त्रिपुरा: TIPRA से तनाव और अंदरूनी कलह से क्या गिरने वाली है माणिक साहा सरकार, बढी बीजेपी की मुश्किलें

Tripura/Agartala News: त्रिपुरा की सत्ताधारी भाजपा सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। आदिवासी सहयोगी पार्टी टिप्रा मोथा (TIPRA) के साथ बढ़ते तनाव और पार्टी के अंदरूनी गुटबाजी ने मुख्यमंत्री माणिक साहा की सरकार को कमजोर कर दिया है।

हाल के दिनों में हुई हिंसक घटनाओं ने न केवल गठबंधन की नींव हिला दी है, बल्कि भाजपा के भीतर मुख्यमंत्रियों के प्रति वफादार और विरोधी गुटों के बीच खुली जंग भी उजागर कर दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि आगामी त्रिपुरा ट्राइबल एरियाज ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (TTAADC) चुनावों से पहले यह कलह भाजपा के लिए बड़ा खतरा बन सकती है।

पिछले कुछ हफ्तों में त्रिपुरा की राजनीति में उथल-पुथल मच गई है। 23 अक्टूबर को टिप्रासा सिविल सोसाइटी (जो TIPRA से जुड़ी हुई है) द्वारा बुलाए गए 24 घंटे के राज्यव्यापी बंद के दौरान धलाई जिले के शांतिरबाजार में हिंसा भड़क उठी। भीड़ ने ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर अभिजीत मजुमदार, इंजीनियर अनिमेश साहा और कई स्थानीय निवासियों पर हमला कर दिया। हमलावरों ने लाठियां, डाव (तीक्ष्ण हथियार) और स्लिंगशॉट्स का इस्तेमाल किया, जिससे कई लोग घायल हो गए। अस्पताल में भर्ती घायलों से मिलने के बाद मुख्यमंत्री माणिक साहा ने इसे “पूर्वनियोजित साजिश” करार दिया और कहा, “यह हिंसा सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश है।

कानून से ऊपर कोई नहीं है।” साहा ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए TIPRA समर्थकों पर हमले का आरोप लगाया और पुलिस को सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए।

यह घटना TIPRA और BJP के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद का नया अध्याय है। TIPRA मोथा के संस्थापक प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा ने हाल ही में राज्यपाल इंद्रा सेना रेड्डी नल्लू से मुलाकात की, जिससे गठबंधन टूटने की अटकलें तेज हो गईं। पार्टी के एक विधायक रंजीत देबबर्मा ने तो खुलेआम कहा कि TIPRA सरकार से समर्थन वापस लेने पर विचार कर रही है, क्योंकि “टिप्रासा समझौते” का समयबद्ध कार्यान्वयन नहीं हो रहा। यह समझौता आदिवासी समुदायों की मांगों—जैसे भूमि अधिकार, भाषाई मान्यता और TTAADC क्षेत्रों में विकास—को पूरा करने के लिए 2023 में BJP-TIPRA-केंद्र सरकार के बीच हुआ था। TIPRA के प्रवक्ता एंथनी देबबर्मा ने कहा, “मुख्यमंत्री को आरोप लगाने के बजाय संवाद का रास्ता अपनाना चाहिए। हम अन्याय के खिलाफ चुप नहीं रह सकते।”

BJP के अंदर भी हालात ठीक नहीं हैं। साहा ने हिंसा के पीछे “अंदरूनी पार्टी राजनीति” का संकेत दिया, जो पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद बिप्लब कुमार देब के गुट को निशाना बना सकता है। देब और साहा के बीच पुरानी दुश्मनी जगजाहिर है, और हाल के महीनों में TIPRA के साथ BJP के रिश्तों को लेकर दोनों गुटों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला। साहा ने कहा, “साजिश में सब कुछ शामिल है,” जो अंदरूनी कलह की ओर इशारा करता है। BJP के पास विधानसभा में 32 सीटें हैं, जो बहुमत के ठीक ऊपर हैं, इसलिए TIPRA का 13 विधायकों वाला समर्थन सरकार की स्थिरता के लिए जरूरी है।

विपक्ष ने भी इस मुद्दे को हाथोंहाथ लिया है। पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने BJP-TIPRA गठबंधन को “लूट का राज” करार दिया और कहा कि बंद को शुरू में सरकार ने नैतिक समर्थन दिया था, लेकिन दबाव में पीछे हट गई। CPI(M) नेता ने आरोप लगाया कि दोनों पार्टियां जनजातीय और गैर-जनजातीय वोटरों को बांटने की कोशिश कर रही हैं। वहीं, तृणमूल कांग्रेस ने त्रिपुरा में BJP कार्यकर्ताओं द्वारा अपनी पार्टी कार्यालय पर हमले का हवाला देकर राज्य को “आतंक का रंगमंच” बताया।

मुख्यमंत्री साहा ने शनिवार को मंडवाई में BJP में शामिल हुए 339 आदिवासी मतदाताओं का स्वागत करते हुए कहा, “राजनीति मसल पावर या सांप्रदायिक उकसावे से नहीं चलती। हम डर की राजनीति को समाप्त करेंगे।” उन्होंने TIPRA पर अप्रत्यक्ष निशाना साधते हुए चेतावनी दी कि हिंसा बर्दाश्त नहीं की जाएगी। हालांकि, TIPRA ने इसका जवाब देते हुए संवाद की मांग की है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि TTAADC चुनावों से पहले यह तनाव BJP के लिए घातक साबित हो सकता है। यदि TIPRA ने समर्थन वापस लिया, तो अल्पमत सरकार गिरने का खतरा मंडराएगा। फिलहाल, साहा सरकार कठिन दौर से गुजर रही है, और राज्य की शांति बहाली ही एकमात्र रास्ता नजर आता है।

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