किसानों पर ‘फैशन’ का आरोप
सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली प्रदूषण से जुड़ी याचिका पर सुनवाई के दौरान CJI सूर्यकांत ने बेंच के साथ मिलकर केंद्र और राज्य सरकारों को कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा, “पराली जलाने को प्रदूषण का मुख्य कारण बताकर किसानों पर दोषारोपण करना एक फैशन बन गया है। लेकिन कोविड के समय जब लॉकडाउन था, पराली जल रही थी, फिर हवा साफ क्यों थी? नीला आसमान दिखाई क्यों दे रहा था?” कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि 80 प्रतिशत प्रदूषण के स्रोत पराली जलाने से अलग हैं, जैसे वाहनों के धुएं, निर्माण कार्यों की धूल, इंडस्ट्रीज और अन्य बायोमास जलाना।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “यह मुद्दा राजनीतिक या अहंकार का विषय नहीं बनना चाहिए। किसान जो भूमि को अगली फसल के लिए तैयार करते हैं, उन्हें सजा देने के बजाय समाधान पर फोकस करें।” उन्होंने कमीशन ऑफ एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) से सवाल किया कि क्या एक्शन प्लान प्रभावी रहा? अगर नहीं, तो वैकल्पिक उपाय सोचने होंगे। कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक हफ्ते में गैर-पराली स्रोतों से प्रदूषण नियंत्रण के उपायों पर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया।
CJI का निजी अनुभव
सुनवाई के दौरान CJI सूर्यकांत ने अपना निजी अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया कि दिल्ली में प्रदूषण के कारण उनकी 55 मिनट की सुबह की वॉक के बाद सांस लेना मुश्किल हो गया। “मैं भी एक आम नागरिक हूं, प्रदूषण से जूझ रहा हूं। लेकिन हमारे पास कोई जादू की छड़ी नहीं है। समाधान डोमेन एक्सपर्ट्स और वैज्ञानिकों के पास है।” कोर्ट ने वकीलों की मांग पर विचार किया कि प्रदूषण के कारण सुनवाइयां वर्चुअल मोड में हों, ताकि स्वास्थ्य को नुकसान न पहुंचे।
प्रदूषण के आंकड़े
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियॉरोलॉजी के डेटा के अनुसार, मंगलवार को दिल्ली के प्रदूषण में वाहनों का योगदान 19.6% रहा, जबकि पराली जलाने का मात्र 1.5%। बुधवार के अनुमान में वाहनों का हिस्सा 21.1% और पराली का 1.5% ही रहने की संभावना है। कोर्ट ने कहा कि प्रदूषण को एकल स्रोत पर जिम्मेदार ठहराना गलत है। यह कई कारणों से है, और सभी को एक साथ संबोधित करने की जरूरत है।
पिछली सुनवाइयों में कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा सरकारों को पराली जलाने रोकने के लिए कदम उठाने को कहा था। लेकिन CJI सूर्यकांत ने जोर दिया कि समस्या मौसमी नहीं, बल्कि साल भर की है। कोर्ट ने मामले को 1 दिसंबर को फिर सूचीबद्ध किया है, ताकि नियमित मॉनिटरिंग हो सके।
लंबे समय का समाधान जरूरी
कोर्ट ने किसानों की मजबूरी को समझा। अमीकस क्यूरी अपराजिता सिंह ने बताया कि धान की कटाई और गेहूं की बुआई के बीच समय कम होने से किसान पराली जलाने को मजबूर होते हैं। CJI ने कहा, “किसानों को सजा न दें, बल्कि राज्यों को उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए तंत्र विकसित करने को कहें।” कोर्ट ने यह भी नोट किया कि सैटेलाइट निगरानी से किसान बचाव की कोशिश कर रहे हैं, जिसकी जांच की जाएगी।
यह टिप्पणियां दिल्ली-एनसीआर के लाखों निवासियों के लिए राहत की सांस हैं, जो स्मॉग से जूझ रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि पराली जलाने को हतोत्साहित करने के लिए मशीनरी उपलब्ध कराना और सब्सिडी देना जरूरी है। कोर्ट की यह सक्रियता प्रदूषण संकट से निपटने में मील का पत्थर साबित हो सकती है।

