देश में मंदिर, मस्जिद, गाय-भैंस, बच्चा चोर तो कभी किसी अन्य अफवाह से भीड़ बेकाबू हो रही है। भीड़ में शामिल चंद लोग तुरंत ही जज की भूमिका में आ जाते हैं और काूनन को हाथ में लेने से जरा भी नहीं डरते। सवाल यह है कि क्या भीड़ में कानून का डर खत्म क्यों हो गया है? बुलंदशहर के स्याना कोतवाल सुबोध सिंह को भीड़ ने उस समय घेर कर मार डाला जब वे भीड़ को समझा रहे थे। हालांकि इससे चंद घंटे पहले एसडीएम, सीओ और कोतवाल भीड़ को शांत कराकर गए थे। आखिर वो कौन लोग हैं जो अचानक से एक विशेष वर्ग को गालियां देते हुए इकट्ठा होते हैं और पशु के अवशेषों को हवाओं में लहराकर नवयुवकों को उत्तेजित करते हैं। एक दृष्टिकोण यह भी सामाने आ रहा है कि बुलंद शहर के दरियापुर में विश्व स्तरीय इज्तेमा चल रहा था। ज्यादातर लोगों को इसी सड़क से होकर गुजरना था। 12 बजे इज्तेमा खत्म हुआ और उपद्रवियों ने सड़क को जाम कर दंगा फैलाने की कोशिश की। मगर जांबाज कोतवाल सुबोध सिंह ने उनके मंसूबों पर जान देकर पानी फेर दिया। यदि यहां से गुजरने वाले लोगों को रोका या टोका जाता तो एक बड़ी वारदात हो सकती थी। जरूरत है कि सरकार राष्ट्रीय स्तर पर भीड़ को काबू करने के लिए कड़े कानून बनाए। जहां भी भीड़ किसी की हत्या करे तुरंत एसआईटी गठित हो और एक महीने में आरोपियों को सलाखों के पीछे भिजवाकर कड़ी से कड़ी सजा दिलाई जाए। आप अपने आपसे पूछिए कि इस तरह की भीड़ में क्या आपके बच्चे शामिल नहीं है। एक विशेष समूह है जो 17 से लेकर 30 साल तक के युवकों के दिमाग को सांप्रदायिक बना रहा है। इस सबके चलते भीड़ जज बनती जा रही है और उस दौरान न ये देखा जाता है कि सामने वाला कानून का रखवाला है या किसी का भाई या बेटा। बुलंदशहर मामले में योगी सरकार ने तत्काल एसआईटी का गठन किया है। देखना यह है कि एसआईटी क्या अपनी निष्पक्ष जांच पेश कर पाएगी। इंस्पेक्टर के हत्यारों में वो लोग शामिल हैं जिन पर सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं का हाथ है। चारों ओर वीडियो वायरल हो चुके हैं। पुलिस के हाथ में पुख्ता सबूत है। केवल कार्रवाई करना बाकी है।