High Court: ‘मुख्यमंत्री का पद कोई औपचारिक पद नहीं’

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High Court:  नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली नगर निगम के स्कूलों में बच्चों को किताबें उपलब्ध न होने के मामले पर दिल्ली सरकार को फटकार लगाई है। कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि मुख्यमंत्री का पद कोई औपचारिक पद नहीं है। मुख्यमंत्री को किसी भी संकट या प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध रहना पड़ता है। राष्ट्रीय और सार्वजनिक हित इसी में है कि इस पद पर बैठा कोई भी व्यक्ति लंबे समय तक गैर हाजिर न हो। हाई कोर्ट ने कहा कि मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का फैसला केजरीवाल का अपना है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अगर मुख्यमंत्री उपलब्ध नहीं हैं तो छोटे बच्चों को नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकें एवं यूनिफॉर्म के बिना रहना पड़े। हाई कोर्ट ने कहा कि दिल्ली के शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज के इस बयान में सच्चाई है कि दिल्ली नगर निगम के आयुक्त की वित्तीय शक्ति में किसी भी तरह की बढ़ोतरी के लिए मुख्यमंत्री की मंजूरी की आवश्यकता होगी। यह बयान इस बात को स्वीकार करने के बराबर है कि मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति के कारण दिल्ली सरकार ठप्प पड़ी हुई है।

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हाई कोर्ट ने दिल्ली नगर निगम आयुक्त को निर्देश दिया कि वो रुपये की सीमा से बाधित हुए बिना बच्चों को दी जाने वाली सामग्री को पूरा करने के लिए आवश्यक कदम उठाए। हाई कोर्ट ने दिल्ली नगर निगम के आयुक्त को 14 मई तक इस मामले में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। हाई कोर्ट इस मामले पर 15 मई को सुनवाई करेगा।
इस मामले पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने केजरीवाल पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था कि केजरीवाल व्यक्तिगत हितों को राष्ट्रीय हितों से ऊपर रख रहे हैं। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली सरकार की रुचि केवल सत्ता हथियाने में है और मनी लांड्रिंग में गिरफ्तारी के बावजूद इस्तीफा न देकर वे अपने व्यक्तिगत हितों को राष्ट्रीय हितों से ऊपर रख रहे हैं। कोर्ट ने कहा था कि स्कूलों में किताब और यूनिफॉर्म वितरण कोर्ट का काम नहीं है। हम ये काम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इसे करने वाले नहीं कर रहे हैं।

हाई कोर्ट ने 22 जनवरी को नोटिस जारी किया था। सोशल जूरिस्ट संस्था की ओर से वकील अशोक अग्रवाल ने याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम के स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को शिक्षा के अधिकार कानून के तहत मिलने वाली सुविधाएं जैसे यूनिफॉर्म, शिक्षण सामग्री इत्यादि नहीं मिल रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि राइट आॅफ चिल्ड्रन टू फ्री एंड कंपल्सरी एजुकेशन एक्ट, दिल्ली राइट आॅफ चिल्ड्रन टू फ्री एंड कंपल्सरी रूल्स और दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट के नियमों के मुताबिक बच्चों को शिक्षण सत्र के शुरू में ही स्कूल यूनिफॉर्म, शिक्षण सामग्री इत्यादि सुविधाएं मिल जानी चाहिए। याचिका में कहा गया है दिल्ली सरकार के स्कूलों में पढ़ने वाले 2,69,488 छात्र और दिल्ली नगर निगम में पढ़ने वाले 3,83,203 छात्र शिक्षा के अधिकार कानून के तहत मिलने वाले वैधानिक सुविधाओं से वंचित हैं। याचिका में मांग की गई है कि दिल्ली सरकार और दिल्ली नगर निगम को दिशा-निर्देश जारी किए जाएं कि वे अपने स्कूलों में पढ़ने वाले सभी छात्रों का बैंक खाता होना सुनिश्चित करें और शिक्षा के अधिकार कानून के तहत मिलने वाली वैधानिक राशि को उनके बैंक खाते में समय पर ट्रांसफर करें।

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