Humans in the Loop/Kiran Rao News: दिल्ली में आयोजित फिल्म ‘ह्यूमन्स इन द लूप’ की विशेष स्क्रीनिंग के दौरान प्रसिद्ध फिल्म निर्माता किरण राव ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और इसके मानव जीवन पर प्रभाव को लेकर गहरे विचार साझा किए। अरण्य सहाय द्वारा निर्देशित यह फिल्म झारखंड की एक ओरांव आदिवासी महिला नेहमा की कहानी पर आधारित है, जो AI के लिए डेटा लेबलिंग का काम करती है। यह फिल्म न केवल तकनीकी प्रगति और आदिवासी समुदायों के बीच की खाई को उजागर करती है, बल्कि AI की नैतिकता और इसके सामाजिक प्रभावों पर भी सवाल उठाती है।
किरण राव, जो इस फिल्म की कार्यकारी निर्माता हैं, ने स्क्रीनिंग के दौरान कहा, “यह फिल्म देखना अनिवार्य होना चाहिए, क्योंकि यह AI, प्रौद्योगिकी और हमारे जीवन में इसकी भूमिका जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों से संबंधित है। यह एक खूबसूरती से बनाई गई फिल्म है, जो गहरे विचारों को उजागर करती है।” उन्होंने आगे कहा, “AI हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को आसान बना सकता है, क्योंकि यह कई कामों को बेहतर और तेज़ी से कर सकता है। लेकिन यह फिल्म यह भी बताती है कि AI एक बच्चे की तरह है—अगर इसे गलत जानकारी दी जाएगी, तो यह गलत ही सीखेगा।”
फिल्म ‘ह्यूमन्स इन द लूप’ ने मामी और सिनेवेस्टर जैसे प्रतिष्ठित फिल्म समारोहों में प्रदर्शन के साथ-साथ FIPRESCI इंडिया पुरस्कार भी जीता है। यह फिल्म डेटा लेबलिंग जैसे अदृश्य श्रम को सामने लाती है, जो AI तकनीक को शक्ति प्रदान करता है, और यह सवाल उठाती है कि तकनीकी प्रगति किस तरह सामाजिक बहिष्कार को बढ़ा सकती है। किरण राव के साथ-साथ आदिवासी सिनेमा के दिग्गज बीजू टोप्पो भी इस फिल्म के कार्यकारी निर्माता हैं। टोप्पो ने कहा, “यह फिल्म उन लोगों की कहानी कहती है, जिन्हें मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूं। यह आदिवासी दृष्टिकोण को साहसपूर्वक प्रस्तुत करती है और एक क्षेत्रीय के साथ-साथ वैश्विक कहानी है।”
फिल्म का कथानक झारखंड के सुदूर इलाकों में बसी नेहमा के इर्द-गिर्द घूमता है, जो डेटा एनोटेशन सेंटर में काम करती है। यह केंद्र विदेशी कंपनियों के लिए AI को बेहतर बनाने के लिए डेटा लेबलिंग का काम करता है। फिल्म में एक दृश्य में नेहमा अपनी सुपरवाइज़र से कहती है कि ट्रेनिंग वीडियो में इल्ली को कीटाणु के रूप में गलत तरीके से लेबल किया गया है, जो आदिवासी ज्ञान और AI की तकनीकी प्रणालियों के बीच टकराव को दिखाया है।
किरण राव ने इस फिल्म को समर्थन देने के अपने निर्णय पर कहा, “जब मैंने पहली बार यह फिल्म देखी, मुझे यह बहुत गहरी और विचारशील लगी। यह न केवल तकनीक और श्रम के बारे में बात करती है, बल्कि उन ज्ञान प्रणालियों को भी उजागर करती है, जिन्हें हम खोने का जोखिम उठा रहे हैं।” यह फिल्म स्टोरीकल्चर इंपैक्ट फैलोशिप और SAUV फिल्म्स के सहयोग से मथिवानन राजेंद्रन, साराभी रविचंद्रन, शिल्पा कुमार और अरण्य सहाय द्वारा निर्मित है।
‘ह्यूमन्स इन द लूप’ न केवल एक सिनेमाई अनुभव है, बल्कि यह एक ऐसी कहानी है जो आधुनिक तकनीक और पारंपरिक ज्ञान के बीच संतुलन पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है। यह फिल्म दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम किस तरह का भविष्य बना रहे हैं और इसमें आदिवासी समुदायों की क्या भूमिका होगी।

