Supreme Court News: इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़े “कैश कांड” मामले में सुप्रीम कोर्ट में सोमवार और बुधवार (28 और 30 जुलाई 2025) को महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती देने वाली जस्टिस वर्मा की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने जस्टिस वर्मा के वकील कपिल सिब्बल से कई तीखे सवाल पूछे।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला मार्च 2025 में तब सामने आया जब जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास से भारी मात्रा में जली हुई नकदी मिली थी। इस घटना के बाद तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने तीन जजों की एक आंतरिक जांच समिति का गठन किया था। समिति ने अपनी जांच में जस्टिस वर्मा को दोषी पाया और उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश करते हुए उन्हें इस्तीफा देने का सुझाव दिया। जब जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा नहीं दिया, तो जांच समिति की रिपोर्ट CJI ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी, जिसमें उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की सिफारिश की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
जस्टिस यशवंत वर्मा ने इस आंतरिक जांच रिपोर्ट और उन्हें पद से हटाने की CJI की सिफारिश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए.जी. मसीह की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी।
सुनवाई के प्रमुख बिंदु
सुप्रीम कोर्ट ने शुरुआत में ही याचिका के औचित्य पर सवाल उठाए। जस्टिस दत्ता ने आपत्ति जताई कि याचिका में भारत सरकार को प्रतिवादी क्यों बनाया गया है, जबकि मुख्य विवाद सुप्रीम कोर्ट से है। उन्होंने यह भी पूछा कि जब इन-हाउस जांच प्रक्रिया चल रही थी, तो जस्टिस वर्मा ने उसमें भाग लेने के बाद अब उसे चुनौती क्यों दी?
जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका …. नाम से दायर की थी, जिस पर भी सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया और पहचान छिपाने का कारण पूछा।
कपिल सिब्बल की दलीलें
जस्टिस वर्मा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि किसी भी न्यायाधीश को केवल संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत ही बर्खास्त किया जा सकता है, न कि इन-हाउस समिति की रिपोर्ट के आधार पर। उन्होंने कहा कि आंतरिक प्रक्रिया के तहत जजों को हटाने की प्रक्रिया अनुच्छेद 124 के अधिकारों का उल्लंघन है। सिब्बल ने यह भी आपत्ति जताई कि जांच रिपोर्ट को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को क्यों भेजा गया, क्योंकि CJI के पास महाभियोग की सिफारिश करने का अधिकार नहीं है।
कोर्ट के तीखे सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने सिब्बल से पूछा कि अगर उन्हें जांच प्रक्रिया पर आपत्ति थी तो उन्होंने जांच के दौरान इसे क्यों नहीं उठाया। जस्टिस दत्ता ने कहा कि यदि सामग्री कदाचार दिखाती है तो CJI का कर्तव्य है कि वह इसे आगे बढ़ाएं।
फैसला सुरक्षित
लंबी सुनवाई के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इसके साथ ही एक अन्य याचिका पर भी कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया, जिसमें जस्टिस वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग की गई थी।
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