‘Hindi Radio Natya Shilp’: प्रयागराज। ’सर्जनपीठ’ एवं ’भारतीय सांस्कृतिक परिषद्’ की ओर से हिन्दी रेडियो-नाट्य शिल्पकार स्मृति शेष डॉ राधेश्याम उपाध्याय कृत ’हिन्दी रेडियो नाट्य शिल्प’ कृति का लोकार्पण शनिवार को किया गया। पुस्तक की प्रस्तुति उनकी पुत्री कवियित्री उर्वशी उपाध्याय ने की है।
‘Hindi Radio Natya Shilp’:
समारोह अध्यक्ष भाषा विज्ञानी आचार्य पं पृथ्वीनाथ पाण्डेय, मुख्य अतिथि साहित्यकार बन्धुकुशावर्ती तथा विशिष्ट अतिथि डॉ दिनेश गर्ग ने ’बॉयो-वेद कृषि अनुसंधान संस्थान’ के सभागार में किया। इस अवसर पर रंगमंच के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए समारोह अध्यक्ष एवं मुख्य अतिथि ने प्रयागराज के विशिष्ट रंगकर्मियों अनिल रंजन भौमिक, सुषमा शर्मा, अभिलाष नारायण, अजय मुखर्जी तथा प्रिया मिश्र को अंगवस्त्र, स्मृति चिह्न तथा सम्मान पत्र अर्पण कर ’रंगमंच-शिखर सम्मान’ से आभूषित किया।
मुख्य अतिथि बन्धुकुशावर्ती ने कहा कि इस कृति में विश्व स्तर पर रेडियो नाटक के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला गया है। अध्यक्षीय उद्बोधन में आचार्य पं. पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने बताया कि रेडियो-नाटक में किसी भी दृश्य से परिचित कराने के लिए ध्वनि-प्रभाव और संवाद को प्रमुखता दी जाती है। तभी वह श्रोताओं तक सम्प्रेषित हो पाता है। संवादों में प्रभावपूर्ण विविधता का होना अनिवार्य है, तभी पात्रों से सम्बन्धित जानकारी, पात्रों की चारित्रिक विशेषताएं तथा नाटक का पूर्ण कथानक श्रोताओं के लिए ग्रहणीय हो पाता है।
विशिष्ट अतिथि डॉ दिनेश गर्ग ने कहा कि रेडियो-नाटक की आज भी उपयोगिता और महत्ता है। हिन्दी रेडियो-नाट्य शिल्प की अवधारणा और आवश्यकता विषय पर एक बौद्धिक और परिसंवाद का आयोजन किया गया। रंगकर्मी अभिलाष नारायण ने बताया कि रेडियो-नाटक में यदि सात्विक अभिनय नहीं होता तो वह बेमानी कही जायेगी। रेडियो-नाटकों में हम शब्दों से चित्र लगाते हैं। दुर्गेश दुबे ने कहा कि उर्वशी उपाध्याय ने अपने पिता के साहित्य और संस्कृति को संयोजित करते हुए यहां प्रस्तुत किया है। डॉ शम्भूनाथ त्रिपाठी ’अंशुल’ ने कहा कि अवस्था का अनुकरण ही नाटक है। डॉ अनन्त कुमार गुप्ता ने भी विचार व्यक्त किये।
उर्वशी उपाध्याय ने बताया कि बिखरी हुई सामग्री को एक जगह लाने का मेरा प्रयास रहा है। इस अवसर पर सभागार में उपस्थित समस्त अभ्यागतगण को हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से नववर्ष की दैनन्दिनी भेंट की गयी। समाजशास्त्री प्रो रवि मिश्र ने कार्य संचालन एवं भारतीय सांस्कृतिक परिषद् के पदाधिकारी सतीश गुप्ता ने आभार ज्ञापन किया।
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