर” कहते हैं, लेकिन प्रगतिशीलता की बजाय रूढ़िवादिता का प्रतीक मानते हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार, ताकाइची ने कभी लिंग समानता पर ज्यादा चर्चा नहीं की। बल्कि, वे यासुकुनी मंदिर (द्वितीय विश्व युद्ध के युद्ध अपराधियों को समर्पित) के नियमित दर्शन के लिए जानी जाती हैं, जो चीन और दक्षिण कोरिया के साथ तनाव बढ़ाता है। फॉरेन पॉलिसी पत्रिका में छपी एक राय में कहा गया, “उनकी सफलता रूढ़िवादी आत्मसाति की जीत है, न कि लिंग समानता की।”
चुनौतियां और भविष्य की दिशा
प्रधानमंत्री बनने पर ताकाइची को बूढ़ी होती आबादी, आप्रवासन पर बढ़ती चिंताओं, महंगाई और अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों का सामना करना पड़ेगा। वे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ हुए निवेश सौदे का सम्मान करने का वादा कर चुकी हैं। साथ ही, वे विदेश यात्राओं पर जोर देंगी ताकि “जापान वापस आ गया है” का संदेश फैलाएं।
हालांकि, एलडीपी के आंतरिक कलह और विपक्ष की मजबूती के कारण उनकी राह आसान नहीं होगी। ताकाइची ने कहा, “खुशी मनाने का समय नहीं, असली चुनौतियां आगे हैं।” जापानी महिलाओं के लिए यह सवाल बना हुआ है कि क्या ताकाइची की नियुक्ति वास्तविक बदलाव लाएगी या सिर्फ सतही प्रगति साबित होगी।

