पंचतत्व संजीव प्राणियो के जीवन के लिए मूल भूत आधार माने गए हैं। उसमें से एक तत्व जल यानी नीर भी है। यदि जल ही नहीं होगा तो जीवन की कल्पना कैसी और सृष्टि का निर्माण कैसा? जल का महत्व इस बात का भी संकेतक है कि दुनिया की बड़ी-बड़ी सभ्यताएँ और प्राचीन नगर नदियों के किनारे ही बसे और फले-फूले। लेकिन,आज विकास की दौड़ और विलासिता भरी जिंदगी में प्राकृतिक संसाधनों का तो जैसे कोई मोल नहीं है। ये कविता के शब्द सब कुछ बयां करते है।
बड़ बोले पृथ्वी पर
मनुष्य की अन्यतम उपलब्धियों के
अंत की घोषणा कर चुके हैं
और अंत में बची है पृथ्वी
उनकी जठराग्नि से जल-जंगल-जमीन
खतरे में हैं
खतरे में हैं पशु-पक्षी-पहाड़
नदियाँ-समुद्र-हवा खतरे में हैं।
मनुष्य ने किस तरह प्रकृति का संतुलन बिगाड़ा है और अपने लिए खतरे की स्थिति उत्पन्न कर ली है। आज अधिकांश प्राकृतिक संसाधन समाप्ति की कगार पर हैं जिनमें से जल भी एक है। इसमें कोई संदेह नहीं कि-
जल है तो जीवन है, जीवन है तो ये पर्यावरण है,
पर्यावरण से ये धरती है, और इस धरती से हम सब है।
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मगर, पर्यावरण के साथ निरंतर खिलवाड़ का यह परिणाम हुआ कि आज दुनिया के अधिकांश देश अपनी आबादी को पीने का स्वच्छ पानी तक मुहैया नहीं करा पा रहे हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। तमाम रिपोर्टे इस बात को चीख-चीखकर कह रही हैं कि यदि आज हम जल-संसाधन का उचित प्रबंधन नहीं कर पाते हैं तो भावी पीढ़ी जल के एक-एक बूंद के लिए तरस जाएगी। एक शोध के मुताबिक आज जिस रफ्तार से जंगल खत्म हो रहे हैं उससे तीन गुना अधिक रफ्तार से जल के स्रोत सूख रहे हैं। नीति आयोग के श्समग्र जल प्रबंधन सूचकांक की माने तो भारत के लगभग 600 मिलियन से अधिक लोग गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट में इस बात का भी अंदेशा जताया गया है कि साल 2030 तक भारत में पानी की मांग उपलब्ध आपूर्ति की तुलना में दोगुनी हो जाएगी। इसके अलावा भारत इस समय पेयजल के साथ-साथ कृषि उपयोग हेतु जल संकट से भी गुजर रहा है और यह संकट वैश्विक स्तर पर साफ दिख रहा है। सक्रिय भूमि जल संसाधन मूल्यांकन रिपोर्ट 2022श् के मुताबिक भारत में कुल वार्षिक भू-जल पुनर्भरण 437.60 बिलियन क्यूबिक मीटर है, जबकि वार्षिक भू-जल निकासी 239.16 ठब्ड है। इन आँकड़ों से एक बात यह भी स्पष्ट होती है कि भारत विश्व में भू-जल का सबसे अधिक निष्कर्षण करता है। भारत में निष्कर्षित भू-जल का केवल 8 फीसद ही पेयजल के रूप में उपयोग किया जाता है। जबकि, इसका 80 फीसद भाग सिंचाई में और शेष 12 प्रतिशत हिस्सा उद्योगों द्वारा उपयोग किया जाता है। ऐसे में देश में भू-जल की मात्रा में भी दिनों-दिन कमी आ रही है।
फिलहाल, विश्वभर के देशों को इस जल संकट को दूर करने की दिशा में ठोस कदम उठाने पर विचार करना चाहिए। इस संकट के निवारण हेतु हमें तीन स्तरों पर विचार करना होगा। पहला यह कि अब तक हम जल का उपयोग किस तरह से करते आ रहे थे? दूसरा यह कि भविष्य में इसका उपयोग कैसे करना है? और तीसरा एवं सबसे आखिरी यह कि जल संरक्षण हेतु क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
अब तक की पूरी स्थिति पर अगर नजर डालेंगे तो पायेंगे कि अभी तक हम पानी का उपयोग अनुशासित ढंग से नहीं करते आ रहें है। जरूरत से ज्यादा पानी का नुकसान करना तो जैसे हमारी आदत बन गई हो। ऐसे में हमारी भावी पीढ़ी के लिए भी जल की उपलब्धता सुनिश्चित हो, इसके लिए हमें कई कदम उठाने होंगे।
