Supreme Court: नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कैदियों को मुफ्त कानूनी सहायता और जेल सुधारों के मुद्दे पर अहम फैसला दिया है। जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कैदियों के सुधार और कानूनी सहायता की पहुंच पर विशेष ध्यान देने के साथ-साथ आरोपितों के अलावा पीड़ितों के लिए भी दिशा-निर्देश जारी किये हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 30 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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मानवाधिकार कार्यकर्ता सुहास चकमा की ओर से दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुधार गृहों, जेलों और जेल में बंद विचाराधीन कैदियों की दुर्दशा पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए उन्हें बेहतर कानूनी सेवाओं की आवश्यकता पर जोर दिया। कोर्ट ने ये दिशा-निर्देश कैदियों और आरोपियों के अलावा उन पीड़ितों के लिए भी जारी किये हैं, जिनके नागरिक और आपराधिक अधिकारों का हनन हुआ है। कोर्ट ने कानूनी सहायता की उपलब्धता के बारे में व्यापक जागरुकता पैदा करने के महत्व को रेखांकित किया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जेलों और सुधार गृहों का नियमित निरीक्षण सुनिश्चित करने के लिए कई सिफारिश की है, ताकि कैदियों की स्थिति में सुधार हो सके और उन्हें समाज में पुन: एकीकृत किया जा सके। कोर्ट के मुताबिक य़ह उपाय कैदियों को सुधारात्मक रास्ते पर लाने के उद्देश्य से है। देश में सबसे अधिक खुली जेलों वाले राज्य राजस्थान का इस मामले में विशेष रूप से उल्लेख करते हुए उसके सुधारात्मक प्रयासों की सराहना की।