यह अग्निपथ योजना के तहत भर्ती हुए किसी सैनिक की युद्ध क्षेत्र में पहली शहादत थी।
याचिका में कहा गया है कि अग्निवीर और नियमित सैनिक एक ही वर्दी पहनते हैं, एक ही जोखिम उठाते हैं और एक ही शपथ लेते हैं, फिर भी मृत्यु के बाद उनके परिवारों के साथ भेदभाव किया जा रहा है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है।
मांगी गई मुख्य राहतें:
• आजीवन पारिवारिक पेंशन (Liberalised Family Pension)
• मृत्यु उपदान (Death Gratuity)
• भूतपूर्व सैनिक का दर्जा और ईएसएम सुविधाएं
• सरकारी अस्पतालों में मुफ़्त इलाज
• शहीद स्मारकों में नाम शामिल करना
• अंतिम संस्कार में पूर्ण सैन्य सम्मान
वर्तमान में नियमित सैनिक के शहीद होने पर परिवार को आजीवन पेंशन और कई अन्य सुविधाएं मिलती हैं, जबकि अग्निवीर के मामले में केवल एकमुश्त लगभग 1 करोड़ रुपये का पैकेज (बीमा + अनुग्रह राशि) दिया जाता है। याचिका में कहा गया है कि इतनी बड़ी राशि एक बार में मिलने से परिवार की लंबे समय तक की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होती।
याचिकाकर्ता ज्योति बाई मुंबई की रहने वाली हैं और उन्होंने बताया कि वे पूरी तरह अपने इकलौते बेटे पर निर्भर थीं। पति बेरोज़गार हैं और अब परिवार गहरे आर्थिक संकट में है।
संसदीय समिति ने भी की थी सिफारिश
दिसंबर 2024 में संसद की रक्षा संबंधी स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा था कि युद्ध में शहीद होने वाले अग्निवीरों के परिवारों को भी नियमित सैनिकों जैसी ही सुविधाएं मिलनी चाहिए। समिति ने चेतावनी दी थी कि “दो तरह के शहीद” बनाने से सेना का मनोबल गिरेगा और यह समानता के सिद्धांत के विरुद्ध है।
याचिकाकर्ता ने 3 जुलाई 2025 को रक्षा मंत्रालय को भी प्रतिवेदन दिया था, लेकिन उस पर अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया।
याचिका प्रसिद्ध वकील प्रकाश अंबेडकर पेश करेंगे। मामले की सुनवाई आने वाले कुछ हफ़्तों में होने की संभावना है।
यह मामला न सिर्फ़ एक परिवार की लड़ाई है, बल्कि पूरे अग्निपथ योजना के तहत भर्ती लाखों युवाओं और उनके परिवारों के भविष्य से जुड़ा महत्वपूर्ण सवाल उठा रहा है।

