निकाय चुनाव के बहाने लोकसभा की तैयारी में पार्टियां,ये है प्लान
यूपी में होने वाले निकाय चुनाव के जरिए अब लोकसभा 2024 की तैयारी की जा रही है। आज यानी शनिवार से पूरे प्रदेश में भाजपा का सम्मेलन संवाद शुरू हो रहा है। दूसरे दल भी निकाय चुनाव में मजबूत चहेरों की तलाश कर रहे है। इससे पहले गृह मंत्री ने 2 सभाओं को संबोधित करते हुए यह रणनीति तो तय कर दी कि उत्तर प्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ की सरकार में एक भी दंगा नहीं हुआ है। बीते दिन कौशांबी महोत्सव और आजमगढ़ की जनसभा में गृहमंत्री शामिल हुए थे।
दलित वोट बैंक को लुभाने की कवायद
सभी पार्टियां दलित वोट बैंक को लुभाने की कोशिश कर रही है। यही कारण है कि अमित शाह ने कानून व्यवस्था के दावों के साथ प्रदेश की अन्य योजनाओं की उपलब्धियों गिनाते हुए पिछली सरकार के गुंडाराज, बसपा सरकार के भ्रष्टाचार और कांग्रेस में राहुल पर हमलावर हुए। फिलहाल 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ही नहीं बसपा, सपा और कांग्रेस भी दलित वोट बैंक रिझाने में जुटी है। बताते है कि सत्ता रूढ़ पार्टी भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व ने पूरे देश में दलित वोट बैंक को साधने की कवायद के तहत 75 हजार अनुसूचित जाति तथा जनजाति के घरों तक पहुंचने की कवायद में जुटी हुई है। इसके लिए यूपी बीजेपी की इकाई को भी लक्ष्य दिया गया है। दलितों में पैठ बनाकर भाजपा अगले आम चुनाव में यूपी की 17 आरक्षित संसदीय सीटों पर अपने समीकरण दुरुस्त करना चाहती है।
यूपी में दलित को प्रभावित करने को अभियान के तहत दलित समुदाय में प्रभावी पैठ बनाने के लिए भाजपा की जोरदार कोशिशें हो रही है। यूपी भाजपा के मुताबिक अभी तक 75 जिलों में 15,000 गांवों में शिविर आयोजित करने के लक्ष्य पहुंचने में पार्टी कामयाब हुई है।
साल 2019 लोकसभा चुनाव के नतीजो के अनुसार भाजपा और उसके सहयोगियों ने दलितों के लिए आरक्षित 17 संसदीय सीटों में से 15 पर जीत हासिल की है। बसपा ने केवल लालगंज और नगीना सीट जीती थी। जिसने सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। उत्तर प्रदेश में भाजपा मिशन 80 सीटों का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है।
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भाजपा ने पिछले चुनाव में उत्तर प्रदेश मे 64 सीटें हासिल की थी। बाद में दो सीटों रामपुर और आजमगढ़ में उप चुनाव हुआ, जिसमें बीजेपी ने सपा को पटकनी दे दी। इस तरह भाजपा के पास यूपी में अभी 66 लोकसभा सीटें हैं। लेकिन भाजपा अगली बार इसे 80 तक पहुंचाना चाहती हैं इसलिए इस अभियान को इस कड़ी से बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा। सुश्री मायावती अपने कोर वोट बैंक यानी दलित को बचाए रखने की पुरजोर कोशिश कर रही है। लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में 22 प्रतिशत से खिसककर 12प्रतिशत के करीब पहुंच गया है। मायावती अखिलेश यादव और सपा पर लगातार पलटवार कर वह संदेश दे रही हैं कि इन लोगों ने हमेशा दलितों का अपमान किया है। मायावती ने कहा कि 1995 में लखनऊ का गेस्ट हाउस कांड नहीं हुआ होता तो देश में आज सपा और बसपा की सरकार होती।
सुश्री मायावती ने सपा पर दलित महापुरुषों को अपमान करने का आरोप लगाया है। राजनीतिक जानकार कहते है कि पिछले 15 सालों में दलित आंदोलन खत्म होता दिख रहा है। एक आंदोलन सिर्फ सड़क पर नहीं लड़ा जाता है। इसकी एक विचारधारा होती है, एक प्रतिबद्धता होती है। इसके विचारक हैं जो इसे लोगों के दिमाग में प्रचारित करते हैं। पूर्व सांसद बृजलाल खाबरी को यूपी कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है। संगठन के रूप में बहुत ज्यादा मजबूती और क्षेत्र में पकड़ तो अभी तक अध्यक्ष कार्यकाल में नहीं दिखाई दी लेकिन दलित वर्ग से बृजलाल खाबरी की होने से कांग्रेस का एक दावा मजबूत है कि पार्टी की कमान दलित वर्ग के नेतृत्व में चल रही है। इससे पहले यूपी के प्रभारी और कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने तीन दशक के वनवास के बाद यूपी में सत्ता के लिए नए सिरे से काम करने वाली कांग्रेस पार्टी भी दलितों पर ध्यान केंद्रित रही।
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प्रियंका गांधी और राहुल गांधी अक्सर अत्याचार से पीड़ित यूपी के दलित परिवारों के जख्मों पर मरहम लगाते रहते हैं। सितंबर 2020 में एक दलित लड़की के बलात्कार और हत्या के बाद, राहुल और प्रियंका सबसे पहले हाथरस पहुंचे। प्रियंका कथित तौर पर पुलिस हिरासत में मारे गए दलित अरुण वाल्मीकि के घर भी गईं।