Bihar/Mother’s insult news: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने आज बिहार में सुबह 7 बजे से दोपहर 12 बजे तक पांच घंटे के लिए बिहार बंद का आह्वान किया। यह बंद दरभंगा में विपक्षी महागठबंधन की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी दिवंगत मां हीराबेन मोदी के खिलाफ कथित तौर पर अभद्र टिप्पणी किए जाने के विरोध में बुलाया गया है। इस घटना ने बिहार की सियासत को गरमा दिया है, और एनडीए ने इसे मातृशक्ति और बिहार की अस्मिता के अपमान से जोड़कर बड़ा मुद्दा बना दिया है।
बिहार बंद का असर
बिहार बंद का प्रभाव राज्य के विभिन्न हिस्सों, खासकर पटना, हाजीपुर, आरा, और गया जैसे शहरों में देखा गया। सड़कों पर एनडीए कार्यकर्ता, विशेष रूप से बीजेपी महिला मोर्चा की अगुवाई में, प्रदर्शन करते नजर आए। पटना में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पार्टी कार्यालय से साधना होटल तक विरोध मार्च निकाला, जिसमें केंद्रीय मंत्री, सांसद, और विधायक भी शामिल हुए। हाजीपुर में एनडीए कार्यकर्ताओं ने एनएच-22 और हाजीपुर-महनार रोड पर सड़क जाम कर नारेबाजी की। आरा में मठिया मोड़ पर कार्यकर्ताओं ने “राहुल गांधी माफी मांगो” और “राहुल-तेजस्वी मुर्दाबाद” जैसे नारे लगाए।
हालांकि, एनडीए ने आपातकालीन सेवाओं जैसे एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड, और रेल सेवाओं को बंद से मुक्त रखा ताकि आम लोगों को कम से कम असुविधा हो। फिर भी, पटना में बाजारों और दुकानों के बंद रहने से यातायात और दैनिक जीवन प्रभावित हुआ। कई निजी स्कूलों ने अवकाश की घोषणा की, और ऑफिस जाने वालों को जाम की स्थिति का सामना करना पड़ा।
आम जनता की राय
बिहार की जनता में इस बंद और विवाद को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग इसे मां के सम्मान और बिहारी अस्मिता से जोड़कर एनडीए के बंद का समर्थन कर रहे हैं। पटना के एक स्थानीय निवासी रमेश कुमार ने कहा, “मां का अपमान बिहार की संस्कृति के खिलाफ है। यह सिर्फ पीएम मोदी की मां की बात नहीं, बल्कि हर मां के सम्मान का सवाल है।” वहीं, ग्रामीण इलाकों में, जहां परिवार और संस्कृति का महत्व अधिक है, इस मुद्दे ने लोगों को भावनात्मक रूप से प्रभावित किया है।
दूसरी ओर, कुछ लोग इसे चुनावी रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं। दरभंगा के एक दुकानदार मोहम्मद शफीक ने कहा, “यह सब वोट की राजनीति है। बंद से आम लोगों को परेशानी होती है, और इसका कोई ठोस नतीजा नहीं निकलता।” कई लोगों का मानना है कि यह विवाद बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए की रणनीति है, जिससे विपक्षी दलों को नैतिक और भावनात्मक मुद्दों पर घेरा जा सके।
सियासी पारा गर्म
यह विवाद 27 अगस्त को दरभंगा में कांग्रेस और राजद की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के दौरान शुरू हुआ, जब मंच से एक नेता ने पीएम मोदी और उनकी मां के खिलाफ आपत्तिजनक शब्द कहे। पीएम मोदी ने 2 सितंबर को इस पर भावुक प्रतिक्रिया दी, जिसमें उन्होंने कहा, “मेरी मां का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था। फिर भी उन्हें गाली दी गई। मैं राजद और कांग्रेस को माफ कर सकता हूं, लेकिन बिहार की जनता उन्हें कभी माफ नहीं करेगी।”
बीजेपी और जदयू नेताओं ने इसे लोकतांत्रिक मर्यादाओं और मातृशक्ति का अपमान बताया है। जदयू प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने कहा, “महागठबंधन ने एक मां का अपमान किया है, जो बिहार की हर मां और बहन का अपमान है।” दूसरी ओर, विपक्ष ने इस मुद्दे पर अब तक कोई आधिकारिक माफी नहीं मांगी, जिसे एनडीए ने उनके अहंकार का सबूत बताया है।
सूत्रों के अनुसार, एनडीए इस मुद्दे को बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एक बड़ा भावनात्मक हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है। बीजेपी ने अखबारों में विज्ञापन और सोशल मीडिया पर अभियान चलाकर जनता से बंद में शामिल होने की अपील की। बीजेपी की सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा गया, “मां के सम्मान में बिहार की बेटियां मैदान में,” जिसके साथ पीएम मोदी और उनकी मां की तस्वीर साझा की गई।
वहीं, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बंद एनडीए की ताकत और जनसमर्थन की परीक्षा है। यह असामान्य है कि सत्तारूढ़ गठबंधन बंद का आह्वान करे, लेकिन बीजेपी इसे सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा के रूप में पेश कर रही है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह विवाद विपक्ष की रणनीति को कमजोर कर सकता है, जो बेरोजगारी और विकास जैसे मुद्दों पर एनडीए को घेरने की कोशिश कर रहा था।
निष्कर्ष
बिहार बंद ने एक बार फिर सियासत को गरमा दिया है। एनडीए इसे मां के सम्मान और बिहारी अस्मिता से जोड़कर जनता की भावनाओं को भुनाने की कोशिश कर रहा है, जबकि विपक्ष इस पर चुप्पी साधे हुए है। आम जनता में इस मुद्दे को लेकर समर्थन और आलोचना दोनों देखने को मिल रही है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विवाद बिहार के चुनावी समीकरणों को किस हद तक प्रभावित करता है।
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