विश्वविद्यालय वैश्विक उच्च शिक्षा रैंकिंग का बहिष्कार क्यों कर रहे?

University Global Higher Education Rankings News: वैश्विक उच्च शिक्षा रैंकिंग, जो छात्रों, नियोक्ताओं और नीति-निर्माताओं के बीच विश्वविद्यालयों की छवि निर्धारित करती हैं, अब कई संस्थानों के निशाने पर हैं। फ्रांस की प्रतिष्ठित सोरबोन यूनिवर्सिटी ने सितंबर में टाइम्स हायर एजुकेशन (THE) वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग से बाहर होने की घोषणा की, जबकि भारत के पुराने आईआईटी (जैसे दिल्ली, खड़गपुर, मद्रास, कानपुर, बॉम्बे और रुड़की) 2020 से ही इन रैंकिंग में भाग नहीं ले रहे। मुख्य शिकायतें पारदर्शिता की कमी, प्रतिष्ठा सर्वेक्षणों की विश्वसनीयता और अनुसंधान मेट्रिक्स की एकतरफा प्रकृति हैं।

रैंकिंग कैसे काम करती हैं?
दुनिया में तीन प्रमुख रैंकिंग हैं:
1. क्यूएस रैंकिंग (लंदन स्थित क्यूएस क्वाक्वारेली साइमंड्स द्वारा): 10 संकेतकों पर आधारित, जैसे शैक्षणिक प्रतिष्ठा (30% वेटेज), उद्धरण प्रति फैकल्टी (20%), नियोक्ता प्रतिष्ठा (15%) आदि। 2026 संस्करण में 1,500 से अधिक संस्थानों को रैंक किया गया, जिसमें आईआईटी दिल्ली भारत का सर्वश्रेष्ठ (123वां स्थान) रहा।

2. THE रैंकिंग (लंदन स्थित): 17 संकेतकों पर, अनुसंधान पर्यावरण और गुणवत्ता को 59% वेटेज। 2026 में 2,100 से अधिक संस्थानों को शामिल किया गया।

3. शंघाई रैंकिंग (शंघाई रैंकिंग कंसल्टेंसी द्वारा): 6 संकेतकों पर, नोबेल/फील्ड्स मेडल विजेताओं को 30% वेटेज। 2025 में आईआईएससी और विट वेल्लोर 501-600 बैंड में भारत के टॉप रहे।

THE में संस्थान डेटा जमा करते हैं, इसलिए बहिष्कार आसान है। क्यूएस और शंघाई सार्वजनिक डेटा का उपयोग करते हैं।

सोरबोन यूनिवर्सिटी की चिंताएं
सोरबोन (क्यूएस 2026 में 72वां, THE में 76वां, शंघाई में 43वां) ने कहा कि रैंकिंग अंग्रेजी भाषा जर्नल्स पर फोकस करती हैं, जिससे मानविकी और सामाजिक विज्ञान पिछड़ जाते हैं। प्रतिष्ठा सर्वेक्षण वैज्ञानिक, पद्धति और नैतिक मुद्दे उठाते हैं।

ये “ब्लैक बॉक्स” हैं—डेटा साझा नहीं होता, पद्धति आंशिक रूप से खुली। THE में प्रतिष्ठा सर्वे का वेटेज ज्यादा है, लेकिन डेटा संग्रह की प्रक्रिया अस्पष्ट। सोरबोन ने स्कोपस (एल्सेवियर) और वेब ऑफ साइंस (क्लैरिवेट) जैसे पेड डेटाबेस से दूरी बनाई और ओपनएलेक्स जैसे मुफ्त प्लेटफॉर्म अपनाए।

भारतीय आईआईटी की शिकायतें
2020 में पुराने आईआईटी ने THE से बाहर होने का फैसला किया क्योंकि पारदर्शिता नहीं थी। कोई भारतीय संस्थान टॉप 300 में नहीं था। 2026 THE में सिर्फ 5 आईआईटी (इंदौर, रोपर, पटना, गांधीनगर, मंदी) शामिल हुए; आईआईएससी टॉप भारतीय (201-250 बैंड)।

बीआईटीएस पिलानी के वाइस चांसलर प्रो. वी रामगोपाल राव (पूर्व आईआईटी दिल्ली डायरेक्टर) ने बताया: “प्रतिष्ठा और धारणा स्कोर ब्लैक बॉक्स हैं। सर्वे करने वालों का भौगोलिक वितरण अस्पष्ट। संस्थागत स्व-उद्धरण बढ़ रहे हैं—एक फैकल्टी पेपर लिखता है, बाकी सब उद्धृत करते हैं। 200 से अधिक लेखकों वाले पेपर गिने जाते हैं, लेकिन रिट्रैक्शन (वापसी) को ठीक से नहीं गिना जाता।” उन्होंने भारत की NIRF रैंकिंग में भी पारदर्शिता की कमी बताई।

अन्य संस्थानों के उदाहरण
• उट्रेच्ट यूनिवर्सिटी (नीदरलैंड, 2023): THE से बाहर, कहा रैंकिंग प्रतिस्पर्धा बढ़ाती हैं, सहयोग नहीं। एक नंबर में पूरी यूनिवर्सिटी की गुणवत्ता कैद नहीं हो सकती; डेटा और पद्धति संदिग्ध।
• रैंकिंग स्कोपस जैसे पेड डेटाबेस पर निर्भर, न्यूनतम 1,000 पेपर प्रकाशन जरूरी।

THE का जवाब
THE प्रवक्ता ने कहा: “हम संस्थानों की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं। 17 संकेतकों में स्वतंत्र डेटा इस्तेमाल होता है—1.5 मिलियन वोट, 175 मिलियन उद्धरण।” भारत से 163 संस्थानों ने डेटा दिया, 128 रैंक हुए (अमेरिका के बाद दूसरा)। चीफ ग्लोबल अफेयर्स ऑफिसर फिल बेटी: “भारत को दुनिया का सबसे प्रतिनिधित्व वाला देश होना चाहिए। भागीदारी से अंतरराष्ट्रीय दृश्यता बढ़ेगी, NEP लागू करने में मदद मिलेगी।”

भारत सरकार का रुख
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा: “क्यूएस 2026 में 54 भारतीय यूनिवर्सिटी। वाइस चांसलरों को चुनौती—25 संस्थान टॉप 100 में आएं, समयबद्ध तरीके से। यह NEP की उपलब्धि होगी।”

विश्व स्तर पर बहिष्कार बढ़ रहा है। 2022 में हार्वर्ड और येल जैसे अमेरिकी विश्वविद्यालयों ने US न्यूज रैंकिंग छोड़ी, कहा ये असमानता बढ़ाती हैं। यूनेस्को और आईएयू (इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटीज़) ने चेतावनी दी कि रैंकिंग विविधता को नजरअंदाज करती हैं, विकासशील देशों को नुकसान। भारत में NIRF को बेहतर विकल्प माना जा रहा, लेकिन उसमें भी सुधार की जरूरत। विशेषज्ञों का मानना है कि रैंकिंग के बजाय ओपन साइंस, सहयोग और स्थानीय प्रभाव पर फोकस होना चाहिए।
यह बहिष्कार रैंकिंग की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहा है, लेकिन संस्थानों की वैश्विक दृश्यता प्रभावित हो सकती है।

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