सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी.वी. नागरत्ना, कानून का शासन लोकतंत्र का आधार, इसे बिना भय लागू किया जाये

Supreme Court/Judge Justice B.V. Nagarathna News: सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (NLU), दिल्ली के 12वें दीक्षांत समारोह में शनिवार को अपने संबोधन में जोर देकर कहा कि कानून का शासन लोकतंत्र का मूल आधार है और इसे संरक्षित करने की जिम्मेदारी विशेष रूप से न्यायालयों की है। उन्होंने कहा कि अदालतों को बिना किसी भय, पक्षपात, स्नेह या द्वेष के कानून को लागू करना चाहिए ताकि लोकतंत्र की आत्मा बरकरार रहे।

जस्टिस नागरत्ना ने अपने भाषण में कानून को केवल नियमों का समूह नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का एक शक्तिशाली माध्यम बताया। उन्होंने कहा, “कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक व्यक्ति, चाहे उसकी संपत्ति, स्थिति, जाति, लिंग या आस्था कुछ भी हो, कानून के समक्ष समान माना जाए।” उन्होंने भारतीय समाज में मौजूद गहरी असमानताओं पर प्रकाश डालते हुए कानूनी पेशे को सामाजिक बदलाव का जरिया बताया, जो इन असमानताओं को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

संविधान के संरक्षक बनें वकील
जस्टिस नागरत्ना ने युवा विधि स्नातकों से आह्वान किया कि वे संविधान के संरक्षक बनें। उन्होंने कहा, “संविधान को उसकी पूरी उदारता और नेकनीयती के साथ लागू करने की जिम्मेदारी न केवल सत्ता के गलियारों में बैठे लोगों की है, बल्कि प्रत्येक वकील की भी है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि वकीलों को कानून को एक ऐसे सेतु के रूप में स्थापित करना चाहिए जो अधिकारों और उपायों, संविधान और नागरिकों, तथा न्याय और जनता के बीच की खाई को पाटे।

उन्होंने कहा कि अक्सर कानून को एक ऐसे किले के रूप में देखा जाता है, जिस तक केवल शक्तिशाली लोग ही पहुंच सकते हैं। लेकिन वकीलों की जिम्मेदारी है कि वे इसे सभी के लिए सुलभ बनाएं। “कानून सभी का है, लेकिन हर कोई इसका उपयोग नहीं कर सकता। आप वह अंतर पैदा कर सकते हैं जो यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी इस पहुंच से वंचित न रहे,” जस्टिस नागरत्ना ने स्नातकों से कहा।

स्वतंत्र न्यायपालिका और सुशासन
जस्टिस नागरत्ना ने कानून के शासन को सुशासन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता बताया और इसे भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका और स्वतंत्र बार के समर्थन से संभव बताया। उन्होंने कहा, “कानून का शासन न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर बहुत हद तक निर्भर करता है।” उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए प्रत्येक नागरिक को सुशासन का सह-निर्माता बनना होगा, न कि केवल इसका उपभोक्ता।

संविधान सामाजिक परिवर्तन का चार्टर
जस्टिस नागरत्ना ने संविधान को केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का एक चार्टर बताया। उन्होंने कहा कि संविधान समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व जैसे मूल्यों पर आधारित है, और इन मूल्यों को लागू करना वकीलों की जिम्मेदारी है। संविधान सभा में डॉ. बी.आर. अंबेडकर के अंतिम भाषण का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि संविधान की सफलता उन लोगों के आचरण पर निर्भर करती है जो इसे लागू करते हैं।

कानूनी पेशे में महिलाओं का प्रतिनिधित्व
जस्टिस नागरत्ना ने कानूनी पेशे में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व पर भी चिंता जताई। उन्होंने बताया कि भारत के उच्च न्यायालयों में केवल 13% महिला जज हैं, जबकि नामांकित वकीलों में महिलाओं की संख्या केवल 15% है। उन्होंने कहा कि कई महिलाएं व्यक्तिगत और पेशेवर मांगों के कारण अपने करियर के चरम पर कानूनी पेशे से बाहर हो जाती हैं।

निष्कर्ष
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने अपने संबोधन में युवा वकीलों को संवैधानिक मूल्यों के प्रति निष्ठा और सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्धता के साथ काम करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि कानून का शासन और स्वतंत्र न्यायपालिका लोकतंत्र की रीढ़ हैं, और इसे मजबूत करने में वकीलों और न्यायालयों की भूमिका महत्वपूर्ण है।

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