भारत और रूस के संबंधों का इतिहास: अमेरिका की धमकी का प्रभाव!

India and Russia relations: भारत और रूस के संबंध दशकों पुराने और ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहे हैं। ये संबंध केवल व्यापार और रक्षा तक सीमित नहीं हैं, बल्कि रणनीतिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पहलुओं को भी समाहित करते हैं। हाल के वर्षों में, विशेष रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद, अमेरिका ने भारत पर रूस से दूरी बनाने के लिए दबाव बढ़ा दिया है, जिससे इन संबंधों की जटिलता और बढ़ गई है।

1. भारत-रूस संबंधों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

  • शीत युद्ध काल (1947-1991): भारत की स्वतंत्रता के बाद से ही सोवियत संघ (अब रूस) भारत का एक विश्वसनीय और मजबूत सहयोगी रहा है। पश्चिमी देशों की शत्रुता के समय में, सोवियत संघ ने भारत को रणनीतिक, सैन्य और आर्थिक सहायता प्रदान की। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान सोवियत संघ का समर्थन भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। इस दौरान, भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन का पालन करते हुए भी सोवियत संघ के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखे।
  • सोवियत संघ के विघटन के बाद (1991 के बाद): सोवियत संघ के विघटन के बाद भी, भारत और रूस के संबंध मजबूत बने रहे। 1993 में मैत्री और सहयोग की संधि पर हस्ताक्षर किए गए। 2000 में दोनों देशों ने एक रणनीतिक साझेदारी की स्थापना की, जिसे 2010 में “विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी” के स्तर तक बढ़ाया गया।
  • रणनीतिक सहयोग: रूस भारत के परमाणु, रक्षा, अंतरिक्ष और भारी उद्योग क्षेत्रों के विकास में एक महत्वपूर्ण भागीदार रहा है। भारत के शस्त्रागार में लगभग 62% हथियार रूसी मूल के हैं, और दोनों देशों के बीच संयुक्त अभिकल्पना और रक्षा प्रौद्योगिकी के उत्पादन में भी सहयोग है।

2. अमेरिका की धमकी और उसका प्रभाव

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका ने रूस पर व्यापक प्रतिबंध लगाए हैं और अन्य देशों से भी रूस के साथ व्यापारिक और सैन्य संबंधों को कम करने का आग्रह किया है। भारत, जो रूस से तेल और हथियार का एक बड़ा आयातक है, अमेरिकी दबाव का सामना कर रहा है।

  • टैरिफ और आर्थिक दबाव: हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और चीन जैसे देशों पर रूस के साथ व्यापार करने पर सख्त टैरिफ लगाने की धमकी दी है। उन्होंने चेतावनी दी है कि रूस से तेल और हथियार खरीदने वाले देशों पर अमेरिका आयातित सामानों पर 25% तक का भारी टैरिफ लगाएगा। भारत पर यह टैरिफ लागू भी हो चुका है, जिससे फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल और आईटी जैसे भारतीय उत्पादों की कीमत अमेरिका में बढ़ गई है, जिससे भारत का निर्यात प्रभावित हो सकता है।
  • सैन्य सौदे: अमेरिका को भारत और रूस के बीच दशकों पुराना रक्षा सहयोग, विशेष रूप से S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम का सौदा, पसंद नहीं है। भारत ने 2018 में रूस से पांच S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदने का $5.43 बिलियन का सौदा किया था, जिससे भारत की वायु सुरक्षा को जबरदस्त ताकत मिली है। अमेरिका इस सौदे को लेकर अपनी चिंताएं व्यक्त करता रहा है और प्रतिबंधों की धमकी भी देता रहा है।
  • तेल आयात: रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत ने रूस से सस्ते कच्चे तेल का आयात तेजी से बढ़ाया है। अमेरिका का मानना है कि इस आयात के चलते युद्ध के दौरान रूस की अर्थव्यवस्था को समर्थन मिल रहा है। अमेरिकी सीनेटर लिंडसे ग्राहम जैसे नेताओं ने भारत, चीन और ब्राजील को रूस के साथ संबंधों की भारी कीमत चुकाने की धमकी दी है।
  • भारत की रणनीतिक स्वायत्तता: इन धमकियों के बावजूद, भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने पर जोर दे रहा है। भारत ने अमेरिका की चेतावनी को खारिज करते हुए रूस को उच्च श्रेणी का HMX विस्फोटक निर्यात किया है, जिसका उपयोग ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों में होता है। यह कदम भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का एक मजबूत संकेत है। भारत का कहना है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार फैसले लेगा और किसी भी बाहरी दबाव में नहीं आएगा।

3. वर्तमान भारत-रूस संबंध और चुनौतियाँ

  • व्यापार में बदलाव: पहले भारत-रूस व्यापार मुख्य रूप से हथियारों पर आधारित था, लेकिन अब यह तेल पर केंद्रित हो गया है। हालांकि, भारत के रक्षा आयात का एक तिहाई हिस्सा अब भी रूस से आता है, लेकिन कुल व्यापार में तेल की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
  • भू-राजनीतिक संतुलन: भारत, अमेरिका और रूस दोनों के साथ अपने संबंधों में संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। एक ओर, भारत क्वाड जैसे मंचों के माध्यम से अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर रहा है, तो दूसरी ओर, रूस के साथ अपने ऐतिहासिक और रणनीतिक संबंधों को भी महत्व दे रहा है।
  • रूस-चीन धुरी का डर: भारत के रूस के साथ रिश्ते रूस को पूरी तरह से चीन के पाले में जाने से रोकने का भी काम करते हैं। अगर रूस पूरी तरह से चीन के प्रभाव में चला जाता है, तो यह विश्व व्यवस्था, खासकर पश्चिमी देशों के लिए बहुत नुकसानदेह होगा।
  • भविष्य की संभावनाएं: भारत और रूस अभी भी कई क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाएं तलाश रहे हैं, जिनमें ऊर्जा, अंतरिक्ष और प्रौद्योगिकी शामिल हैं। भारत के अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में भी रूस के लिए साझेदारी के अवसर हैं।

कुल मिलाकर, भारत-रूस संबंध एक जटिल और बहुआयामी समीकरण है, जिसे अमेरिका के दबाव के बावजूद भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए संतुलित करने का प्रयास कर रहा है। यह देखना होगा कि भविष्य में ये संबंध किस दिशा में आगे बढ़ते हैं और भारत इस भू-राजनीतिक उथल-पुथल में कैसे अपनी जगह बनाता है।

 

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