Bihar Assembly Election News: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए नामांकन की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है, लेकिन एनडीए गठबंधन की प्रमुख पार्टियों जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की उम्मीदवार सूचियों में मुस्लिम प्रतिनिधित्व की कमी ने राजनीतिक हलकों में बहस छेड़ दी है। 2020 के मुकाबले इन पार्टियों ने इस बार मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या काफी कम कर दी है, जिसे विपक्ष ‘अल्पसंख्यक विरोधी रणनीति’ बता रहा है। हालांकि, दोनों पार्टियों के नेता इसे ‘चुनावी जीत की रणनीति’ बताते हुए अल्पसंख्यकों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दे रहे हैं।
बिहार में मुस्लिम आबादी करीब 17 प्रतिशत है, जो पूर्वी चंपारण, सीमांचल और पूर्णिया जैसे इलाकों में हमेशा निर्णायक भूमिका निभाती है। 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने 24 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन इस बार पार्टी ने अपनी 101 सीटों पर कुल 4 मुस्लिम उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं। इसी तरह, चिराग पासवान की एलजेपी(आरवी) ने 2020 में 5 मुस्लिम उम्मीदवार दिए थे, जबकि 2025 के लिए 29 सीटों पर केवल 2 नाम चुने गए हैं। एनडीए ने गुरुवार को अपनी सभी 243 सीटों के लिए उम्मीदवारों की अंतिम सूची जारी कर दी, जिसमें जातिगत संतुलन पर जोर दिया गया है, लेकिन मुस्लिम प्रतिनिधित्व न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है।
जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा, “उम्मीदवार चयन पूरी तरह से चुनावी संभावनाओं पर आधारित है, न कि सांप्रदायिक आधार पर। हमारी पार्टी ‘सबका साथ, सबका विकास’ के सिद्धांत पर अडिग है। मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए कई योजनाएं चल रही हैं, और यह संख्या में कमी हमारी नीति में बदलाव का संकेत नहीं है।” उन्होंने पूर्वी बिहार के किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में पार्टी की मजबूत पकड़ का हवाला देते हुए कहा कि अल्पसंख्यक वोट बैंक मजबूत रहेगा।
एलजेपी(आरवी) के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजीव कुमार ने भी यही रुख अपनाया। उन्होंने बताया, “हमारी प्राथमिकता बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट है। मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या कम होना रणनीतिक फैसला है, लेकिन समुदाय के लिए हमारी प्रतिबद्धता अटल है। चिराग पासवान जी ने हमेशा समावेशी राजनीति की वकालत की है।” पार्टी ने अपनी सूची में पांच राजपूत, चार पासवान और चार भूमिहार उम्मीदवारों को जगह दी है, जबकि मुस्लिम नामों को सीमित रखा गया।
विपक्षी महागठबंधन ने इस पर तीखा प्रहार किया है। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने इसे “एनडीए की साजिश” करार देते हुए कहा, “यह स्पष्ट है कि बीजेपी का दबाव जेडीयू और एलजेपी को अल्पसंख्यक-विरोधी बना रहा है। मुस्लिम वोटर अब महागठबंधन की ओर मुड़ेंगे, जो समावेशी राजनीति का प्रतीक है।” हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में जेडीयू के 11 मुस्लिम उम्मीदवारों में से कोई नहीं जीता था, जबकि आरजेडी के 17 में से आठ सफल हुए थे। द हिंदू ने भी लिखा है कि बिहार में मुस्लिमों को विधानसभा में आनुपातिक प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा, जो सामाजिक सद्भाव के लिए खतरा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बदलाव एनडीए की हिंदू वोट एकीकरण की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, खासकर वक्फ बिल जैसे मुद्दों के बाद। पूर्व जेडीयू नेता गुलाम रसूल बलियावी ने किशनगंज में कहा था कि नितीश कुमार “जन्मजात धर्मनिरपेक्ष” हैं, लेकिन विपक्ष का दावा है कि गठबंधन दबाव में नीतियां बदल रही हैं। एनडीए ने जातिगत समीकरण पर फोकस किया है—जेडीयू की सूची में ओबीसी और ईबीसी को प्रमुखता मिली है, जबकि ऊपरी जातियों को 22 सीटें।
चुनाव आयोग के अनुसार, पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को होगा, जबकि दूसरे चरण में 11 नवंबर को वोटिंग होगी। मतगणना 14 नवंबर को निर्धारित है। एनडीए नेता अमित शाह ने पटना में बौद्धिक समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि गठबंधन की एकजुटता बिहार को मजबूत बनाएगी। इस बीच, कांग्रेस ने अपनी पहली सूची में मुस्लिम, एससी-एसटी और महिला उम्मीदवारों को जगह दी है, जो महागठबंधन की रणनीति को मजबूत कर रही है।
यह मुद्दा बिहार की राजनीति में ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन पार्टियां इसे विकास-केंद्रित चुनाव बताकर टाल रही हैं। अल्पसंख्यक समुदाय के नेताओं ने निराशा जताई है और अधिक समावेशी नामांकन की मांग की है। बिहार चुनाव न केवल गठबंधनों की परीक्षा लेंगे, बल्कि सामाजिक समरसता का भी आकलन करेंगे।

