ठंड ने दस्तक दे दी है. जैसे-जैसे ठंड बढ़ेगी घरों में खाने वाले तेल की खपत बढ़ जाती है. कई जगह सरसो तेल का इस्तेमाल ठंड में नहाने से पहले शरीर पर लगाने में भी इस्तेमाल किया जाता है. इससे त्वचा खुरदुरी नहीं होती है और नमी बनी रहती है. वैसे ही कुछ स्पेशल पकवान बनाने में ज्यादातर लोग सोयाबीन अथवा सूरजमुखी के तेल का इस्तेमाल करते हैं. अभी कोटा प्रणाली के हिसाब से आयातित सूरजमुखी का तेल थोक में 140 रुपये किलो पड़ता है। लेकिन यही तेल कांडला बंदरगाह पर ग्राहकों को थोक में 25 रुपये ऊंचे प्रीमियम पर मिल रहा है। सरकार की तरफ से कोटा प्रणाली शुरू करने से न तो तेल उद्योग, न किसान और न ही उपभोक्ता खुश हैं।
नई दिल्ली. विदेशी बाजारों में खाद्य तेलों की मांग होने तथा जाड़े में हल्के तेलों की मांग बढ़ने से कीमतों में उछाल आया है। दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में शनिवार को सरसों, सोयाबीन और मूंगफली तेल-तिलहन, सीपीओ, पामोलीन और बिनौला तेल कीमतों में बढ़ोतरी दर्ज की गई। बाकी तेल-तिलहनों की कीमतें पूर्व-स्तर पर बनी रहीं। कारोबारी सूत्रों ने कहा कि विदेशी बाजारों में हल्के खाद्य तेलों की मांग होने और इसके मुकाबले आपूर्ति कम होने से खाद्य तेल कीमतों में वृद्धि देखी जा रही है। सूत्रों ने कहा कि सरकार को व्यापक विमर्श के बाद कोई कदम उठाना होगा। इसके साथ ही सूरजमुखी और सोयाबीन तेल के शुल्क-मुक्त आयात का कोटा निर्धारित किये जाने जैसे कदम से बचने की सलाह भी कारोबारी सूत्रों ने सरकार को दी। सूत्रों का कहना है कि इस कदम से खाद्य तेल सस्ता होने के बजाय कम आपूर्ति की स्थिति पैदा होने से महंगे हो गए।
🚨Statistics Ministry data reveals,in the last 4 years:
⏫Inflation doubled
⏫Edible oil price increased by 66%
⏫Petrol diesel price hiked by 30%
Modi’s Governance:
Inflation at record level
1st time PCI at decline
Tax Collection at record high
— Saral Patel #BharatJodoYatra (@SaralPatel) November 3, 2022
देश में बढ़े तिलहन का उत्पादन
अभी कोटा प्रणाली के हिसाब से आयातित सूरजमुखी का तेल थोक में 140 रुपये किलो पड़ता है। लेकिन यही तेल कांडला बंदरगाह पर ग्राहकों को थोक में 25 रुपये ऊंचे प्रीमियम पर मिल रहा है। इसी तरह पहले पॉल्ट्री कंपनियों की मांग के कारण सरकार ने तिलहन के डीआयल्ड केक (डीओसी) का आयात 30 सितंबर तक खोल दिया था। जबकि देश में किसानों के पास सोयाबीन की पर्याप्त उपलब्धता थी। खाद्य तेल कीमतों की घट-बढ़ और तमाम अनिश्चितताओं से निकलने का एक सही रास्ता देश में तिलहन उत्पादन बढ़ाना ही हो सकता है। इसके लिए किसानों को सिर्फ प्रोत्साहन एवं संरक्षण जारी रखने की आवश्यकता है।