800 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा वाराणसी रोपवे न केवल शहर की यातायात व्यवस्था को सुगम बनाएगा, बल्कि यह उन शहरों के लिए एक राष्ट्रीय परीक्षण कथा (टेस्ट केस) भी बनेगा जहां मेट्रो रेल जैसी परियोजनाएं संभव नहीं होतीं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में विकसित यह हवाई रोपवे, जो दुनिया का तीसरा सार्वजनिक परिवहन रोपवे होगा, फरवरी 2026 तक पूरी तरह चालू हो जाएगा।
यह 3.8 किलोमीटर लंबा इको-फ्रेंडली कॉरिडोर वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से गोडौलिया चौराहा तक फैला हुआ है। इसमें पांच स्टेशन होंगे: कैंट, विद्या पीठ (भारतमाला मंदिर), रथ यात्रा, गिरजा घर और गोडौलिया चौराहा। प्रत्येक गोंडोला (केबल कार) में 10 यात्री सवार हो सकेंगे और कुल 148 गोंडोलों से प्रतिदिन लगभग एक लाख यात्री सफर कर सकेंगे। वर्तमान में कैंट से गोदौलिया तक का सफर ट्रैफिक जाम में एक घंटे से अधिक लगता है, लेकिन रोपवे से यह दूरी मात्र 17 मिनट में तय हो जाएगी। 45-50 मीटर की ऊंचाई पर चलने वाली ये केबल कारें 16 घंटे प्रतिदिन संचालित होंगी, जिससे शहर की सड़कों पर वाहनों का दबाव कम होगा और वायु प्रदूषण में भी कमी आएगी।
प्रोजेक्ट की शुरुआत मार्च 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। राष्ट्रीय राजमार्ग लॉजिस्टिक्स प्रबंधन लिमिटेड (एनएचएलएमएल) द्वारा संचालित यह योजना हाइब्रिड एन्यूटी मॉडल पर आधारित है, जिसमें निर्माण के दौरान 60% और संचालन-रखरखाव के लिए 40% फंडिंग होगी। कुल लागत 807 करोड़ रुपये है, जिसमें 15 वर्षों का संचालन और रखरखाव शामिल है। स्विस कंपनी बार्थोलेट टेक्नोलॉजी पार्टनर है, जबकि गोंडोलों का डिजाइन पोर्श ने तैयार किया है। विशेष रूप से, इस प्रोजेक्ट के लिए स्विस बैंक से 40 मिलियन यूरो (लगभग 360 करोड़ रुपये) का ऋण लिया गया है, जो भारत में विदेशी निवेश का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
वाराणसी विकास प्राधिकरण के पूर्व उपाध्यक्ष पुलकित गर्ग ने इसे “दूरदर्शी परियोजना” बताया है। उन्होंने कहा, “यह पूरी तरह हरा-भरा इंफ्रास्ट्रक्चर है। स्टेशनों पर एसी वेटिंग एरिया, व्हीलचेयर रैंप, लिफ्ट, पार्किंग और फूड कोर्ट जैसी सुविधाएं होंगी। तीन स्तर की रेस्क्यू सिस्टम से सुरक्षा सुनिश्चित होगी।” परीक्षण चालन अक्टूबर 2025 से शुरू हो चुका है और तीन महीने तक चलेगा। गोदौलिया स्टेशन पर सिविल वर्क दिसंबर 2025 तक पूरे हो जाएंगे।
यह प्रोजेक्ट 2018 में मेट्रो प्लान रिजेक्ट होने के बाद राइट्स (रेल इंडिया टेक्निकल एंड इकोनॉमिक सर्विस) द्वारा सुझाए गए मास रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (एमआरटीएस) का हिस्सा है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद शहर में पर्यटकों की संख्या दोगुनी हो गई है, जिससे ट्रैफिक की समस्या और गंभीर हो गई। रोपवे न केवल स्थानीय निवासियों, बल्कि तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए वरदान साबित होगा, जो काशी विश्वनाथ मंदिर और दशाश्वमेध घाट तक आसानी से पहुंच सकेंगे।
राष्ट्रीय स्तर पर, मोदी सरकार ने अगले पांच वर्षों में 250 रोपवे प्रोजेक्ट्स की योजना बनाई है, जो 1,200 किलोमीटर कवर करेंगे। यह भारत की सिविल इंजीनियरिंग संकट (जैसे पुलों का गिरना और मेट्रो की देरी) के बीच एक वैकल्पिक समाधान है।
उत्तराखंड में 13 किमी लंबे रोपवे पर 4,081 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं, जो वाराणसी मॉडल को मजबूत करेगा।
हालांकि, एक वायरल वीडियो ने प्रोजेक्ट को झटका दिया, जिसमें रोपवे के गिरने का फर्जी दावा किया गया था। प्रशासन ने तुरंत स्पष्टीकरण जारी कर इसे छत्तीसगढ़ के मंदिर रोपवे का पुराना क्लिप बताया। सोशल मीडिया पर यूजर्स इसे सराह रहे हैं, जैसे एक पोस्ट में कहा गया, “वाराणसी अब हवाई रोपवे शहर बन गया।” यह प्रोजेक्ट न केवल काशी को आधुनिक बनाएगा, बल्कि शहरी परिवहन में क्रांति लाएगा।

