Does the COVID vaccine pose a risk of paralysis?: भोपाल में स्ट्रोक मरीजों की संख्या में चौगुना इजाफा, सरकार ने खारिज किया सीधा संबंध

Does the COVID vaccine pose a risk of paralysis?: कोविड-19 महामारी के बाद वैक्सीनेशन अभियान ने करोड़ों जानें बचाईं, लेकिन अब कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि कोविड वैक्सीन से लकवा (पैरालिसिस) या स्ट्रोक जैसी न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। खासकर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 2017 के मुकाबले 2025 तक लकवा के मरीजों की संख्या चार गुना बढ़ चुकी है। विपक्षी दलों ने सरकार पर सवाल उठाए हैं, लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि वैक्सीन से ऐसा कोई सीधा जोखिम सिद्ध नहीं हुआ है। आइए, इस मुद्दे पर उपलब्ध आंकड़ों और विशेषज्ञों की राय के आधार पर विस्तार से जानते हैं।

भोपाल में लकवा मरीजों का बढ़ता आंकड़ा: क्या कहते हैं आंकड़े?
भोपाल के प्रमुख अस्पतालों और स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 2017 में लकवा या स्ट्रोक से जुड़े मामलों की संख्या करीब 1,200 थी। लेकिन 2025 तक यह संख्या बढ़कर लगभग 4,800 हो चुकी है। यह इजाफा महामारी के बाद की लाइफस्टाइल बदलावों, तनाव, अस्वास्थ्यकर खान-पान और कोविड संक्रमण के लंबे प्रभावों (लॉन्ग कोविड) से जुड़ा बताया जा रहा है।

मध्य प्रदेश स्वास्थ्य विभाग की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड के बाद हृदय रोग और न्यूरोलॉजिकल समस्याओं में 20-30% की वृद्धि हुई है। भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज और हमीदिया अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. राजेश कुमार ने बताया, “स्ट्रोक के केस बढ़े हैं, लेकिन ज्यादातर मरीजों में हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और धूम्रपान जैसे जोखिम कारक पाए गए। वैक्सीनेशन से कोई सीधा संबंध नहीं दिखा।” हालांकि, कुछ स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स ने वैक्सीन को जोड़ते हुए चिंता जताई है, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं।

सरकार का रुख: वैक्सीन सुरक्षित, खतरा नहीं बढ़ा
केंद्र सरकार ने संसद में एक लिखित जवाब में स्पष्ट किया है कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अध्ययन से साबित हुआ है कि कोविड वैक्सीन से युवाओं में अचानक मौत या न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का जोखिम नहीं बढ़ा। स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा, “कोविड संक्रमण के बाद अस्पताल में भर्ती होने का पारिवारिक इतिहास और जीवनशैली कारक ही अस्पष्ट मौतों या स्ट्रोक का मुख्य कारण हैं। वैक्सीन ने लाखों जानें बचाई हैं।”

आईसीएमआर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी (एनआईई) के 19 राज्यों के अध्ययन में पाया गया कि वैक्सीनेशन से हार्ट अटैक या लकवा का खतरा इससे नहीं जुड़ा हुआ है। हालांकि, एस्ट्राजेनेका (कोविशील्ड) वैक्सीन से दुर्लभ मामलों में रक्त के थक्के (TTS) बनने की संभावना को कंपनी ने स्वीकार किया है, लेकिन भारत में ऐसे केस बेहद कम (1 लाख में 0.5-6.8) हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (CDC) के आंकड़ों के मुताबिक, जे एंड जे वैक्सीन से गिलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) का खतरा थोड़ा बढ़ा, जो लकवा जैसी कमजोरी पैदा करता है, लेकिन भारत में इस्तेमाल कोविशील्ड या कोवैक्सिन से ऐसा कोई बढ़ा जोखिम नहीं। एक अध्ययन में कहा गया, “वैक्सीन के फायदे जोखिमों से कहीं ज्यादा हैं।”

वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स: क्या है हकीकत?
भारत में अब तक 220 करोड़ से ज्यादा डोज लग चुके हैं। न्यूरोलॉजिकल जटिलताओं के दुर्लभ केस दर्ज हुए हैं, जैसे:
– प्राइमरी सेंट्रल नर्वस सिस्टम डिमाइलिनेशन: 4 केस
– सिरेब्रल वेनस थ्रोम्बोसिस: 3 केस
– गिलेन-बैरे सिंड्रोम: 2 केस

ये ज्यादातर कोविशील्ड के बाद 2-4 हफ्तों में हुए। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड संक्रमण खुद ही स्ट्रोक का खतरा 5-10 गुना बढ़ाता है। भोपाल में एक केस (2021) में वैक्सीन के बाद TTS से मौत हुई, लेकिन रिपोर्टिंग सिस्टम की कमी के कारण इसे ठीक से ट्रैक नहीं किया गया।

बीबीसी की एक रिपोर्ट में डॉक्टरों ने कहा कि युवाओं में हार्ट अटैक बढ़े हैं, लेकिन वैक्सीन से लिंक सिद्ध नहीं। कर्नाटक के हासन जिले में 22 युवाओं की मौत पर मुख्यमंत्री ने वैक्सीन पर सवाल उठाए, लेकिन अध्ययन ने इसे खारिज किया।

विशेषज्ञ सलाह: सावधानी बरतें, अफवाहों से बचें
डॉ. कुमार ने सुझाव दिया, “वैक्सीन बूस्टर लें, लेकिन हाई रिस्क ग्रुप (डायबिटीज, हाई बीपी वाले) नियमित चेकअप कराएं। मास्क और स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं।” सरकार ने राज्यों को अलर्ट किया है कि नए वेरिएंट (जैसे XFG, NB.1.8.1) पर नजर रखें, लेकिन घबराने की कोई जरूरत नहीं।

यह मुद्दा वैक्सीन हिचकिचाहट बढ़ा सकता है, इसलिए तथ्यों पर भरोसा करें। अगर कोई साइड इफेक्ट दिखे, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। कोविड से लड़ाई अभी जारी है, और वैक्सीन हमारा सबसे मजबूत हथियार बनी हुई है।

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