Court decision: बागपत कोर्ट ने 54 वर्षों बाद सुनाया फैसला, लाक्षागृह में 100 बीघा जमीन पर हिन्दू समाज की जीत
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Court decision: बागपत कोर्ट ने 54 वर्षों बाद सुनाया फैसला, लाक्षागृह में 100 बीघा जमीन पर हिन्दू समाज की जीत

Court decision: बरनावा। आखिरकार लंबे जद्दोजहद के बाद बागपत कोर्ट ने लाक्षागृह केस में हिंदू पक्ष को 100 बीघा जमीन पर मालिकाना हक देकर केस के 54 वर्षों के संघर्ष को आज विराम दे ही दिया। । बागपत जनपद में ऐतिहासिक टीला महाभारत के लाक्षागृह को शेख बदरुउद्दीन की दरगाह व कब्रिस्तान बताने वाली मुस्लिम पक्ष की याचिका को सोमवार को कोर्ट ने खारिज कर दिया। अदालत ने साफ कहा कि बरनावा में दरगाह नहीं बल्कि लाक्षागृह की जमीन है। वर्ष 1970 से इस मामले में केस चल रहा था। करीब 54 सालों के बाद इस केस में कोर्ट का फैसला आया है। 54 वर्षों के बाद कोर्ट की सुनवाई पिछले साल शुरू हुई थी। बागपत डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन कोर्ट में सिविल जज जूनियर डिवीजन प्रथम की कोर्ट मंगलवार को इस लंबे समय से चल रहे मामले पर फैसले की उम्मीद की जा रही थी। इस फैसले पर हिंदू एवं मुस्लिम दोनों पक्षों की नजरें टिकी हुई थी। कोर्ट ने अब इस मामले में अपना फैसला सुना दिया है। लाक्षागृह टीले को लेकर हिंदू और मुस्लिम पक्ष के बीच चल रहे पिछले 54 सालों का विवाद आज समाप्त हो गया।

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वर्ष 1970 में मेरठ के सरधना की कोर्ट में बरनावा निवासी मुकीम खान ने वक्फ बोर्ड के पदाधिकारी की हैसियत से एक केस दायर कराया था।जिसमे लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाते हुए दावा किया था कि बरनावा स्थित लाक्षागृह टीले पर शेख बदरुद्दीन की मजार और एक बड़ा कब्रिस्तान मौजूद है। वक्फ बोर्ड का इस पर अधिकार है। उन्होंने आरोप लगाया गया कि कृष्णदत्त महाराज बाहर के रहने वाले हैं, जो कब्रिस्तान को खत्म करके यहां हिंदुओं का तीर्थ बनाना चाहते हैं। इसमें मुकीम खान और कृष्णदत्त महाराज फिलहाल दोनों ही लोगों का निधन हो चुका है। दोनों पक्ष से अन्य लोग ही वाद की पैरवी कर रहे थे। आखिरकार मंगलवार को कोर्ट द्वारा लाक्षागृह पर हिन्दू पक्ष का अधिकार देते हुए इस विवाद पर विराम लगा दिया।

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खुदाई में मिले थे महाभारत काल के साक्ष्य
मुस्लिम पक्ष का दावा था कि यहां उनके बदरुद्दीन नामक संत की मजार थी। इसे बाद में हटा दिया गया। इस स्थान पर उन्होंने कब्रिस्तान को भी बताया था।वही इसके विपरीत हिन्दू पक्ष के अनुसार इसी विवादित 100 बीघे जमीन पर पांडव कालीन एक सुरंग है। दावा किया जाता है कि इसी सुरंग के जरिए पांडव लाक्षागृह से बचकर भागे थे। इतिहासकारों का दावा है कि इस जगह पर जो अधिकतर खुदाई हुई है। उसमें को साक्ष्य मिले हैं। वे सभी हजारों साल पुराने हैं, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि यहां पर मिले हुए ज्यादातर सबूत हिंदू सभ्यता के ज्यादा करीब है। इसी जमीन पर गुरुकुल एवं कृष्णदत्त आश्रम चलाने वाले आचार्य का कहना हैं कि कब्र और मुस्लिम विचार तो भारत मे कुछ समय पहले आया, जबकि लगभग 5 हजार साल से ये जगह पांडवकालीन है।

1952 में शुरू हुई थी लाक्षागृह पर खुदाई, मिले थे 4500 वर्ष पूर्व साक्ष्य
लाक्षागृह की वर्ष 1952 में एएसआई की देखरेख में खुदाई शुरू हुई थी। खुदाई में मिले अवशेष दुर्लभ श्रेणी के थे। खुदाई में 4500 वर्ष पुराने मिट्टी के बर्तन मिले थे। महाभारत काल को भी इसी काल का माना जाता है। लाक्षागृह टीला 30 एकड़ में फैला हुआ है। यह 100 फीट ऊंचा है। इस टीले के नीचे एक गुफा भी मौजूद है। वर्ष 2018 में एएसआई ने इस स्थान की बड़े स्तर पर खुदाई शुरू की थी। यहां मानव कंकाल और दूसरे इंसानी अवशेष मिले। यहां विशाल महल की दीवारें और बस्ती भी मिली हैं।

महाभारत काल में हुआ था लाक्षागृह का निर्माण
महाभारत में लाक्षागृह की कहानी के विषय मे बताया जाता है इस स्थान को पहले वारणावत के नाम से जाना जाता था। बताया जाता है कि दुर्योधन हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठना चाहता था। उसने पांडवों को जलाकर मारने के लिए योजना बनाई। दुर्योधन ने अपने मंत्री से एक लाक्षागृह वारणावत में बनवाया था। यह लाक्षागृह लाख, मोम, घी, तेल से मिलाकर बना था। दुर्योधन के कुचक्र के बाद धृतराष्ट्र से पांडवों को लाक्षागृह में रुकने का आदेश दिलवाया गया था। पांडव जब वहां ठहरे तो आग लगा दी गई।जिसमे पांडव लाक्षागृह के नीचे से सुरंग बनाकर बचकर निकल गए थे।वे सुरंगे आज भी लाक्षागृह के नीचे मौजूद है।

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