महंगाई के बीच राहत की खबर, खाने के तेल के दामों में भारी गिरावट
नई दिल्ली. महंगाई की मार झेल रही जनता के लिए एक राहत की खबर आई है शनिवार से खाने के तेल के दामों में गिरावट देखा गया है। देश में सस्ते आयातित तेलों की बहुतायत होने से दिल्ली तेल तिलहन बाजार में शनिवार को लगभग सभी तेल तिलहन कीमतों में गिरावट देखने को मिली. बाजार सूत्रों ने कहा कि अगर सस्ते आयातित तेलों की यही दशा बनी रही तो देश के सोयाबीन और आगामी सरसों की फसल किसी भी सूरत में खप नहीं पाएगी और यह तेल तिलहन मामले में आत्मनिर्भरता के सपने पर चोट होगी. सूत्रों ने कहा कि देश में नरम तेलों की भरमार है तथा कुछ हल्कों में यह गलतफहमी बनी हुई है कि सूरजमुखी और सोयाबीन के दाम में पर्याप्त अंतर है.
सूत्रों ने कहा कि सस्ते आयातित तेलों से बाजार पटा रहा तो लगभग 42 प्रतिशत तेल हिस्सेदारी वाले सरसों की इस बार लगभग 125 लाख टन की संभावित पैदावार की खपत कहां हो पाएगी. तेल कीमतें सस्ती होने पर खल कीमतें महंगी हो जाती हैं क्योंकि तेल कारोबारी तेल के घाटे को पूरा करने के लिए खल के दाम को बढ़ाकर पूरा करते हैं. खल, डीआयल्ड केक (डीओसी) के महंगा होने से पशु आहार महंगे होंगे और दूध, दुग्ध उत्पादों के दाम बढ़ेंगे और अंडे, चिकेन महंगे होंगे.
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सरकार ने एमएसपी में की वृद्धि
मौजूदा वर्ष सरकार ने सरसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि की है. सरसों का जो एमएसपी पहले 5,000 रुपये प्रति क्विंटल था, वह बढ़ाकर 5,400 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है. सूत्रों के मुताबिक, सस्ते आयातित तेलों का मौजूदा हाल ही बना रहा तो सरसों की खपत नहीं हो पाएगी और सरसों एवं सोयाबीन तिलहन का स्टॉक बचा रह जाएगा. यह स्थिति भी एक अलग विरोधाभास को दर्शाती है.
सूत्रों ने कहा कि सरकार को शुल्कमुक्त आयात की कोटा प्रणाली से जल्द छुटकारा पा लेना चाहिए क्योंकि इसका कोई औचित्य नहीं है. जब इस व्यवस्था को लागू किया गया था तब खाद्य तेलों के दाम टूट रहे थे. लेकिन इस व्यवस्था से जो खाद्य तेल कीमतों में नरमी आने की अपेक्षा की जा रही थी वह अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) के मनमाने निर्धारण की व्यवस्था से निष्प्रभावी हो गई.