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घरेलू स्तर पर जल का उचित व संयमित उपयोग एवं उद्योगों में पानी के चक्रीय उपयोग जल संरक्षण में सहायक हो सकते हैं इस्तेमाल किये हुए पानी का फिर से शौचालयों अथवा बगीचों में फिर से इस्तेमाल और रिसाइकिलिंग करके जल का सदुपयोग कैसे करना है, इस दिशा में जन-जागरूकता बढ़ायी जाए वर्षा-जल का संग्रहण करके हम पानी को बचा सकते हैं विभिन्न जलाशयों का निर्माण करके उनमें जल संग्रह करना जल संसाधन का सबसे पुराना उपाय है, इसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है भूमिगत जल संरक्षण के लिए भूमिगत जल का कृत्रिम रूप से पुनर्भरण किया जा सकता है टपकन टैंक,ड्रिप,स्प्रिंकल सिंचाई के उपयोग से सिंचाई जल के संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सकता है जलग्रहण क्षेत्रों का संरक्षण करके जल के साथ-साथ मृदा का भी संरक्षण किया जा सकता है। यह विधि सामान्यतः पहाड़ी क्षेत्रों में प्रयोग में लायी जाती है फसल उगाने के तरीकों का प्रबंधन करकेय जैसे कि कम जल क्षेत्रों में ऐसे पौधों का चयन करके जिनकी पैदावार के लिए कम पानी की जरूरत हो नहरों की तली व नालियों को पक्का करके नहरों-नालियों से बहने वाले अतिरिक्त जल को बचाया जा सकता है
अगर हम बात मौजूदा समय में भारत की जल जरूरत पर बात करें तो इसके लगभग 1,100 बिलियन क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष होने का अनुमान है। इस उच्च आवश्यकता को पूरा करने के लिए, भारत सरकार भी विभिन्न साधनों और उपायों के जरिए जल निकायों की स्थिति और बेहतर उपचार प्रणालियों में सुधार करने की कोशिश कर रही है। इनमें से कुछ प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं, जिन्हें अपनाया गया है और आगे बढ़ाया गया है।
जल की उपलब्धता, संरक्षण और गुणवत्ता में सुधार के उद्देश्य से सन 2019 में श्जल शक्ति अभियानश् शुरू किया गया। जल शक्ति मंत्रालय ने राज्यों,केंद्र शासित प्रदेशों को मॉडल बिल का वितरण ताकि वे इसके नियमन और विकास के लिए एक उपयुक्त भू-जल कानूनश् इनेक्ट कर सकें। इस कानून को अब तक 19 राज्यों,केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अपनाया जा चुका है।
भूजल विकास और प्रबंधन के विनियमन और नियंत्रण के लिए श्पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986- के तहत श्केंद्रीय भूजल प्राधिकरण का गठन हुआ।
भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण के लिए सेंट्रल ग्राउण्ड वॉटर बोर्ड द्वारा मास्टर प्लान- 2020श् तैयार किया गया है, जिसमें मानसूनी वर्षा के 185 बिलियन क्यूबिक मीटर का उपयोग करने के लिए देश में लगभग 1.42 करोड़ वर्षा जल संचयन और कृत्रिम पुनर्भरण संरचनाओं के निर्माण की परिकल्पना की गई है। वही जल संरक्षण की दिशा में प्रशिक्षण, सेमिनार, कार्यशालाएँ, प्रदर्शनियाँ, और चित्रकला प्रतियोगिता आदि जैसे जन-जागरूकता कार्यक्रमों का नियमित आयोजन किया गया।
अटल भूजल योजना भूजल प्रबंधन पर इस बड़ी योजना का शुभारंभ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 25 दिसंबर 2019 को किया गया। 6000 करोड़ रुपये की इस योजना में 50 फीसदी फंड विश्व बैंक का और 50 फीसदी भारत सरकार लगाएगी। इस योजना का मकसद देश के 7 चुनिंदा राज्यों के भूजल की कमी से जूझने वाले क्षेत्रों में बेहतर भूजल प्रबंधन करना है। इन राज्यों में गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और यूपी शामिल हैं।