बिना चुनाव के कैसे बनी मंत्री पद?
20 नवंबर को पटना के गांधी मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में नीतीश कुमार ने रिकॉर्ड 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। नई कैबिनेट में 26 मंत्रियों को जगह मिली, जिसमें आरएलएम कोटे से दीपक प्रकाश का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में रहा। दिलचस्प यह है कि दीपक न तो विधायक हैं, न विधान परिषद (एमएलसी) के सदस्य। फिर भी, उन्हें विधान परिषद कोटे से मंत्री बनाया गया। संवैधानिक नियमों के तहत उन्हें अगले छह महीनों में किसी सदन का सदस्य बनना होगा, वरना पद से हटना पड़ सकता है।
उपेंद्र कुशवाहा ने एक चैनल को दिए इंटरव्यू में साफ शब्दों में बताया कि बेटे को मंत्री बनाने का फैसला पार्टी की स्थिरता के लिए लिया गया। उन्होंने कहा, “2014 में मेरी पुरानी पार्टी (रालोसपा) के तीन सांसद जीते थे, लेकिन दो बाद में चले गए। 2015 में दो विधायक जीते, वे भी भाग गए। परिवार के सदस्य को पद देकर ऐसा खतरा टाला जा सकता है।” कुशवाहा ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर आलोचकों को जवाब देते हुए लिखा, “सवाल जहर का नहीं था, वो तो मैं पी गया। तकलीफ उन्हें बस इस बात से है कि मैं फिर से जी गया।” यह बयान महाभारत के जहर पीने वाले घटना से प्रेरित लगता है, जहां वे कहते हैं कि आलोचना से डरने की जरूरत नहीं।
परिवार का राजनीतिक विरासत
दीपक प्रकाश का जन्म एक राजनीतिक परिवार में हुआ है। उनके पिता उपेंद्र कुशवाहा राज्यसभा सांसद हैं, तो मां स्नेहलता कुशवाहा हाल ही में सासाराम विधानसभा सीट से एनडीए की टिकट पर जीती हैं। दीपक ने विदेश से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और राजनीति में नए हैं। लेकिन उनका चुनावी रिकॉर्ड सुनकर हैरानी होती है। हालिया बिहार विधानसभा चुनाव में वे अपनी मां की बजाय सासाराम सीट पर एक निर्दलीय उम्मीदवार रामायण पासवान के काउंटिंग एजेंट बने थे। रामायण को महज 327 वोट मिले और उनकी जमानत जब्त हो गई। फिर भी, दीपक उसी चुनाव के बाद सीधे मंत्री बन गए। सोशल मीडिया पर यह बात वायरल हो गई, जहां लोग मजाक उड़ा रहे हैं कि “जिसकी जमानत जब्त हुई, उसके एजेंट मंत्री बन गए!”
विपक्ष का तीखा प्रहार
आरजेडी ने दीपक की नियुक्ति को परिवारवाद का प्रतीक बताते हुए एक लिस्ट जारी की, जिसमें नीतीश सरकार के कई मंत्रियों को ‘वंशवादी’ ठहराया। पार्टी प्रवक्ता ने कहा, “बिना चुनाव लड़े मंत्री बनना लोकतंत्र का अपमान है।” एक्स पर भी बहस छिड़ी हुई है। एक यूजर ने लिखा, “परिपक्व लोकतंत्र की निशानी? पिता सांसद, मां विधायक, बेटा मंत्री – और क्या योग्यता चाहिए?” तो दूसरे ने सतर्क किया, “यह सौदेबाजी है, योग्यता नहीं।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला एनडीए के सीट बंटवारे के दौरान कुशवाहा की नाराजगी दूर करने का प्रयास था। आरएलएम को छह सीटें मिलीं, जिनमें से चार पर जीत हुई। एक अतिरिक्त एमएलसी का वादा भी किया गया, जिसके तहत दीपक को जगह मिली। पंचायती राज विभाग का बजट 11,302 करोड़ रुपये है, जो ग्रामीण विकास की योजनाओं को मजबूत करने का माध्यम बनेगा।
आगे की राह
दीपक प्रकाश को युवा चेहरा माना जा रहा है, जो राजनीति में बदलाव ला सकते हैं। लेकिन परिवारवाद के सवालों के बीच उन्हें साबित करना होगा कि वे जनहित में काम कर सकते हैं। कुशवाहा परिवार की यह नई पीढ़ी बिहार की ‘लव-कुश’ समीकरण को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। फिलहाल, सोशल मीडिया पर मीम्स और बहस जारी है, लेकिन असली परीक्षा तो ग्रामीण बिहार के विकास में होगी। क्या दीपक ‘जहर पीकर जीने’ वाले पिता की तरह चुनौतियों से पार पा लेंगे? समय ही बताएगा।

