अयोध्या में यह समस्या सबसे ज्यादा उभरी है, जहां अनुमानित 16,000 साधु-संत रहते हैं। ये लोग राम मंदिर आंदोलन से जुड़े होने के कारण भाजपा के महत्वपूर्ण वोट बैंक का हिस्सा हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में फैजाबाद सीट पर हार के बावजूद अयोध्या विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को 4,667 वोटों की मामूली बढ़त मिली थी। ऐसे में इन साधुओं के नाम कटने से पार्टी को राजनीतिक नुकसान हो सकता है। स्थानीय भाजपा नेता मुकेश तिवारी ने साधुओं को फॉर्म भरने में मार्गदर्शन किया, जबकि पूर्व सांसद और विश्व हिंदू परिषद (VHP) नेता राम विलास वेदांती ने अपना मां का नाम ‘जानकी’ लिखा।
वेदांती ने बताया, “मैं विरक्त परंपरा का पालन करता हूं। मेरे गुरु भी गृहस्थ नहीं थे, इसलिए मैंने जानकी लिखा। यह आध्यात्मिक कारणों से भी जुड़ा है। इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।” इसी तरह, दिगंबर अखाड़े के महामंडलेश्वर प्रेम शंकर दास ने भी ‘जानकी’ या ‘सीता’ का नाम चुना। साधु-संत अपनी आधिकारिक दस्तावेजों में आध्यात्मिक गुरु को पिता मानते हैं और मां का नाम न लिखने की परंपरा रखते हैं, क्योंकि वे सांसारिक बंधनों से मुक्त हो चुके होते हैं। लेकिन SIR फॉर्म में यह कॉलम अनिवार्य होने से फॉर्म रद्द होने का खतरा पैदा हो गया।
भाजपा के अवध प्रभारी महासचिव विजय प्रताप सिंह ने कहा, “अधूरी फॉर्म रिजेक्ट होने की आशंका से हमने साधुओं से अपील की कि वे अपनी धार्मिक परंपरा के अनुसार जानकी, कौशल्या या अन्य सम्मानित नाम लिखें। अधिकांश ने इसे स्वीकार कर लिया।” अयोध्या के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट अनिरुध प्रताप सिंह, जो निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी हैं, ने स्पष्ट किया, “संन्यासियों के मामले में बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) उनके पास पहुंच रहे हैं। वे जो भी नाम बताते हैं, वही लिखा जा रहा है। हम उन्हें बायोलॉजिकल माता-पिता के नाम भी बता सकते हैं, लेकिन कानूनी दस्तावेज होने से सावधानी बरतनी पड़ रही है।”
यात्रा पर साधु
समस्या केवल नाम भरने तक सीमित नहीं रही। भाजपा कार्यकर्ताओं को साधुओं को उनके पते पर ढूंढना भी मुश्किल हो रहा, क्योंकि कई साधु तीर्थयात्रा या धार्मिक अनुष्ठानों के लिए देशभर में घूम रहे हैं। वृंदावन में सुडामा कुटि आश्रम को 167 फॉर्म मिले, लेकिन केवल 43 ही भरे हुए लौटे। बाकी साधु संपर्क से बाहर हैं। एक स्थानीय नेता ने चिंता जताई, “अगर उनके नाम कट गए, तो पार्टी के लिए समस्या हो सकती है। ऑनलाइन सबमिशन संभव है, लेकिन अधिकांश साधु तकनीक से अपरिचित हैं।”
प्रेम शंकर दास के आश्रम ‘सिद्धपीठ रामधाम’ में 12 वोटर हैं, जिनमें से आधे यात्रा पर हैं। दास ने कहा, “BLO ने अभी फॉर्म नहीं दिए। मिलते ही उन्हें संपर्क कर लौटने को कहूंगा।” वृंदावन और वाराणसी में भी साधु मां का नाम खाली छोड़ रहे हैं, लेकिन नेता उम्मीद जता रहे हैं कि ड्राफ्ट लिस्ट प्रकाशन के बाद दावा-आपत्ति से समस्या हल हो जाएगी।
चुनाव आयोग के इस फैसले से अब समय मिल गया है, लेकिन यह घटना भाजपा की तीर्थ नगरों में संगठनात्मक कमजोरी को उजागर करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि साधु-संतों का वोट बैंक राम मंदिर जैसे मुद्दों पर भाजपा का मजबूत आधार रहा है, इसलिए इस तरह की छोटी-छोटी चुनौतियां भी राजनीतिक महत्व रखती हैं। उत्तर प्रदेश मुख्य निर्वाचन अधिकारी नवदीप रिनवा से संपर्क का प्रयास किया गया, लेकिन वे उपलब्ध नहीं थे।

