ATS की टीम ने मंगलवार को कंपनी के दफ्तर पर अचानक दबिश दी। इस दौरान दस्तावेजों, कर्मचारियों के रिकॉर्ड और सीसीटीवी फुटेज की बारीकी से छानबीन की गई। स्थानीय पुलिस को इस छापेमारी की कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई थी, जिसके कारण कार्रवाई पूरी तरह गोपनीय रही। सूत्रों के अनुसार, ATS को शक है कि गिरफ्तारी के बाद भी कंपनी की कुछ गतिविधियां जारी हैं, और जल्द ही इस मामले में और गिरफ्तारियां हो सकती हैं।
भड़काऊ किताबों का नेटवर्क
जांच एजेंसी के अनुसार, फरहान नबी सिद्दीकी (दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन का निवासी) और उसके साथी नसी टॉरबा (तुर्की का नागरिक) ने ‘हकीकत वक़्फ़ी फाउंडेशन’ और ‘रीयल ग्लोबल एक्सप्रेस लॉजिस्टिक प्राइवेट लिमिटेड’ जैसी कई फ्रंट कंपनियां चला रखी थीं। कासना में स्थित ‘हकीकत प्रिंटिंग पब्लिकेशन’ यूनिट से हिंदी, उर्दू, अरबी और बंगाली भाषाओं में किताबें छापी जा रही थीं। ये किताबें धार्मिक समुदायों के बीच नफरत फैलाने और लोकतांत्रिक संस्थाओं के खिलाफ भड़काऊ सामग्री से भरी हुई थीं। इन्हें आयुर्वेदिक दवाओं या आरओ मशीनों के पैकेजिंग में छिपाकर देशभर में भेजा जाता था।
ATS को खुफिया इनपुट मिला था कि कंपनी को विदेश से हवाला और अन्य अवैध चैनलों से करीब 11 करोड़ रुपये की फंडिंग मिली। इस पैसे का इस्तेमाल उत्तर प्रदेश के अमरोहा और पंजाब में मदरसों, मस्जिदों और प्राइवेट फर्मों के नाम पर जमीन खरीदने में किया गया। फरहान के घर पर छापे में अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को शरण मिलने के सबूत भी मिले। गिरफ्तारी के बाद लखनऊ के ATS थाने में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152, 196, 318(4) और 61(2) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।
तुर्की कनेक्शन
फरहान का तुर्की का साझेदार नसी टॉरबा फरार बताया जा रहा है। ATS ने उसके खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी कर दिया है। जांच में पता चला कि टॉरबा ने कंपनी की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अधिकारियों का कहना है कि यह नेटवर्क न केवल टेरर फंडिंग का जरिया था, बल्कि कम्युनल डिस्कॉर्ड फैलाने का भी माध्यम बन रहा था।
आगे की जांच
ATS के डीआईजी स्तर के अधिकारी ने बताया कि यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है, इसलिए जांच तेजी से चल रही है। “कंपनी की हर गतिविधि पर नजर रखी जा रही है। विदेशी फंडिंग के स्रोतों और वितरण नेटवर्क का पर्दाफाश होगा,” उन्होंने कहा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह केस ISIS या अल-कायदा जैसे संगठनों से जुड़े बड़े मॉड्यूल का हिस्सा हो सकता है, जैसा कि गुजरात ATS के हालिया मामलों में देखा गया।
यह घटना ग्रेटर नोएडा जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में छिपे टेरर फंडिंग नेटवर्क की ओर इशारा करती नजर आ रही है। स्थानीय निवासियों में चिंता का माहौल है, लेकिन ATS की सतर्कता से सुरक्षा मजबूत हुई है। मामले में और अपडेट्स के लिए बने रहें।

