ट्रंप के बगराम एयरबेस दावे पर अकेले पडा अमेरिका, भारत ने तालिबान का साथ दिया, पाक-चीन-रूस भी एकजुट

Moscow/Washington News: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस को वापस हासिल करने के विवादास्पद दावे पर वैश्विक स्तर पर एक दुर्लभ एकजुटता देखने को मिली है। मॉस्को में आयोजित ‘मॉस्को फॉर्मेट कंसल्टेशंस’ में भारत, पाकिस्तान, चीन, रूस और ईरान समेत क्षेत्रीय शक्तियां तालिबान के साथ खड़ी हो गईं। संयुक्त बयान में अमेरिका की इस कोशिश को ‘अस्वीकार्य’ करार देते हुए क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा बताया गया। ट्रंप का यह दावा अब न केवल तालिबान के लिए, बल्कि भारत जैसे पारंपरिक अमेरिकी सहयोगी के लिए भी चुनौती बन गया है।
ट्रंप ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया था कि उनका प्रशासन बगराम एयरबेस को तालिबान से वापस ले लेगा, क्योंकि अमेरिका ने इसे ‘बेकार में’ सौंप दिया था। उन्होंने ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के साथ बातचीत में कहा, “हमने इसे (तालिबान को) कुछ भी न देकर दे दिया।
हम वह बेस वापस चाहते हैं।” ट्रंप ने अपनी सोशल मीडिया साइट ट्रुथ सोशल पर चेतावनी भी दी, “अगर अफगानिस्तान बगराम एयरबेस वापस नहीं देता… तो बुरे हालात हो जाएंगे!” उनका तर्क था कि यह एयरबेस पश्चिमी चीन के नजदीक स्थित है, जहां बीजिंग परमाणु हथियार विकसित कर रहा है, और अमेरिका को रणनीतिक रूप से इसे नियंत्रित करने की जरूरत है।  बगराम, जो काबुल से 50 किलोमीटर उत्तर में स्थित अफगानिस्तान का सबसे बड़ा हवाई अड्डा है, 2021 में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के दौरान तालिबान के हाथों में चला गया था। ट्रंप ने इसकी जिम्मेदारी पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन पर डाली, जो दोहा समझौते के बाद हुआ था। 

मॉस्को में मंगलवार को हुई सातवीं ‘मॉस्को फॉर्मेट कंसल्टेशंस’ में इस मुद्दे पर जोरदार विरोध दर्ज हुआ। रूस के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी संयुक्त बयान में कहा गया, “वे (मॉस्को फॉर्मेट के देश) अफगानिस्तान और पड़ोसी देशों में सैन्य ढांचा तैनात करने की कोशिशों को अस्वीकार्य मानते हैं, क्योंकि यह क्षेत्रीय शांति और स्थिरता की हितों की सेवा नहीं करता।” इस बैठक में भारत, पाकिस्तान, चीन, रूस, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के प्रतिनिधि शामिल थे, जबकि बेलारूस मेहमान के तौर पर उपस्थित था। तालिबान का प्रतिनिधिमंडल, विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी के नेतृत्व में, पहली बार पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल हुआ।  

भारत ने इस संयुक्त बयान का समर्थन करते हुए स्पष्ट संदेश दिया कि विदेशी सैन्य उपस्थिति अफगानिस्तान की संप्रभुता के खिलाफ है। भारत के मॉस्को राजदूत विनय कुमार ने बैठक में भाग लिया। हालांकि भारत ने अभी तक तालिबान शासन को औपचारिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन वह मानवीय सहायता और पुनर्निर्माण में सहयोग दे रहा है। तालिबान विदेश मंत्री मुत्तकी को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मंजूरी मिलने के बाद 9 से 16 अक्टूबर तक नई दिल्ली दौरा करने का न्योता दिया गया है।  भारत के इस रुख को विशेषज्ञ दुर्लभ भारत-पाकिस्तान एकजुटता बता रहे हैं, हालांकि दोनों देशों के इरादे अलग-अलग हैं—भारत आतंकवाद रोकथाम और क्षेत्रीय स्थिरता पर जोर दे रहा है, जबकि पाकिस्तान का फोकस अफगानिस्तान के साथ आर्थिक संबंधों पर। 
पाकिस्तान, चीन और रूस ने भी ट्रंप के प्रस्ताव का सख्त विरोध किया।
चीन ने बगराम की अपनी परमाणु सुविधाओं के नजदीकी का हवाला देकर इसे खतरा बताया, जबकि रूस ने जुलाई में तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता दी थी। तालिबान प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने साफ कहा, “अफगान कभी भी अपने भूमि को किसी को सौंपने की अनुमति नहीं देंगे।” विदेश मंत्री मुत्तकी ने बैठक में अमेरिकी कोशिशों को ‘अस्वीकार्य’ करार दिया और क्षेत्रीय शांति के लिए हानिकारक बताया।  

विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का यह ‘गैंबिट’ अफगानिस्तान में अमेरिकी वापसी के बाद की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, लेकिन यह क्षेत्रीय शक्तियों को एकजुट करने का काम कर गया है। मॉस्को फॉर्मेट ने अफगानिस्तान की संप्रभुता, आतंकवाद विरोधी सहयोग और आर्थिक एकीकरण पर जोर दिया। अब सवाल यह है कि क्या ट्रंप इस अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद अपने दावे पर अड़े रहेंगे, या यह अफगान नीति में नया मोड़ लाएगा।
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